पवित्र लोगों की जो आवश्यकता हो उसमें उनकी सहायता करो। पहुनाई करने में लगे रहो। (रोमियों 12:13)
यदि हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करते हैं, प्रचुरता से देते हैं, और एक-दूसरे के लिए तथा आवश्यकता में पड़े हुओं के लिए अपने घरों को खोलते हैं तो फिर हमें इनका क्या पुरस्कार मिलेगा?
1. पवित्र लोगों के कष्ट दूर किए जाएँगे या कुछ कम हो जाएँगे। यही इस पद का अर्थ है जब यह कहता है “पवित्र लोगों की जो आवश्यकता हो उसमें उनकी सहायता करो।” हम बोझ को उठाते हैं। हम तनाव को कम करते हैं। हम आशा देते हैं। और यही हमारा पुरस्कार है!
2. परमेश्वर की महिमा प्रदर्शित की जाती है। “तुम्हारा प्रकाश मनुष्यों के सम्मुख इस प्रकार चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, महिमा करें” (मत्ती 5:16)। प्रचुरता से देना और खुले हुए घर आपके जीवन में परमेश्वर की महिमा और भलाई तथा महत्व को प्रदर्शित करते हैं। परमेश्वर हमें धन और घरों को इस कारण से देता है जिससे कि जिस रीति से हम उनका उपयोग करते हैं उससे लोग देख सकें कि ये वस्तुएँ हमारा परमेश्वर नहीं हैं। वरन् परमेश्वर ही हमारा परमेश्वर है। और वही हमारा कोष है।
3. परमेश्वर के प्रति और अधिक धन्यवादी होना। “क्योंकि इस सेवा कार्य के द्वारा न केवल पवित्र लोगों की घटियाँ पूरी होती हैं, वरन् परमेश्वर को बहुत धन्यवाद देने की भावना उमण्डती रहती है” (2 कुरिन्थियों 9:12)। परमेश्वर ने केवल हमें ही धन्यवादी बनाने के लिए धन और घरों को नहीं दिया है, परन्तु हमारी उदारता और अतिथि सत्कार के द्वारा अनेक लोगों को परमेश्वर के प्रति धन्यवादी बनाने के लिए भी।
4. परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम और हम में उसके प्रेम की पुष्टि होती है। “परन्तु जिस किसी के पास इस संसार की सम्पत्ति है और वह अपने भाई को आवश्यकता में देखकर भी उसके प्रति अपना हृदय कठोर कर लेता है तो उसमें परमेश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है?” (1 यूहन्ना 3:17)। दूसरे शब्दों में, जब हम उदारता से देते और अपने घरों को खोलते हैं, तो हमारे जीवन में परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि होती है। कि हम वास्तविक ख्रीष्टीय हैं तथा हम लोग पाखण्डी ख्रीष्टीय नहीं हैं।
5. अन्ततः, हम अपना कोष स्वर्ग में संचित करते हैं। “अपनी सम्पत्ति बेचकर दान कर दो। अपने लिए ऐसे बटुए बनाओ जो फटते नहीं, अर्थात समाप्त न होने वाला धन स्वर्ग में इकट्ठा करो…. क्योंकि जहां तुम्हारा धन है वहीं तुम्हारा मन भी लगा रहेगा” (लूका 12:33-34)।
ख्रीष्ट में पाए जाने वाले जीवन के केन्द्र के निकट में प्रचुरता से देना और खुला घर होता है। भय और लालच के बन्धन से जकड़े होने के कारणों से हम अपने बटुए — अपनी चेकबुक — और घरों को जितना खोलना चाहिए उतना नहींं खोलते हैं। ख्रीष्ट की उपस्थिति का सुख और ख्रीष्ट की प्रतिज्ञा की निश्चितता ही इसका उपचार है: “मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित ख्रीष्ट यीशु में है तुम्हारी प्रत्येक आवश्यकता पूरी करेगा” (फिलिप्पियों 4:19)।
हमारा पुरस्कार परमेश्वर की महिमा का प्रदर्शन, दूसरों की भलाई और ख्रीष्ट को बहुमूल्य जानकर सर्वदा के लिए एक साथ रखने का आनन्द है। इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करता हूं, “पवित्र लोगों की जो आवश्यकता हो उसमें उनकी सहायता करो। पहुनाई करने में लगे रहो।”