
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन
संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org
क्या आपने कभी सोचा है कि उस समय परमेश्वर क्या कर रहा होता है जब आपको किसी वस्तु की अत्याधिक आवश्यकता हो और वो आपको मिल नहीं रही हो और आप उसे ऐसे किसी स्थान पर खोजे जा रहे हैं जहाँ पर वो है ही नहीं? परमेश्वर तो जानता है कि वह वस्तु कहाँ है फिर भी वह आपको उस स्थान पर खोजने दे रहा है जहाँ पर वह वस्तु है नहीं ।
एक बार मुझे अपनी पुस्तक डिज़ायरिंग गॉड के नए संस्करण के लिए एक उद्धरण की आवश्यकता थी। मुझे पता था कि मैंने उसे रिचर्ड वुर्मब्रैण्ड की किसी पुस्तक में पढ़ी थी। मैंने सोचा कि वह उसकी भक्तिमय पुस्तक रीचिंग टुअर्ड्स द हाइट्स में है। मैं उस बात को लगभग सामने वाले पृष्ठों के दाहिने ओर देख भी सकता था। परन्तु मुझे वह नहीं मिला।
परन्तु जब मैं खोज रहा था, तो नवम्बर 30 के लिए दी गई भक्तिमय अध्ययन ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। जब मैंने उसे पढ़ा, मैंने कहा, “प्रभु ने इसीलिए मुझे उस उद्धरण के लिए वहाँ खोजते रहने दिया जहाँ वह नहीं है।” यहाँ एक ऐसी कहानी थी जिसने सिद्ध रीति से दिखाया कि यीशु के नाम में किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं होता है — कुछ भी, यहाँ तक कि एक उद्धरण को वहाँ खोजना भी जहाँ वह नहीं है, व्यर्थ नहीं है। जो बात मैंने पढ़ी वह यह है:
मन्द बुद्धि वाले बच्चों के एक आश्रम में सीमा का पालन-पोषण बीस वर्षों तक किया गया। बच्ची आरम्भ से ही मानसिक रीति से अक्षम थी, और उसने कभी भी एक शब्द नहीं बोला था और केवल एक निष्क्रिय जीवन ही बिताया था। वह या तो दीवारों को घूरती रहती थी या कुछ विकृत गतिविधि करती थी। केवल खाना, पीना, और सोना ही उसका सम्पूर्ण जीवन था। ऐसा प्रतीत होता था कि उसके आस-पास जो कुछ हो रहा है उसमें वह कुछ भी भाग नहीं लेती थी। उसके एक पैर को काटना पड़ा था। वहाँ के कर्मचारी सीमा के शुभ-चिन्तक थे और वे आशा करते थे कि प्रभु शीघ्र ही उसे अपने पास उठा ले।
एक दिन डॉक्टर ने आश्रम के निर्देशक को उसके पास अति शीघ्र आने के लिए कहा। सीमा मर रही थी। जब उन दोनों लोगों ने कमरे में प्रवेश किया तो उनको विश्वास नहीं हुआ कि वे क्या देख और सुन रहे थे। सीमा उन ख्रीष्टीय भजनों को गा रही थी जिन्हें उसने सुना था और वह उनमे से केवल उन्ही गीतों को गा रही थी जो मृत्युशैय्या के लिए उपयुक्त हों। उसने बार-बार जर्मन भाषा का गीत गया, “प्राण अपने पितृभूमि को तथा अपने विश्राम को कहाँ पाता है?” उसने अपने रूपान्तरित चेहरे के साथ आधे घण्टे तक गाया और फिर वह शान्ति से मर गई। (द बेस्ट इस स्टिल टु कम, वुपेरटल: सोन्न उण्ड शिल्ड से लिया गया)
क्या ख्रीष्ट के नाम से किया गया कुछ भी कार्य वास्तव में व्यर्थ है?
उस उद्धरण के लिए जिसके लिए मैंने सोचा कि वह मेरे लिए आवश्यक है मेरी निराश, निरर्थक खोज, व्यर्थ नहीं गई थी। इस विकलाँग बच्चे के लिए गीत गाना व्यर्थ नहीं था। और आपका दुःखदायी तथा अनियोजित रूप से मार्ग से भटकना व्यर्थ नहीं है — तब व्यर्थ नहीं है यदि आप प्रभु के अनपेक्षित कार्य के लिए प्रभु की ओर देखें, और सब कुछ को उसके नाम से करें (कुलुस्सियों 3:17)।