सताव के मध्य हमारा विश्वास परखा जाता है।  

“भले ही तुम्हें अभी कुछ समय के लिए विभिन्न परीक्षाओं द्वारा दुख उठाना पड़ा हो कि तुम्हारा विश्वास -जो आग में ताए हुए सोने से भी अधिक बहुमूल्य है -परखा जाकर यीशु ख्रीष्ट के प्रकट होने पर प्रशंसा, महिमा और आदर का कारण ठहरे”। (1 पतरस 1:6-7)

विश्वासियों को अपने जीवन में प्रायः विरोध या सताव का सामना करना पड़ता है। और सताव के मध्य में ऐसे विचारों का आना स्वाभाविक है कि – क्या यह परमेश्वर की इच्छा के विपरीत हो रहा है? क्या परिस्थिति परमेश्वर के नियन्त्रण से बाहर हो गई है इसलिए उसके लोगों को सताव का सामना करना पड़ रहा है? किन्तु हम जानते हैं कि परमेश्वर सम्प्रभु है और सब कुछ उसके नियन्त्रण में है। 

तो प्रश्न यह है कि यदि सब कुछ परमेश्वर के नियन्त्रण में है तो फिर वह हमारे जीवन में सताव को क्यों आने देता है? क्यों उसने अय्यूब, दानिय्येल और पौलुस जैसे ईश्वरभक्त लोगों के जीवन में सताव को आने दिया? क्या परमेश्वर हमारे विश्वास को परखने के लिए सताव को आने देता है? और क्या हमें यह मानकर चलना चाहिए हम सताव का सामना करेंगे? आइए, हम परमेश्वर अपने वचन में इसके विषय में 4 बातें देखें –

1. ख्रीष्टीय जीवन में सताव का आना सामान्य बात है – यदि आप सताव में से होकर जा रहे हैं तो आपको सबसे पहले यह समझना है कि आप वह पहले व्यक्ति नहींं हैं जिसके जीवन में सताव आया है। बाइबल में हम पाते हैं कि लोग विश्वास के कारण आरम्भ से ही सताव का सामना करते आ रहे हैं। हाबिल अपने विश्वास के कारण सताया गया था। शरीर से जन्मा हुआ इश्माएल आत्मा से जन्मे हुए इसहाक को सताता था (गलातियों 4:29)। मिस्री लोग परमेश्वर के लोगों को सताते थे, शाऊल राजा के द्वारा दाऊद को सताया गया, यिर्मयाह जैसे नबियों को सताया गया था, और स्वयं यीशु ख्रीष्ट और उनके चेलों को भी सताव का सामना करना पड़ा था। 

अतः जो लोग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी हैं उनके जीवन में सताव का आना एक सामान्य बात है। इसीलिए पौलुस प्रेरितों के काम 14:22 में, विश्वासियों से कहता है कि “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।”

2. सताव हमें विश्वास में खरा और सिद्ध बनाता है – पतरस कहता है कि जब तुम विभिन्न परीक्षाओं द्वारा दुख उठाते हो तो तुम्हारा विश्वास आग में ताए हुए सोने से भी अधिक बहुमूल्य हो जाता है। आग में ताया जाना सोने को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है। जब सोने को आग में ताया जाता है तो उसकी सारी अशुद्धता जलकर नष्ट हो जाती है और जो बचता है वह खरा सोना होता है। इसी प्रकार कभी-कभी परमेश्वर हमें विश्वास में खरा और सिद्ध बनाने के लिए सताव को आने देता है। जिससे कि परमेश्वर के सच्चे लोग सताव के मध्य में अपने विश्वास में सिद्ध हो जाएँ। और ऐसे लोग ही अपने उद्धारकर्ता के प्रकट होने पर उसके लिए प्रशंसा, महिमा और आदर का कारण ठहरेंगे (1 पतरस 1:6-7)।  

3. सताव हमें घमण्ड से बचाकर नम्रता में बढ़ाता है – पौलुस 2 कुरिन्थियोंं 12:7-10 में कहता है कि परमेश्वर ने मुझे घमण्ड से बचाने के लिए मेरे शरीर में एक काँटा चुभाया है। और वह काँटा शैतान का एक दूत है जो उस को दुख देता है जिससे कि पौलुस घमण्ड करने से बचा रहे। और जब वह निर्बलताओं, अपमानों, दुखों और सतावों में से होकर जाता है तब परमेश्वर उसको अपना अनुग्रह प्रदान करता है। कष्टों के मध्य में स्वयं ख्रीष्ट की सामर्थ्य उसमें कार्य कर रही होती है। इसीलिए वह कहता है कि “मैं सहर्ष अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा। जिससे कि मसीह का सामर्थ्य मुझमें निवास करे” (पद 9)। अतः जब विश्वासियों के जीवन में परमेश्वर सताव को को आने देता है, तो इससे उनकी आत्मिक भलाई होती है और वे घमण्ड छोड़कर नम्रता में बढ़ते हैं। 

4. सताव हमें यीशु के समान बनने में सहायता करता है –  हम एक ऐसे पतित संसार में रहते हैं जहाँ अनेकोंं लोग परमेश्वर के विरोध में जीवन जीते हैं। वे न केवल परमेश्वर का विरोध करते हैं परन्तु उनका भी विरोध करते हैं जो परमेश्वर के पीछे चलते हैं। इसी कारण जो भक्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं वे इस संसार में सताए जाएँगे (2 तीमुथियुस 3:12। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा उदाहरण प्रभु यीशु ख्रीष्ट है जिसने स्वयं अपने जीवन में कष्ट सहे थे। और उसने यह भी कहा है कि “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता है यदि उन्होंने मुझे सताया है तो वे तुम्हें भी सताएँगे” (यूहन्ना 15:20)। और यीशु के अनुयायी होने के नाते हमें भी अपना क्रूस उठाकर उसके पीछे चलना है (लूका 14:27)।

अतः यदि हम इस संसार में धार्मिकता से जीवन जीएँगे सताव आना सम्भव है। किन्तु हम इससे विचलित नहीं होंगे, क्योंंकि यीशु ने हमें अपने लहू के द्वारा पवित्र करने के लिए दुख उठाया है। इसीलिए आइए हम भी उसकी निन्दा को अपने ऊपर लिए हुए उसके पास जाने को तैयार रहें। क्योंकि यहाँ हमारा कोई स्थाई नगर नहीं है, परन्तु हम उस नगर की खोज में हैं जो आने वाला है (इब्रानियों 13:12-14)।

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प्रेम प्रकाश
प्रेम प्रकाश

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और प्रभु की सेवा में सम्मिलित हैं।

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