लिंकन के लिए ईश्वरीय-प्रावधान

“अहा! परमेश्वर का धन, बुद्धि और ज्ञान कितने अगाध हैं! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम्य हैं!” (रोमियों 11:33)

अब्राहम लिंकन, जिनका जन्म 1809 में आज के ही दिन हुआ था, चालीस वर्ष की आयु तक धर्म के प्रति सन्देहवादी और कभी-कभी दोषदर्षी बने रहे। इसलिए, यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है कि व्यक्तिगत और राष्ट्रीय दुःख ने लिंकन को परमेश्वर की वास्तविकता की ओर खींचा, न कि उन्हें उससे दूर धकेला।

1862 में, जब लिंकन 53 वर्ष के थे, उनके 11 वर्षीय बेटे विली की मृत्यु हो गई। लिंकन की पत्नी ने “अपने शोक से निपटने के प्रयास में नए युग के भूत-सिद्धिवाले जन की खोज की।” लिंकन, फिनीयस गरले से मिलने गए, जो वाशिंगटन में न्यूयॉर्क एवेन्यू प्रेस्बिटेरियन चर्च के चरवाहे थे।

गरले ने बताया कि कई लम्बे वार्तालाप के परिणामस्वरूप “ख्रीष्ट की ओर उनका हृदय-परिवर्तन” हुआ। लिंकन ने बताया कि वह “कई बार अपने इस प्रबल दृढ़-विश्वास के कारण घुटनों पर आए कि मेरे पास जाने के लिए और कोई स्थान नहीं है।”

इसी प्रकार, मृत और घायल सैनिकों की भयावहता ने उन्हें प्रतिदिन सताया। वाशिंगटन में घायलों के लिए पचास अस्पताल थे। कैपिटल के गोल-घर (रोटुंडा) में घायल सैनिकों के लिए दो हज़ार खाटें थीं।

सामान्यतः, इन अस्थायी अस्पतालों में प्रतिदिन पचास सैनिकों की मृत्यु होती थी। इन सब बातों ने लिंकन को परमेश्वर के ईश्वरीय-प्रावधान की ओर खींचा। “हम यह विश्वास करने से नहीं बच सकते हैं कि जिसने संसार को बनाया है, वह आज भी इस पर राज्य कर रहा है।”

गृहयुद्ध के सम्बन्ध में परमेश्वर के ईश्वरीय-प्रावधान के विषय में उनका सबसे प्रसिद्ध कथन उनका द्वितीय उद्घाटन भाषण था, जो उनकी हत्या से एक महीने पहले दिया गया था। यह उल्लेखनीय बात है कि इसमें परमेश्वर को उत्तरी राज्यों या दक्षिणीय राज्यों का मात्र समर्थक नहीं बनाया गया। परमेश्वर के अपने उद्देश्य हैं और वह किसी भी पक्ष के पाप को अनदेखा नहीं करता है।

हम आशा करते हैं — हम प्रार्थना करते हैं — कि युद्ध का यह महासंकट शीघ्र ही समाप्त हो जाए। . . .

फिर भी यदि परमेश्वर की इच्छा है कि यह तब तक चलता रहे, जब तक कि दास-पुरुषों के दो सौ वर्षों के उस परिश्रम जिसका प्रतिफल नहीं दिया गया द्वारा संचित सारी सम्पत्ति डूब न जाए, और कोड़े से बहाए गए रक्त के प्रत्येक बूँद का प्रतिशोध तलवार से बहाए गए रक्त के एक और बूँद से चुकाया न जाए, जैसा कि तीन हजार वर्ष पहले कहा गया था, अभी भी यह कहा जाना चाहिए, “यहोवा की विधियाँ सत्य हैं, और पूर्णतः धर्ममय हैं।”

मैं आप सभी के लिए प्रार्थना करता हूँ जो हानि, चोट और महान दुःख का सामना कर रहे हैं कि जैसा कि लिंकन के साथ हुआ था, यह आपके लिए खोखले भाग्यवाद को नहीं, वरन् परमेश्वर के अगम्य ईश्वरीय-प्रावधन के अनन्त बुद्धि और प्रेम पर एक गहरे भरोसे को जागृत करें।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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