शोक और पीड़ा और निराशा में, लोग प्राय: ऐसी बातें कह देते हैं जिनको वे अन्यथा नहीं कहेंगे। वे कल सूर्य उदय हो जाने के उपरान्त जैसी वास्तविकता का चित्रण करेंगे उसकी तुलना में अभी बहुत ही गहरे रंग से उसका चित्रण करेंगे। वे केवल दुख भरे धुनों को गुनगनाते हैं और ऐसे बात करते हैं जैसे कि वही एकमात्र धुन है। वे केवल बादलों को ही देखते हैं, और ऐसे बातें करते हैं जैसे कि आकाश है ही नहीं।
वे कहते हैं कि, “परमेश्वर कहाँ है?” या: “चलते रहने का कोई लाभ नहीं है।” या: किसी भी बात का कोई अर्थ नहीं है।” या: “मेरे लिए कोई आशा नहीं है।” या: “यदि परमेश्वर भला होता, तो ऐसा नहीं हो सकता था।”
हम इन प्रकार के कथनों का प्रतिउत्तर कैसे करें?
अय्यूब कहता है कि हमें उनकी निन्दा करने की आवश्यकता नहीं है। ये शब्द वायु की नाई हैं, या शाब्दिक रूप से “वायु के लिए” हैं। वे शीघ्र ही उड़ा दिए जाएँगे। परिस्थितियों में मोड़ आएगा, और निराश व्यक्ति उस अंधेरी रात से जगा दिया जाएगा, और अपने उतावलेपन में कहे गए शब्दों के लिए खेद प्रकट करेगा।
इसलिए बात यह है कि हम ऐसे शब्दों की भर्त्सना करने में अपना समय और ऊर्जा व्यय न करें। वे वायु में स्वयं ही उड़ जाएँगे। पतझड़ में पत्तियों को काटने की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक व्यर्थ श्रम है। वे शीघ्र ही स्वयं उड़ा लिए जाएँगे।
ओह, कितने शीघ्र ही हम परमेश्वर का, या फिर कभी-कभी सत्य का बचाव उन शब्दों से करने लगते हैं जो केवल वायु के लिए बोल दिए गए हैं। यदि हमारे पास परख की समझ होती, तो हम उन शब्दों के बीच में भेद कर पाते जो जड़ पकड़े हुए हैं तथा जो वायु में उड़ने वाले हैं।
ऐसे शब्द भी हैं जिनकी जड़ें गहरी त्रुटि और गहरी बुराई में पाई जाती हैं। परन्तु सभी नकारात्मक शब्द अपना रंग एक काले हृदय से ही नहीं पाते हैं। कुछ तो मुख्य रूप से पीड़ा और निराशा से रंगे होते हैं। आप जिन बातों को सुनते हैं वह सर्वथा भीतर की सबसे गहरी बातें नहीं होती हैं। वे जहाँ से आ रही होती हैं वहाँ भीतर कुछ वास्तव में अंधकारमय होता है। परन्तु यह अस्थायी है- जो एक क्षणिक संक्रमण के नाई है- जो की वास्तविक है, पीड़ादायक है, परन्तु उस व्यक्ति की सच्चाई नहीं है। इसलिए, आइए हम यह परख करना सीखें कि हमारे विरुद्ध, या परमेश्वर के विरुद्ध, या सत्य के विरुद्ध बोले गए शब्द केवल वायु के नाई तो नहीं हैं — प्राण की गरहाई से नहीं, वरन् पीड़ा में बोले गए हैं। यदि वे शब्द केवल वायु के लिए ही हैं, तो हम मौन होकर प्रतीक्षा करें, न कि तुरन्त निन्दा करें। हमारे प्रेम का लक्ष्य दुखों की निन्दा करना नहीं वरन् आत्मा को पुनः स्थापित करना है।