
सम्पूर्ण बाइबल को पढ़ने के लाभ
“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की
मत्ती 27:45-46: 45दोपहर से लेकर तीन बजे तक सारे देश में अन्धकार छाया रहा। 46 तीन बजे के लगभग यीशु ऊँची आवाज़ से चिल्लाया, एली, एली, लमा शबक्तनी? अर्थात् “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्योंं छोड़ दिया?”
यह यीशु के द्वारा क्रूस से बोली गई चौथी वाणी है। पद 45 यीशु को क्रूस पर सुबह 9 बजे क्रूस पर चढ़ाया गया था और 3 बजे उन्होंने अपने प्राणों को त्यागा था। पहले तीन घण्टे में हम देखते हैं कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जा रहा है, उनका उपहास किया जा रहा है, उनकी निन्दा की जा रही है। सैनिक, याजक, शास्त्री और आने जाने वाले लोगों द्वारा यीशु को ठठ्ठों में उड़ा रहे हैं।
किन्तु दोपहर के 12 बजे से 3 बजे के बीच हम अन्धकार को देखते हैं। और अन्धकार सम्पूर्ण पृथ्वी पर था क्योंकि लूका 23:15 हमें बताता है कि सूर्य का प्रकाश जाता रहा अर्थात् सूर्य ने चमकना बन्द कर दिया था।
ये अन्धकार परमेश्वर के न्याय और प्रकोप का प्रतीक है- जैसे हम मिस्र में अन्धकार की विपत्ति को देखते हैं। और ये अन्धकार परमेश्वर की उपस्थिति से दूर होने को भी दिखाता है- जैसा नरक की झील है- जहाँ अन्धकार रोना और दाँत पीसना है।
और यीशु संसार के पापों को अपने ऊपर लिए हुए परमेश्वर के न्याय और प्रकोप को सह रहा है। वह नरक के समान यातना को सह रहा है ताकि हम नरक के दण्ड से बच जाएं। और जब तीन घण्टे के अन्धकार में वह परमेश्वर की उपस्थिति से दूर होने का अनुभव करता है। तब वह परमेश्वर को ऊँची आवाज़ में पुकारकर कहता है कि- हे मेरे परमेश्वर हे मेरे परमेश्वर तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?
पद 46
यीशु यहाँ पर परमेश्वर से प्रश्न नहीं पूछ रहा है कि ‘परमेश्वर आप बताइए कि आपने मुझे क्यों छोड़ दिया’? और न ही यह उसके अविश्वास को दिखाता है कि ‘परमेश्वर ने तो मुझे छोड़ दिया है अब मैंं क्या करूँ’? परन्तु यह उसकी वेदना की पुकार है। यह उसकी मनोव्यथा को दिखाता है। यह उसकी व्याकुलता को दिखाता है।
परन्तु यीशु ने ऐसा क्यों कहा?
1. यीशु ने वास्तव में क्रूस पर त्यागे जाने का अनुभव किया।
परमेश्वर का प्रिय पुत्र यीशु अपने मानवीय स्वभाव में पिता द्वारा छोड़ दिए जाने का अनुभव करता है। यह सत्य है कि यीशु परमेश्वर होने के कारण कभी भी परमेश्वर पिता से अलग नहीं हो सकता है। परन्तु यीशु देह में आए थे, ताकि वे हमारे पापों का दण्ड उठा सकें। इसलिए उनके पास परमेश्वरत्व और मनुष्यत्व दोनों स्वभाव थे। और क्रूस पर वे अपने मनुष्यत्व में होकर स्वर्गीय पिता से अलग हो जाने का अनुभव करते हैं।
इसलिए यीशु कहते हैं- हे मेरे परमेश्वर हे मेरे परमेश्वर तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?
2. यह वाणी यीशु की वेदना को दिखाती है। यह उसके मनोव्यथा की पुकार है।
लेकिन यीशु को यह वेदना, यह पीड़ा क्यों सहनी पड़ी? क्योंकि हम सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे और हम में से प्रत्येक ने अपना अपना मार्ग लिया था (यशायाह 53:6)।
इसीलिए उसने हमारी पीड़ाओं को सह लिया और हमारे दुखों को उठा लिया। वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल हुआ और हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी।
2कुरिन्थियों 5:21 में पौलुस कहता है कि “जो पाप से अनजान था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ”। हम सबके अधर्म का बोझ उसी पर लादा गया, वह हमारे लिए पाप ठहराया गया, गलातियों 3:13 के अनुसार वह हमारे लिए शापित बना क्योंकि “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह शापित है।”
इसीलिए परमेश्वर पिता ने उससे मुख मोड़ लिया। क्योंकि परमेश्वर का प्रिय पुत्र हम सबके पापों को क्रूस पर अपने ऊपर लिए हुए था। और जब उसने देखा कि परमेश्वर ने अपनी उपस्थिति को उससे हटा ली है तो वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया- हे मेरे परमेश्वर हे मेरे परमेश्वर तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?
3. यीशु की यह पुकार उसके विषय में की गई भविष्यवाणी की पूर्ति को दिखाती है
यीशु यहाँ पर भजन 22 के पहले पद को उद्धरित करते हैं। और भजन 22 मसीहाई भजन है जो आने वाले मसीहा के दुखों का वर्णन करता है। इस भजन की पूर्ति को हम सिद्धता से यीशु की मृत्यु में पाते हैं।
यीशु ने हमारे पापों के कारण परमेश्वर के प्रकोप को सहा ताकि हम परमेश्वर के प्रकोप से बच जाएं। जो दण्ड हमें उठाना चाहिए था वो यीशु ने हमारे बदले में ले लिया। हमारे लिए ये कितने आनन्द की बात है। इसलिए यदि हम यीशु पर विश्वास करते हैं तो हम परमेश्वर के प्रकोप के से बच जाएंगे। हमारे पापों के कारण उसने त्यागे जाने का अनुभव किया, इसलिए अब हमारे पास इस बात का आश्वासन है कि परमेश्वर अपने पुत्र के कारण हमें कभी नहीं त्यागेगा।
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