सेंतमेंत में दिया गया अनुग्रह 

परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है, अपने उस महान प्रेम के कारण जिस से उसने हमसे प्रेम किया, जबकि हम अपने अपराधों के कारण मरे हुए थे उसने हमें मसीह के साथ जीवित किया - अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है- और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया और स्वर्गीय स्थानों में बैठाया। (इफिसियों 2:4-6)

हृदय परिवर्तन में परमेश्वर का निर्णायक कार्य यह है कि उसने “हमें मसीह के साथ जीवित” तब किया जब “हम अपने अपराधों के कारण मरे हुए थे।” दूसरे शब्दों में, हम परमेश्वर के प्रति मरे हुए थे। हम अनुत्तरदायी थे; हमारे पास कोई सच्चा आत्मिक स्वाद या रुचि नहीं थी; मसीह की सुन्दरता को देखने के लिए हमारे पास कोई आत्मिक दृष्टिकोण नहीं था; हम तो अन्ततः महत्व रखने वाली उन सभी बातों के प्रति मृतक थे।

तब परमेश्वर ने कार्य किया – अप्रतिबन्धित रीति से (unconditionally) – इससे पहले कि हम उसकी उपस्थिति के योग्य पात्र बनने के लिए कुछ भी कर पाते। उसने हमें जीवित किया। उसने सम्प्रभुता में हमें मसीह की महिमा देखने के लिए आत्मिक मृत्यु की नींद से जगाया (2 कुरिन्थियों 4:4)। आत्मिक इन्द्रियाँ जो मर चुकी थीं, आश्चर्यजनक रीति से जीवित हो गईं। 

इफिसियों 2:4 कहता है कि यह “दया” का कार्य था। अर्थात् परमेश्वर ने हमारी मृतक स्थिति में देखा और हम पर तरस खाया। परमेश्वर ने पाप की भयानक मजदूरी को अनन्त मृत्यु और दुख की ओर ले जाते हुए देखा। “परमेश्वर ने दया के धनी  होने के कारण… हमें जीवित कर दिया।” और उसकी करूणा का असीम धन हमारी आवश्यकता के अनुसार हम पर उमड़ पड़ा। परन्तु इस स्थल के विषय में अद्भुत बात यह है कि पौलुस अपने वाक्य के प्रवाह को यह समझाने के लिए तोड़ता है कि — अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ — और हमें उसके साथ उठाया गया है।” 

पद 8 में पौलुस इसे पुन: कहने जा रहा है। तो वह इसे यहाँ पर जोड़ने के लिए अपने स्वयं के वाक्य के प्रवाह को क्यों तोड़ता है? इसके अतिरिक्त, यहाँ पर मुख्य ध्यान मृत्यु की हमारी दयनीय दुर्दशा के प्रति परमेश्वर की दयापूर्ण प्रतिक्रिया पर है; तो पौलुस क्यों अपनी बात से थोड़ा हट कर के यह कहता है कि अनुग्रह  के द्वारा हम बचाए गए हैं? 

मुझे लगता है कि इसका उत्तर यह है कि पौलुस मानता है कि सेंतमेंत  में मिले अनुग्रह पर बल देने के लिए यहाँ एक उचित अवसर है। जैसा कि वह हृदय परिवर्तन से पहले हमारी मृतक स्थिति का वर्णन कर रहा है, उसे आभास होता है कि मृतक लोग माँगों को पूरा नहीं कर सकते हैं। यदि उन्हें जीना है, तो उन्हें बचाने के लिए परमेश्वर का कार्य पूरी रीति से बिना प्रतिबन्ध के और पूरी रीति से सेंतमेंत होना चाहिए। यह स्वतन्त्रता अनुग्रह के वास्तविक हृदय में पायी जाती है।

एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को मृतकों में से जीवित करने से अधिक, एक पक्षीय और बिना किसी प्रतिबन्ध का कार्य और क्या हो सकता है! अनुग्रह का अर्थ यही होता है। 


फ्यूचर ग्रेस, पृष्ठ 79 से भक्तिमय अंश

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 362

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *