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“स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिए जाओ और सब जातियों के लोगों को चेले बनाओ तथा उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और जो जो आज्ञाएं मैंने तुम्हें दी हैं उनका पालन करना सिखाओ। और देखो, मैं युग के अन्त तक सदैव तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:18-20)
मत्ती का अन्तिम अध्याय एक ऐसी खिड़की के समान है जो जी उठे ख्रीष्ट की महिमा उदय की ओर खुलती है। और इसके द्वारा आप ख्रीष्ट के चरित्र के पर्वत की कम से कम तीन भव्य चोटियों को देख सकते हैं: उसकी शक्ति की चोटी, उसकी दयालुता की चोटी, तथा उसके उद्देश्यपूर्ण होने की चोटी।
सारा अधिकार उसका है— अर्थात् उसकी इच्छा पूरी करने के लिए अधिकार और शक्ति। और वह इस शक्ति का उपयोग सब जातियों में से चेले बनाने के अपने अटल उद्देश्य को पूरा करने के लिए करता है। और जब वह अन्त तक हमारे साथ रहने की यह प्रतिज्ञा करता है तो इस प्रक्रिया में वह व्यक्तिगत रीति से हमारे प्रति दयालु है।
हम सब अपने हृदय में जानते हैं कि यदि जी उठा ख्रीष्ट महानता की प्रशंसा करने की हमारी अभिलाषा को सन्तुष्ट करने जा रहा है, तो उसे ऐसा ही होना चाहिए। शक्ति में महान्। दयालुता में महान्। उद्देश्यपूर्णता में महान्।
जो लोग अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल होते हैं वे महानता की प्रशंसा करने में हमारी अभिलाषा को सन्तुष्ट नहीं कर पाएँगे। हम उन लोगों की और भी कम प्रशंसा करते हैं जिनके जीवन में कोई उद्देश्य नहीं है। और उनकी प्रशंसा तो और भी कम करते हैं जिनके उद्देश्य केवल स्वार्थी और दया रहित हैं।
जो हम देखने और जानने की लालसा करते हैं वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसकी शक्ति असीमित है, जिसकी दया कोमल है, और जिसका उद्देश्य एकल और दृढ़ है।
उपन्यासकार और कवि तथा फिल्म निर्माता और टीवी लेखक समय-समय पर इस व्यक्ति, अर्थात् ख्रीष्ट की एक प्रतिछाया को बनाते हैं। परन्तु वे हमारी आराधना करने की लालसा को उतना ही संतुष्ट कर सकते हैं जितना कि इस महीने का नैशनल जियोग्राफिक चैनल बड़ी घाटी (Grand Canyon) को देखने की मेरी लालसा को पूरी कर सकता है।
हमारे पास वास्तविक वस्तु होनी ही चाहिए। हमें अवश्य ही सभी शक्ति और दयालुता तथा उद्देश्यपूर्णता के मूल को देखना चाहिए। हमें अवश्य ही जी उठे ख्रीष्ट को देखना चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए।







