परमेश्वर की सेवा करने से सावधान

October 12, 2025

परमेश्वर की सेवा करने से सावधान

“परमेश्वर जिसने जगत और उसमें की सब वस्तुओं को बनाया, वही स्वर्ग और पृथ्वी का प्रभु है। वह हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में निवास नहीं करता। और न ही मनुष्यों के हाथों से उसकी सेवा-टहल होती है, मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो, क्योंकि वह स्वयं सब को जीवन, श्वास और सब कुछ प्रदान करता है।” (प्रेरितों के काम 17:24-25)।

हम परमेश्वर की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के द्वारा नहीं, वरन् यह प्रार्थना करने के द्वारा उसको महिमा देते हैं कि वह हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करे — और यह भरोसा करने के द्वारा कि वह उत्तर देगा, और उस सर्व-उपलब्ध कराने वाले देखभाल के आनन्द में जीने के द्वारा, जब हम प्रेम में होकर अन्य लोगों के लिए अपने प्राणों को दे देते हैं।

यहाँ पर हम ख्रीष्टीय सुखवाद के शुभ समाचार के केन्द्र में हैं। परमेश्वर प्रबल आग्रह करता है कि हम उससे सहायता माँगें जिससे कि उसको महिमा मिले। “संकट के दिन मुझे पुकार: मैं तुझे छुड़ाऊँगा, और तू मेरी महिमा करेगा” (भजन 50:15)। यह हमें इस चौंकाने वाले तथ्य को मानने के लिए विवश करता है कि हमें यह सोचने से सावधान रहना चाहिए कि उसको हमारी आवश्यकता है। हमें परमेश्वर की सेवा करने से सावधान होना चाहिए, और हमें विशेष ध्यान देना चाहिए कि वह हमारी सेवा करे, कहीं ऐसा न हो कि हम उसकी महिमा को चुराएँ। “मनुष्यों के हाथों से परमेश्वर की सेवा-टहल नहीं होती है, मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो” (प्रेरितों के काम 17:25)।

यह सुनने में बड़ा विचित्र लगता है। हम में से अधिकतर लोग सोचते हैं कि परमेश्वर की सेवा करना पूर्ण रीति से सकरात्मक बात है। हमने यह नहीं विचार किया है कि परमेश्वर की सेवा करना उसके लिए अपमान हो सकता है। परन्तु प्रार्थना के अर्थ पर मनन करना इस बात को स्पष्ट कर देता है।

रॉबिन्सन क्रूसो (Robinson Crusoe) उपन्यास में जब नायक रॉबिन्सन क्रूसो टापू पर फँसा हुआ था, उसने आशा रखने के लिए भजन 50:12-15 को अपने प्रिय स्थल के रूप में लिया: परमेश्वर कहता है, “यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता, क्योंकि जगत और जो कुछ उस में है वह मेरा ही है।  . . . संकट के दिन मुझे पुकार: मैं तुझे छुड़ाऊँगा, और तू मेरी महिमा करेगा।”
इसका अर्थ यह है कि: परमेश्वर की सेवा करने की ऐसी भी रीति है जो उसे तुच्छ दिखाती है मानो कि उसे हमारी सेवा की आवश्यकता है। हमें अति सावधान होना चाहिए कि हम ख्रीष्ट में परमेश्वर के महान् अनुग्रह को न रोकें। यीशु ने कहा, “मनुष्य का पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं वरन् सेवा करने और बहुतों की फिरौति के मूल्य में प्राण देने आया” (मरकुस 10:45)। वह  सेवक होना चाहता है। वह दाता के रूप में महिमा प्राप्त करना चाहता है।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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