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परमेश्वर की सेवा मत करो

“यहोवा की आँखें समस्त पृथ्वी पर फिरती रहती हैं कि जिनका हृदय सम्पूर्ण रीति से उसका है वह उनके प्रति अपने सामर्थ्य को दिखाए।” (2 इतिहास 16:9)

परमेश्वर इस संसार में किसे खोज रहा है? सहायकों को? नहीं। सुसमाचार एक “सहायता चाहिए” का आग्रह नहीं है। न ही यह ख्रीष्टीय सेवा के लिए कोई बुलाहट है।

परमेश्वर यह नहीं चाहता है कि लोग उसके लिए कार्य करें। “यहोवा की आँखें समस्त पृथ्वी पर फिरती रहती हैं कि जिनका हृदय सम्पूर्ण रीति से उसका है वह उनके प्रति अपने सामर्थ्य को दिखाए” (2 इतिहास 16:9)। वह स्वयं एक कुशल कार्यकर्ता है। वह स्वयं उन्हें बुलाता है, जिनके कन्धे बोझ से दबे हों। वह सामर्थी है। और वह भिन्न रीति से इसे दिखाना चाहता है। यही तो परमेश्वर को इस पृथ्वी के तथा-कथित ईश्वरों से भिन्न करता है: वह हमारे लिए कार्य करता है। यशायाह 64:4, “क्योंकि प्राचीनकाल ही से न किसी ने सुना, न ही कानों तक उसकी चर्चा पहुँची और न आँखों से किसी ने तुझे छोड़ ऐसे परमेश्वर को देखा जो अपनी बाट जोहने वालों के लिए कार्य करता हो।”

परमेश्वर हमसे क्या चाहता है? वह नहीं जिसकी हम सम्भवतः अपेक्षा करते हैं। वह इस्राएल को इतने अधिक बलिदान लाने के लिए डाँटता है: “मैं न तो तेरे घर से बछड़ा न तेरी पशु-शालाओं से बकरे लूँगा। . . . क्योंकि जंगल का एक-एक जानवर और हज़ारों पहाड़ों के पशु तो मेरे ही हैं। . . . ‘यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता, क्योंकि जगत और जो कुछ उस में है वह मेरा ही है’”  (भजन 50:9–10, 12)।

परन्तु क्या ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम परमेश्वर को देख सकें जो उसे हमारे लाभार्थियों के स्तर पर न लाए?

हाँ। हमारी चिंताएँ। हमारी आवश्यकताएँ। उसकी इच्छा को पूरी करने की सामर्थ्य के लिए हमारी याचना की पुकार।

यह एक आज्ञा है: “अपनी समस्त चिन्ता उसी पर [डाल दो]”  (1 पतरस  5:7)। परमेश्वर बड़े ही आनन्द से ऐसी कोई भी वस्तु हमसे ग्रहण करेगा जो उसकी पूर्ण-पर्याप्तता पर हमारी निर्भरता को दिखाती है। 

ख्रीष्टियता आधारभूत रीति से स्वास्थ्य-लाभ कार्यक्रम के समान है। रोगी चिकित्सक की सेवा नहीं करते हैं। वे उन पर अच्छी औषधि और चिकित्सा के लिए निर्भर होते हैं। पहाड़ी उपदेश एक चिकित्सक द्वारा हमारे स्वास्थ्य-लाभ के लिए दी गयी विधि है, न कि हमें कार्य पर नियुक्त करने वाले व्यक्ति द्वारा दिए गए कोई निर्देश। 

हमारे जीवन इस ही बात पर टिके हुए हैं कि हम परमेश्वर के लिए काम न करें। “अब उसे जो काम करता है मज़दूरी देना कृपा नहीं परन्तु अधिकार माना जाता है। परन्तु वह जो काम नहीं करता, वरन् उस पर विश्वास करता है जो भक्तिहीन को धर्मी ठहराता है, उसका विश्वास धार्मिकता गिना जाता है”  (रोमियों 4:4–5)।

कार्य करने वाले को उपहार प्राप्त नहीं होता है। उसे उसका अधिकार प्राप्त होता है। उसका वेतन। यदि हमें धर्मीकरण (धर्मी ठहराए जाने) का उपहार चाहिए, तो हमें उसके लिए कार्य करने की धृष्टता नहीं करनी चाहिए। इस कार्य में परमेश्वर ही कार्यकर्ता है। और जो उसे  प्राप्त होता है वह है महिमा जो एक अनुग्रह देने वाले परोपकारी को मिलती है, न की एक सेवा पाने वाले लाभार्थी को। 

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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