“इस्राएल का प्रभु परमेश्वर धन्य हो, क्योंकि उसने हमारी सुधि ली है और अपने लोगों के छुटकारे का कार्य पूरा किया है। और हमारे लिए अपने सेवक दाऊद के घराने में उद्धार का एक सींग निकाला है, जैसा कि उसने प्राचीनकाल से अपने पवित्र नबियों के मुंह से कहलवाया था, कि हमारे शत्रुओं से और हमसे बैर रखने वालों के हाथों से हमारा उद्धार हो।” (लूका 1:68–71)
लूका 1:68-71 में इलीशिबा के पति जकरयाह के इन शब्दों में दो विशेष बातों पर ध्यान दें।
पहली बात, नौ महीने पहले जकरयाह इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उसकी पत्नी एक पुत्र को जन्म देगी। अब वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर आने वाले मसीहा में परमेश्वर के छुटकारे के कार्य के लिए इतना आश्वस्त है कि वह इसे भूतकाल में व्यक्त करता है: “उसने हमारी सुधि ली है और अपने लोगों के छुटकारे का कार्य पूरा किया है।” एक विश्वास से भरे मन के लिए, परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञा किया गया कार्य मानो ऐसा है जैसे कि वह हो चुका है। जकरयाह ने परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना सीख लिया है और इसलिए उसके पास एक उल्लेखनीय आश्वासन है: परमेश्वर ने “हमारी सुधि ली है और अपने लोगों के छुटकारे का कार्य पूरा किया है!” (लूका 1:68)।
दूसरी बात, यीशु जो मसीहा है उसका आना परमेश्वर द्वारा हमारे इस संसार को दर्शन देना है: इस्राएल के परमेश्वर ने सुधि ली है और छुटकारा दिया है। शताब्दियों से, यहूदी लोग इस धारणा के अधीन दुख में दिन व्यतीत कर रहे थे कि परमेश्वर ने उनसे मुख मोड़ लिया है: नबूवत का आत्मा जा चुका था; और इस्राएल रोम के हाथों में पड़ गया था। और इस्राएल के सभी धर्मी जन परमेश्वर द्वारा दर्शन दिए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लूका हमें बताता है कि एक अन्य वृद्ध पुरुष, भक्त शमौन, “इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहा था” (लूका 2:25)। इसी प्रकार, प्रार्थना करने वाली हन्नाह, “यरूशलेम के छुटकारे की प्रतीक्षा कर रही थी” (लूका 2:38)।
ये बड़ी आशा के दिन थे। अब दीर्घ-प्रतीक्षित, परमेश्वर द्वारा दर्शन दिए जाने का कार्य होने वाला था—वास्तव में, वह इस प्रकार आने वाला था जिसकी किसी ने भी अपेक्षा नहीं की थी।