क्या आप हर्षित हैं कि आप परमेश्वर नहीं है?

हे देश देश के कुल के लोगो, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो। (भजन 96:7)

यहाँ कम से कम उस अनुभव का एक भाग है जिसका उल्लेख भजनकार कर रहा है जब वह कहता है, “यहोवा के सामर्थ्य को मानो [दो]।” जब हम “यहोवा के सामर्थ्य को मानते हैं” तो हम क्या कर रहे होते हैं?

सबसे पहले, परमेश्वर के अनुग्रह से, हम परमेश्वर पर ध्यान देते हैं और देखते हैं कि वह सामर्थ्यवान है। हम उसके सामर्थ्य पर ध्यान देते हैं। फिर हम उसकी सामर्थ्य की महानता को स्वीकार करते हैं। हम इसके महत्व को उचित सम्मान देते हैं।

हमें उसका समार्थ्य अद्भुत लगता है। किन्तु जो बात इस अद्भुत अनुभव को “देने” जैसा बनाती है—“यहोवा के सामर्थ्य को दो!”—वह यह है कि हम विशेष रूप से हर्षित हैं कि उसका समार्थ्य महान है, न कि हमारा।

हम इस तथ्य में एक गहन उपयुक्तता का अनुभव करते हैं कि हम नहीं किन्तु वह असीम रूप से सामर्थ्यवान है। हम इस सच्चाई से प्रेम करते हैं कि वास्तव में ऐसा ही है। हम परमेश्वर की सामर्थ्य के प्रति ईर्ष्या नहीं करते। हम उसकी शक्ति के लोभी नहीं हैं। हम इस बात से प्रसन्न हैं कि सारा समार्थ्य उसी का है।

हमारे भीतर का सबकुछ इतना अधिक आनन्दित होता है कि वह स्वयं ही बाहर निकलकर इस सामर्थ्य को देखना चाहता है — जैसे कि हम किसी ऐसे धावक की विजय के उत्सव में पहुँच गए हों जिसने हमें दौड़ में पराजित कर दिया था, और हमें अपनी पराजय पर क्रोधित होने के विपरीत, उसके समार्थ्य की प्रशंसा करने में सबसे अधिक प्रसन्नता मिली।

हमें जीवन में सबसे गहरा अर्थ तब मिलता है जब हमारा हृदय स्वयं से बाहर निकलकर परमेश्वर के सामर्थ्य की प्रशंसा करता है, इसके विपरीत कि हम स्वयं की ओर मुड़ें और अपने स्वयं के सामर्थ्य पर गर्व करें — या यहाँ तक कि अपने सामर्थ्य  के विषय में सोचें। हमें एक अद्भुत बात का पता चलता है: परमेश्वर न होना, और परमेश्वर बनने के लिए सभी विचारों या इच्छाओं को त्याग देना अत्यन्त सन्तुष्टिदायक है।

जब हम परमेश्वर के सामर्थ्य पर ध्यान देते हैं तो हमारे अन्दर यह अनुभूति उत्पन्न होती है कि परमेश्वर ने विश्व को इसलिए बनाया है: जिससे कि हम परमेश्वर न होने का, यहाँ तक कि परमेश्वर की ईश्वरीयता की प्रशंसा करने का अर्थात् परमेश्वर के सामर्थ्य का सर्वोच्च सन्तुष्टि का अनुभव कर सकें। हमारे ऊपर एक शान्तिपूर्ण अनुभूति छा जाती है कि असीमित (परमेश्वर) की प्रशंसा ही सभी वस्तुओं का अन्तिम, सम्पूर्ण सन्तुष्टिदायक अन्त है।

हम किसी भी सामर्थ्य  का अपने से आने का दावा करने की थोड़े सी भी प्रलोभन पर काँप उठते हैं। परमेश्वर ने हमें इस प्रलोभन से बचाने के लिए हमें निर्बल बनाया है: “हम मिट्टी के पात्रों में, यह धन इसलिए रखा हुआ है कि सामर्थ्य की असीम महानता हमारी ओर से नहीं वरन् परमेश्वर की ओर से ठहरे।” (2 कुरिन्थियों 4:7)।

ओह, यह कितना अद्भुत प्रेम है कि परमेश्वर हमें उसके सामर्थ्य की प्रशंसा करने की अनन्त ऊँचाइयों को स्वयं पर घमण्ड करने के व्यर्थ प्रयास से विस्थापित करने से बचाता है! परमेश्वर होने के विपरीत, परमेश्वर को देखना एक बड़ा हर्षोल्लास है!

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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