पवित्रता क्यों आवश्यक है?

उस पवित्रता के खोजी बनो, जिसके बिना प्रभु को कोई भी नहीं देख पाएगा। (इब्रानियों 12:14)

क्या आपने कभी विचार किया है कि हमें पवित्रता की आवश्यकता क्यों है? सम्भवतः आप कहेंगे कि परमेश्वर का वचन हमें पवित्र बनने की आज्ञा देता है। यह सत्य है कि हमें पवित्र बनाने के लिए परमेश्वर ने हमें अन्धकार के राज्य से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया है, ताकि हम उसके जैसे बनते चले जाएं। इसीलिए ख्रीष्ट ने अपने आपको हमारे लिए दे दिया ताकि हम पवित्र हो जाएं। किन्तु हमारे लिए चेतावनी की बात यह है कि बिना पवित्रता के कोई भी प्रभु को नहीं देखने पाएगा भले ही हमारा नैतिक व्यवहार बहुत अच्छा हो, हमें वचन का ज्ञान हो और हम ईश्वरभक्त लोगोंं की संगति में रहते हों फिर भी यह सम्भव है कि हम पवित्रता से वंचित रह जाएं। इसलिए आइए हम विचार करें कि ख्रीष्टीय व्यक्ति के लिए पवित्रता क्यों आवश्यक है?

 हम स्वर्ग में तब तक सन्तों के समान नहीं गिने जाएंगे, जब तक हम पृथ्वी पर सन्तों के समान जीवन नहीं जीएंगे।

परमेश्वर की आज्ञा पूरी करने के लिए: पवित्रता परमेश्वर का चरित्र है और वह चाहता है कि उसके लोग पवित्रता से शोभायमान हों (भजन 96:9)। हमें परमेश्वर के आज्ञाकारी बच्चों के समान पुरानी अभिलाषाओं को छोड़कर अपने बुलाने वाले परमेश्वर के समान समस्त आचरण में पवित्र बनना है (1पतरस 1:14-15)। यह केवल परामर्श नहीं है कि हम चाहें तो ऐसा करें या न करें, परन्तु यह उसकी आज्ञा है। वह बलिदानों से बढ़कर अपनी आज्ञा के माने जाने से प्रसन्न होता है। और वह हमसे कहता है कि “तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ ” (1पतरस 1:16)। यद्यपि यह सत्य है कि हम अपनी क्षमता में पवित्र नहीं बन सकते हैं, परन्तु ख्रीष्ट की धार्मिकता के कारण हम पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से पवित्रता में बढ़ सकते हैं। और यह पवित्रता हमें उसकी सिद्धता में बढ़ने में सहायता करेगी। अत:आइए हम सिद्ध बनें, जैसे कि हमारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है (मत्ती 5:48)।

उद्धार प्राप्त जीवन में बढ़ने के लिए: पवित्रता न केवल परमेश्वर की आज्ञा है किन्तु यह हमारे उद्धार के जीवन को भी प्रदर्शित करती है। परमेश्वर ने हमें अपने पूर्वज्ञान में होकर चुना और पवित्र आत्मा के द्वारा नया जन्म दिया, ताकि हम उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं (रोमियों 8:14)। इसीलिए हमें पवित्रता हेतु उसकी बुलाहट को गम्भीरता से लेना है। क्योंकि “उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पूर्व मसीह में चुन लिया कि हम उसके समक्ष प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों ” (इफिसियों 1:4)। और यदि हम पवित्रता में नहीं बढ़ रहे हैं तो हमारा विश्वास अपने आप में मृतक है। ध्यान रखिए कि हम स्वर्ग में तब तक सन्तों के समान नहीं गिने जाएंगे, जब तक हम पृथ्वी पर सन्तों के समान जीवन नहीं जीएंगे। 

एक सच्चा विश्वासी इस संसार में पवित्रता का जीवन जीएगा क्योंकि वह जानता है कि आने वाले संसार में सब कुछ पवित्र है।

सुसमाचार की गम्भीर साक्षी देने के लिए: यदि हम नियमित रीति से पवित्रता में नहीं बढ़ रहे हैं तो लोग हमारे जीवन से सुसमाचार की दृढ़ साक्षी को नहीं देख पाएंगे। बिना पवित्रता के हम लोगों के सामने ख्रीष्ट को प्रस्तुत करने वाला जीवन नहीं जी पाएंगे। और न ही हम परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर पाएंगे। ध्यान रखिए कि हम ख्रीष्ट के द्वारा परमेश्वर की सन्तान बनाए गए हैं। यदि हम परमेश्वर की सन्तान हैं तो फिर उसके जैसा पवित्र जीवन भी जीएं। और हमारा पवित्र जीवन उस सन्देश को ग्रहणयोग्य बनाएगा जो जीवन को बदलने की सामर्थ्य रखता है। 

स्वर्गीय जीवन का अभ्यास करने के लिए: परमेश्वर की सन्तान को इस संसार में बिना समझौता किए पवित्रता का जीवन व्यतीत करना आवश्यक है। क्योंकि यह संसार हमारा नहीं है। हम यहाँ  परदेशी और पराए हैं। हम एक उत्तम स्वर्गिक नगर की खोज में हैं जो आने वाला है। जिसमें न कोई मृत्यु, न शोक, न विलाप और न ही कोई पीड़ा है। और इससे भी बढ़कर वहां कोई भी अपवित्र वस्तु या व्यक्ति नहीं रहेगा (प्रकाशितवाक्य 21:4-5, 27)। और यदि हम उस नगर में जाने की अभिलाषा रखते हैं तो फिर इस जीवन में हमें उस पवित्रता का अभ्यास करना होगा। अन्यथा यह कैसे पता चलेगा कि हम उसकी प्रतीक्षा में हैं। एक सच्चा विश्वासी इस संसार में पवित्रता का जीवन जीएगा क्योंकि वह जानता है कि आने वाले संसार में सब कुछ पवित्र है। 

अतः आप अपने विषय में विचार कीजिए। क्या आप पवित्र बनना चाहते हैं? क्या आपके अन्तःकरण में पवित्र बनने की चाह है? क्या आप ईश्वरीय आचरण में सहभागी होना चाहते हैं? यदि हाँ तो ख्रीष्ट के पास आइए। किसी और की प्रतीक्षा मत कीजिए। देर मत कीजिए। उसके पास जाइए और कहिए कि वह आपको पवित्र बनने में सहायता करे, क्योंकि बिना पवित्रता के कोई परमेश्वर को नहीं देखेगा।

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प्रेम प्रकाश
प्रेम प्रकाश

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और प्रभु की सेवा में सम्मिलित हैं।

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