बहुत से लोग इस सोच से जूझते हैं कि – यदि परमेश्वर सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिशाली, सर्व-उपस्थित और भला है, तो उसकी सृष्टि में बुराई क्यों है? जब लोग अपने आस-पास बुराई को देखते हैं, तो उनके मन में यह प्रश्न उठता है कि “परमेश्वर भला कैसे हो सकता है?” यदि परमेश्वर की इच्छा में होकर संसार में हर एक बुराई होती है, तो फिर क्या परमेश्वर सच में “भला” है? यह प्रश्न केवल मस्तिष्क में सोचने के लिए नहीं है, परन्तु यह हमारे वास्तविक जीवनों से जुड़ा हुआ है। जब बीमारी, मृत्यु, आपदा और दुःख आते हैं, तो हम उन्हें कैसे समझें?
यद्यपि बुराई अपने आप में कोई “पदार्थ, धातु या वस्तु” नहीं है, फिर भी हम इसके परिणाम को देख सकते हैं। हम मुख्य रीति से बुराई को दो भागों में समझ सकते हैं –
- प्राकृतिक बुराई- मनुष्य के नियंत्रण के बाहर होने वाली घटनाएँ, जैसे तूफान, भूकम्प, बीमारी, महामारी और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ, इत्यादि।
- नैतिक बुराई- मनुष्यों के पापी स्वभाव के कारण किए गए बुरी क्रियाएँ, जैसे हत्या, शारीरिक शोषण, जातिवाद, इत्यादि।
हम सब ऐसी बुराइयों का सामना करते हैं, और हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो पीड़ित और निराश हैं। यह सच है कि परमेश्वर ने हमें बाइबल में बुराई और पीड़ा की समस्या के विषय में एक व्यापक उत्तर नहीं दिया है, फिर भी बाइबल इस विषय पर चुप भी नहीं है। आइए हम इस समस्या के विषय में सोंचे और परमेश्वर के वचन के आधार पर इन तीन बातों पर ध्यान दें।
1. संसार में बुराई का अस्तित्व है।
आदम और हव्वा के पाप के समय से संसार में हम बुराई के प्रभाव को अलग-अलग रीति से देखते हैं। मृत्यु, हत्या, बुरे-काम, प्राकृतिक आपदा इत्यादि वास्तविक बुराइयाँ हैं, जिनके विषय में हम हर दिन समाचार पत्रों में पढ़ते हैं। हम बुराई को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। पतन के बाद संसार में बुराई एक दुखद वास्तविकता है, और बाइबल इस बात को नहीं नकारती है।
इसको परमेश्वर के पुत्र ने भी अनुभव किया। यीशु ख्रीष्ट ने अपने जीवन में बुराई के अस्तित्व का सामना किया। उसने बीमारों को देखा, उसने अन्धों को देखा, उसने मृतकों को देखा, उसने निन्दा और अन्याय को सहा, और अन्ततः उसने स्वयं भी मृत्यु का अनुभव किया। इसीलिए हम इस बात से सान्त्वना पा सकते हैं कि यीशु ख्रीष्ट समझता है।
2. संसार में बुराई के अस्तित्व के पीछे भी परमेश्वर का भला उद्देश्य होता है।
भले ही हम अपनी सीमित बुद्धि से परमेश्वर के उद्देश्यों को नहीं समझ पाते हैं, परमेश्वर के हर कार्य के पीछे उसका एक भला उद्देश्य होता है। इस बात को उत्पत्ति की पुस्तक में यूसुफ ने समझा, जब उसने अपने भाइयों के दुर्व्यवहार के पीछे परमेश्वर के हाथ को पहचाना (उत्पत्ति 50:20)। यूसुफ के जीवन के द्वारा परमेश्वर ने न केवल याकूब के परिवार को उस समय अकाल से बचाया, परन्तु साथ में उसने यहूदा की वंशावली को बचाए रखा जिसमें आगे हमारे उद्धारकर्ता यीशु ख्रीष्ट का जन्म हुआ। यीशु की मृत्यु में भी, जो संसार के इतिहास में बुराई का सबसे बड़ा उदाहरण है, हम देखते हैं कि परमेश्वर का भला उद्देश्य था। उसकी मृत्यु के प्रचार के द्वारा आज दो हज़ार वर्ष बाद भी परमेश्वर को महिमा मिलती है, जब लोग पापों से पश्चाताप करके उसकी ओर फिरते हैं।
3. बुराई के साथ सब कुछ समाप्त नहीं होता है।
पवित्रशास्त्र कभी भी बुराई के अस्तित्व का इनकार नहीं करता है, परन्तु इस बात की पुष्टि करता है कि एक दिन बुराई पर अन्ततः विजय प्राप्त की जाएगी। परमेश्वर बुराई की शक्ति की तुलना में अत्यधिक सामर्थी है। इस बात को हम यीशु के पुनरुत्थान में देखते हैं। यीशु ख्रीष्ट का मृत्यु के ऊपर विजय पाना और जीवित हो उठना यह प्रमाणित करता है कि परमेश्वर हारा नहीं परन्तु विजयी हुआ है। यीशु ख्रीष्ट मृतकों में से जी उठा और उसका पुनरुत्थान हमें भी इस बुराई के मध्य एक जीवित आशा देता है। परमेश्वर ने यीशु ख्रीष्ट को जिलाया, और इसके साथ ही परमेश्वर का वचन उस अन्तिम और सिद्ध विजय की बात करता है जिसमें हम एक दिन प्रवेश करेंगे। उस जीत के कुछ अंश को हम यहाँ देखते हैं (जो कि मुख्य रूप से हमारे उद्धार से जुड़ा हुआ है) परन्तु उसकी परिपूर्णता में भी हम एक दिन सहभागी होंगे, जब “न मृत्यु रहेगी न कोई शोक, न विलाप और न पीड़ा रहेगी” (प्रकाशितवाक्य 21:4)।
तो बुराई के बीच में हम क्या सीखते हैं और दूसरों को क्या आशा दे सकते हैं ?
