यह जानने के लिए कि सही क्या है, परमेश्वर अपने से ऊँचे किसी अधिकारी से सम्मति नहीं लेता है। उसके स्वयं का मूल्य जगत में सर्वश्रेष्ठ मूल्य है। इसलिए परमेश्वर के लिए उचित कार्य करने का अर्थ यह है कि वह इस रीति से कार्य करे जो कि इस सर्वश्रेष्ठ मूल्य के अनुरूप हो।
परमेश्वर की धार्मिकता वह असीम उत्साह और आनन्द और सुख है जो वह उसके प्रति रखता है जो कि सर्वोच्च रीति से मूल्यवान है, अर्थात् उसके स्वयं की सिद्धता और उसका मूल्य। और यदि वह कभी भी अपनी सिद्धता के निमित्त इस शाश्वत उत्साह के विपरीत कार्य करते पाया जाएगा, तो वह अधर्मी ठहरेगा—और वह तो एक मूर्तिपूजक होगा।
ऐसा धर्मी परमेश्वर कैसे हम जैसे पापियों पर अपने स्नेह को दर्शा सकता है जिन्होंने उसकी सिद्धताओं को तिरस्कारा है? परन्तु सुसमाचार में आश्चर्यजनक बात यह है कि उसकी ईश्वरीय धार्मिकता में ही हमारे उद्धार की वास्तविक नींव भी निहित है।
पुत्र के लिए पिता का असीम सम्मान ही यह सम्भव बनाता है कि मुझ दुष्ट पापी से, पुत्र में होकर के प्रेम किया जाए और स्वीकारा जाए, क्योंकि उसने अपनी मृत्यु में अपने पिता के मूल्य और उसकी महिमा को उचित ठहराया है।
ख्रीष्ट के कारण, हम भजनकार की प्रार्थना को नई समझ के साथ प्रार्थना कर सकते हैं, “हे प्रभु, अपने नाम के निमित्त, मेरा अधर्म, जो बड़ा है, क्षमा कर” (भजन 25:11)। वह नई समझ यह है कि ख्रीष्ट के कारण, केवल यह प्रार्थना करने के स्थान पर, “अपने नाम के निमित्त, मेरे अधर्म को क्षमा कर,” अब हम यह प्रार्थना करते हैं कि, “यीशु के नाम के निमित्त, हे प्रभु, मेरे अधर्म को क्षमा कर।”
1 यूहन्ना 2:12 यीशु की बात करते हुए कहता है, “बच्चो, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि तुम्हारे पाप उसके नाम के कारण क्षमा हुए हैं।” यीशु ने अब पाप के लिए प्रायश्चित किया है और पिता के सम्मान को उचित ठहराया है जिससे कि हमारे “पाप उसके नाम से क्षमा किए जाएँ।”
परमेश्वर धर्मी है। वह पाप को चटाई के नीचे नहीं छिपा देता है। यदि कोई पापी छोड़ दिया जाता है, तो उसके स्थान पर कोई अन्य मरता है, उस परमेश्वर की महिमा के उस अनन्त मूल्य को न्यायोचित ठहराने के लिए जिसकी उस पापी ने निन्दा की थी। ख्रीष्ट ने भी यही किया है। इसलिए, “हे प्रभु, अपने नाम के निमित्त” और “यीशु के नाम के निमित्त,” दोनों एक ही बात हैं। और इसलिए हम क्षमा के लिए भरोसे के साथ प्रार्थना करते हैं।