और उसकी महिमामय शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त बन सको जिस से हर प्रकार की दृढ़ता और धैर्य प्राप्त कर सको। (कुलुस्सियों 1:11)
“बलवन्त बन सको” सही शब्द है। प्रेरित पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया के लिए प्रार्थना की कि वे “उसकी महिमामय शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त बन सकें जिस से हर प्रकार की दृढ़ता और धैर्य प्राप्त कर सकें” (कुलुस्सियों 1:11)। धैर्य भीतरी सामर्थ्य का प्रमाण है।
अधीर लोग निर्बल होते हैं और इसीलिए वे बाहरी समर्थनों पर निर्भर होते हैं — वो निर्भर होते हैं अपनी दिनचर्या के सही रीति से चलने पर और ऐसी परिस्थितियों पर जो उनके निर्बल हृदयों को प्रोत्सािहत कर सकें। जब वे अपनी योजनाओं को बाधित करने वालों के ऊपर शपथों और धमकियों और कठोर आलोचनाओं के साथ चिंघाड़ रहे होते हैं, तब वे निर्बल नहीं जान पड़ते हैं। परन्तु यह सब कोलाहल तो उनकी अपनी निर्बलता को छुपाने का ही एक ढंग है। धैर्य तो भीतरी सामर्थ्य की अत्यधिक माँग करता है।
ख्रीष्टीय जन के लिए यह सामर्थ्य परमेश्वर की ओर से आती है। इसलिए पौलुस कुलुस्सियों के लिए प्रार्थना कर रहा है। वह परमेश्वर से विनती कर रहा है कि उनको ख्रीष्टीय जीवन में आवश्यक धैर्य के लिए सक्षम बनाए। परन्तु जब वह कहता है कि धैर्य की सामर्थ्य “[परमेश्वर] की महिमामय शक्ति के अनुसार” है तो उसका अर्थ केवल यही नहीं है कि किसी व्यक्ति को धैर्यवान बनाने में ईश्वरीय सामर्थ्य की आवश्यकता है। उसका अर्थ है कि इस “महिमामय शक्ति” पर विश्वास ही वह साधन है जिसके द्वारा धैर्य की सामर्थ्य आती है।
धैर्य वास्तव में पवित्र आत्मा का फल है (गलातियों 5:22), परन्तु पवित्र आत्मा “विश्वास के सुनने” के द्वारा (गलातियों 3:5) सामर्थ्य देता है (अपने सम्पूर्ण फल के साथ)। इसलिए पौलुस प्रार्थना कर रहा है कि परमेश्वर हमें उस “महिमामय शक्ति” से जोड़े जो धैर्य में सामर्थ्य देती है। और वह जोड़ विश्वास है।