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ध्वस्त एवं प्रसन्न

“तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे निज प्रजा होने के लिए पृथ्वी भर की सब जातियों में से चुना है।” (व्यवस्थाविवरण 7:6)

अनुग्रह के सिद्धान्त — जो कि हमारे उद्धार में परमेश्वर की सम्प्रभुता की शिक्षा के विषय में कैल्विनवादी शिक्षा (ट्यूलिप-TULIP) के लिए पुराना प्यूरिटन शब्द है — अनुग्रह के ये सिद्धान्त कैसे प्रतीत होंगे यदि इस पेड़ की प्रत्येक शाखा में ऑगस्टीनीय आनन्द का रस बह रहा हो (जो कि “ख्रीष्टीय सुखवाद” है)?

  • सम्पूर्ण भ्रष्टता मात्र बुराई नहीं है, परन्तु यह तो परमेश्वर की सुन्दरता के प्रति अन्धापन, और उस गहरे आनन्द के प्रति मृतकता है।
  • अप्रतिबन्धित चुनाव का अर्थ यह है कि हमारे आनन्द की परिपूर्णता, त्रिएकता की सहभागिता में परमेश्वर के आनन्द के उमड़ने के रूप में हमारे अस्तित्व से पूर्व ही यीशु ख्रीष्ट में पूर्ण होने के लिए नियोजित थी।
  • सीमित प्रायश्चित्त यह आश्वासन है कि नई वाचा के लहू के द्वारा परमेश्वर में अमिट आनन्द परमेश्वर के लोगों के लिए अचूक रीति से सुरक्षित है।
  • अप्रतिरोध्य अनुग्रह परमेश्वर का वह समर्पण तथा सामर्थ्य है जिसके द्वारा वह इस बात का ध्यान रखता है कि हम आत्मघाती सुख में तो नहीं फँस गए हैं, और यह भी कि वह हमें उत्तम आनन्दों के द्वारा इनसे छुड़ाता है।
  • सन्तों का डटे रहना परमेश्वर का वह शक्तिशाली कार्य है जो हमें ओछे सुख के दास्तव में फँसने नहीं देता है, परन्तु हमें सभी दुःखों तथा क्लेशों में बनाए रखता है जिससे कि हम उसकी उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी की मीरास पाएँ, और उसके दाहिने हाथ से सर्वदा के लिए सुख प्राप्त करें।

इन पाँचों में से अप्रतिबन्धित चुनाव मेरे प्राण को सबसे कठोर और सबसे मधुर जान पड़ता है। इसकाअप्रतिबन्धित वाला विचार ही है जो स्वयं की बड़ाई करने के पूरे विचार को ध्वस्त कर देता है (यह कठोर भाग है); और यह चुनाव  का विचार ही है जो मुझे उसकी निज प्रजा बनाता है (यह मधुर भाग है)। 

अनुग्रह के बाइबलीय सिद्धान्तों की सुन्दरता में से एक यह है: इनका सबसे बड़ा विनाश हमें इनके सबसे उत्तम हर्ष के लिए तैयार करता है। 

यदि चुनाव का कार्य हम पर किसी भी रीति से निर्भर होता तो हम इन वचनों के कारण  “तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे निज प्रजा होने के लिए पृथ्वी भर की सब जातियों में से चुना है।” (व्यवस्थाविवरण 7:6), कितने स्वधर्मी बन गए होते। किन्तु घमण्ड से हमें बचाने के लिए प्रभु हमें सिखाता है की हम अप्रतिबन्धात्मक  रीति से चुने गए है  (व्यवस्थाविवरण 7:7-9)। “उसने मुझ निकृष्ट मनुष्य को अपनी प्रजा बना लिया है” जैसा कि हम हर्ष से गाते भी हैं।

केवल विनाशकारी स्वतन्त्रता और चुनाव करने वाले अनुग्रह की अप्रतिबन्धता — जिसके पश्चात् बचाने वाले अनुग्रह के अन्य कार्य आते हैं, — आइए हम बिना स्वयं की बड़ाई किए ऐसे वरदानों को स्वयं के लिए ग्रहण करें और चखें।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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