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सताव हमारा अन्त नहीं है।

बहुत सारे ख्रीष्टीय हुए हैं, जिनको केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया, क्योंकि वे यीशु से प्रेम करते थे और उसके पीछे चल रहे थे। और किसी भी मूल्य पर यीशु का अस्वीकार नहीं किया। यीशु के शिष्य सताव में से होकर गए। कलीसिया के इतिहास में बहुत सारे ख्रीष्टियों को मार डाला गया। कुछ को भूखे शेर के सामने डाल दिया गया, कुछ को क्रूस पर लटका कर मार डाला गया तथा विभिन्न प्रकार से विश्वासियों को मारा गया। ऐसे ख्रीष्टियों के साथ होता आया है।  

वर्तमान में भी सताव ख्रीष्टीय जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। यदि हम विश्वासी हैं, तो हमको सताव की अपेक्षा करनी चाहिए। जब हम लोगों के द्वारा घृणा, बैर, विरोध का सामना करते हैं। तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि संसार ने हमसे पहले यीशु से बैर रखा। जब हमें संसार प्रिय नहीं जानता, हमें स्वीकार नहीं करता तो यह स्पष्ट चिन्ह है कि हम इस संसार के नहीं हैं। परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि उसने हमें संसार में से चुन लिया है। और उसने चुना है तो हमें उसका मूल्य भी चुकाना है। हम संसार द्वारा घृणित माने जाएँगे। जब यीशु को, जो हमारा स्वामी है, उसको सताया गया तो हम भी सताए जाएँगे (यूहन्ना 15:18-20)। 

ख्रीष्टीय जीवन में सताव का सामना हम सबको करना है। यह बात निश्चित है कि जो कोई ख्रीष्ट यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहता है, वह सताया जाएगा (2 तीमुथियुस 3:12)। तो यह बात स्पष्ट है कि ख्रीष्टीय जीवन सताव से जुड़ा हुआ जीवन है। भक्ति का जीवन जीने की इच्छा करना सताव की इच्छा की अपेक्षा करना है। यदि हम यीशु के पीछे चलने का दृढ़कथन करते हैं और सोचते हैं कि हम सताव, दुःख, पीड़ाओं से बचे रहेंगे, तो हमें सोचने की आवश्यकता है कि हम सताए गए यीशु के पीछे चल रहे हैं या किसी और के पीछे!

सताव, उत्पीड़न की वास्तविकता को जाननते हुए हम विश्वासियों को तैयार होने की आवश्यकता है कि हम ख्रीष्ट के लिए इसे सहन करेंगे। किन्तु यीशु का इनकार नहीं करेंगे। यीशु स्वयं आश्वासन देते हैं कि जब हम ख्रीष्ट के कारण निन्दा सह रहे हैं, सताए जा रहे हैं, हमारे विरुद्ध झूठी बातें कही जा रही हैं, तो हमें आनन्दित होना है। आनन्दित होने का कारण यह है कि हमारे लिए स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है (मत्ती 5:11-12)। तो हमारे लिए इस संसार में खोने के लिए कुछ नहीं है। हमारे साथ यहाँ पर यदि दुर्व्यहार होता है, तो उसका न्याय होगा। यह सदा तक बना नहीं रहेगा, वरन् इसी संसार तक है।

अत: हमें स्मरण रखना है कि सताव ख्रीष्टियों के लिए एक वास्तविकता है, न कि उनके लिए अन्त। इसलिए हमें सताव के मध्य में यीशु पर भरोसा रखते हुए सताव को सहना है और ख्रीष्ट का अनुसरण करना है। हमें यीशु के सामर्थ्य पर भरोसा करना है और यह स्मरण रखना है कि सताव हमारा अन्त नहीं है। हम यीशु में अनन्त काल के दण्ड से बचाए जा चुके हैं, सताव हमारे ख्रीष्टीय जीवन का अन्त नहीं कर सकती। 

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
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