हम यीशु के जीवन की ओर देख सकते हैं। यीशु बुराई से अनजान नहीं है; वह बुराई की वास्तविकता को जानता है। क्योंकि यीशु ने स्वयं बुराई का अनुभव अपने जीवन में किया और उसका सामना किया, हम उसकी ओर देख सकते हैं और निराशा के ऊपर जय पा सकते हैं। यीशु का दुःख सहना हमें पाप की वास्तविकता के विषय में सचेत करता है और हमें सुसमाचार के महत्व पर विचार करने के लिए संकेत देता है, क्योंकि सुसमाचार ही हमें एक जीवित और धन्य आशा देता है। परमेश्वर अपनी महिमा का उच्चतम और स्पष्ट प्रदर्शन इस बात से दिखाता है कि हम जैसे पापियों के लिए उसने अपने पुत्र को दुःख, क्लेश, पीड़ा को सहने के लिए संसार में भेजा। यह परमेश्वर के अनुग्रह की महानता को दर्शाता है जिसके द्वारा यीशु ने इन बातों को सहा और हमें भी आश्वासन देता है कि परमेश्वर का अनुग्रह हमें भी इन दुःख, क्लेश और पीड़ा में सम्भालेगा।
यीशु के दुःख उठाने के कारण हम परमेश्वर के क्रोध से बचते हैं। हमें सुसमाचार से शान्ति और आश्वासन मिलता है। हमारे क्लेश और दुःख के मध्य हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर ने यीशु ख्रीष्ट के द्वारा अनन्त जीवन का उपहार हमें दिया है जो एक बहुमूल्य उपहार है। इस उपहार का मूल्य सोने, चांदी, हीरे या फिर किसी और बातों से कहीं अधिक है। क्रोध की सन्तान से अब हम परमेश्वर की लेपालक सन्तान बनाए गए हैं। अब हमारे ऊपर दण्ड की आज्ञा नहीं रही (इफिसियों 2:1-3, यूहन्ना 1:12, रोमियों 8:1)। हम एक समय भटके हुए थे, जो आशा रहित थे, दया रहित थे पर अब यीशु ख्रीष्ट के द्वारा आज हमारा मेल-मिलाप परमेश्वर के साथ हो गया है। क्लेश, दुःख और पीड़ा के मध्य यह हमें निश्चयता देता है (1 पतरस 2:10)।
यीशु ने मृत्यु पर जय प्राप्त किया है, और हम इस जीत से साहस पाते हैं। दुःख उठाकर यीशु ने मृत्यु पर जय पाया और उसके डंक को मिटा दिया है और हमें पाप के दासत्व से स्वतन्त्र कर दिया है (इब्रानियों 2:14-15,1 कुरिन्थियों 15:55-57)। हो सकता है कि हम अभी बुराई का सामना कर रहे हैं, परन्तु एक दिन उस सम्पूर्ण जय में प्रवेश करेंगे जब हम उस नई सृष्टि का भाग बनेंगे। पुनरुत्थान की सच्चाई हमें दुःख व क्लेश के मध्य हमें आशा देती है। पुनरुत्थान की आशा हमें दुःख, क्लेश का सामना करने के लिए प्रेरित करती है। पुनरुत्थान की सच्चाई यह निश्चयता प्रदान करती है कि हम उस जीवन को प्राप्त करेंगे जिसके लिए हम आस रखते हुए और बाट जोहते हुए संसार में क्लेश और दुःख का सामना कर रहे हैं। यीशु ने स्वेच्छा से सब क्लेश, दुःख और बुराई को सहा क्योंकि वह इसके अन्त को जानता था। इसलिए हम भी यीशु की ओर दृष्टि करें।