अब मैले चिथड़े न रहे

हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य-के-से हैं, और हमारे धर्म के काम मैले-चिथड़ों के समान हैं (यशायाह 64:6)

यह सत्य है कि परमेश्वर की व्यवस्था में कोई भी कमी उसकी सिद्ध पवित्रता को अप्रसन्न करती है और हमें न्याय के योग्य ठहराती है, क्योंकि परमेश्वर किसी भी पाप को अनुग्रह की दृष्टि से नहीं देख सकता है (हबक्कूक 1:13; याकूब 2:10–11)।

परन्तु पुराने नियम में जो बात किसी मनुष्य को विनाश की स्थिति में ले कर आई थी (और आज भी हमें लाती है), वह तो धार्मिकता की पाप रहित सिद्धता को प्राप्त करने में विफलता नहीं थी। जो बात उन्हें विनाश की स्थिति में ले कर आई, वह थी परमेश्वर की अनुग्रहपूर्ण प्रतिज्ञाओं पर भरोसा नहीं करना, विशेष रीति से इस आशा पर कि वह एक दिन एक छुड़ाने वाले को भेजेगा जो अपने लोगों के लिए सिद्ध धार्मिकता ठहरेगा (“यहोवा हमारी धार्मिकता है,” यिर्मयाह 23:6; 33:16)। पुराने नियम के सन्त जानते थे कि वे इसी प्रकार बचाए गए हैं, और यह विश्वास आज्ञाकारिता की कुन्जी है, और यह आज्ञाकारिता इस विश्वास का प्रमाण है।

यह बहुत ही भ्रमित करने वाली बात होती है जब लोग कहते हैं कि केवल एक ही प्रकार की धार्मिकता है जिसका कोई महत्व है और वह है ख्रीष्ट की अभ्यारोपित (imputed) धार्मिकता। यह बात सच है कि हमारे धर्मिकरण अर्थात् धर्मी ठहराए जाने (justification) का आधार हमारी धार्मिकता नहीं है—यहाँ तक की आत्मा-प्रदत्त विश्वास द्वारा प्राप्त धार्मिकता भी—वरन् मात्र ख्रीष्ट की अभ्यारोपित धार्मिकता के आधार पर जो हमें दी गयी है। परन्तु कभी-कभी लोग बिना सोचे समझे सम्पूर्ण मानवीय धार्मिकता के विषय में अपमानजनक रीति से बोलते हैं, मानो कि हमें ऐसी कोई धार्मिकता प्रदान नहीं की गयी है जो परमेश्वर को प्रसन्न करे। यह बात उचित नहीं है। 

वे प्रायः यशायाह 64:6 का उल्लेख करते हैं, जो कहता है कि हमारे धर्म के काम मैले चिथड़ों के समान हैं, या “एक गंदे कपड़े के समान।”

परन्तु यदि हम सन्दर्भ में देखें, तो यशायाह 64:6 का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर के लोगों के द्वारा की गयी सम्पूर्ण धार्मिकता परमेश्वर को ग्रहण नहीं है। यशायाह तो उन लोगों की बात कर रहा है जिनकी धार्मिकता वास्तव में मात्र पाखण्ड है। वह तो अब धार्मिकता नहीं रही। परन्तु इस से पहले के पदों में यशायाह कहता है कि परमेश्वर उस से सहमतिपूर्वक भेंट करता है, “जो धार्मिकता के कार्य करने से प्रसन्न होता है” (यशायाह 64:5)।

यह सत्य है — अद्भुत रीति से सत्य है — कि परमेश्वर का कोई भी जन, चाहे वह क्रूस से पूर्व हो या उपरान्त हो, निष्कलंक पवित्र परमेश्वर को ग्रहणयोग्य नहीं होगा यदि उस पर ख्रीष्ट की सिद्ध धार्मिकता अभ्यारोपित नहीं की गई है (रोमियों 5:19; 1 कुरिन्थियों 1:30; 2 कुरिन्थियों 5:21)। यह सत्य है! वरन् इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर इन्हीं “धर्मी ठहराये गए” लोगों में ऐसी अनुभवात्मक धार्मिकता को उत्पन्न करता है जो “एक गंदे कपड़े के समान” नहीं  है — भले ही उसे अभी सिद्ध नहीं किया गया है।

वास्तव में, वह ऐसी धार्मिकता उत्पन्न करता है, और यह धार्मिकता परमेश्वर के लिए बहुमूल्य है और वास्तव में, अनिवार्य है — हमारे धर्मीकरण के आधार के रूप में नहीं (जो मात्र ख्रीष्ट की धार्मिकता है), परन्तु एक प्रमाण  के रूप में कि हम वास्तव में परमेश्वर की धर्मी ठहरायी गयी सन्तान हैं। यही वह बात है जिसके लिए पौलुस प्रार्थना करता है, और हमें भी प्रार्थना करनी चाहिए। वह फिलिप्पियों 1:10–11 में प्रार्थना करता है, “जिस से कि तुम उन बातों को जो सर्वोत्तम हैं अपना लो और ख्रीष्ट के दिन तक पूर्णतः सच्चे और निर्दोष बने रहो; धार्मिकता के फल से जो यीशु ख्रीष्ट के द्वारा प्राप्त होता है, परिपूर्ण होते जाओ, जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।”

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 362

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *