यह क्रूस पर यह यीशु की पाँचवी वाणी है। यीशु को क्रूस पर चढ़ाने से पहले पित्त मिला हुआ दाखरस पीने के लिए दिया गया था (मत्ती 27:33-34, मरकुस 15:23)। परन्तु यीशु ने नहीं पिया, क्योंकि वह क्रूस पर पीड़ा को अपने पूरे चित्त में होकर सहना चाह रहा था। परन्तु इस समय जब यीशु क्रूस पर पीड़ा सह रहा है, उसका लहू बह चुका है। यीशु यह जानकर कि सब कुछ पूरा हो चुका, वह कहता है कि “मैं प्यासा हूँ।” यीशु के इस वाणी से हम इन बातों को सीखते हैं –
यीशु भी हमारे समान एक मनुष्य था – 1 यूहन्ना 1:1 में प्रेरित यूहन्ना ने लिखा कि यीशु जीवन का वचन है जिसे उसने सुना, देखा और स्पर्श किया। 1 यूहन्ना 4:2-3 में उसने लिखा कि यीशु देहधारण करके आया था और जो इसे नकारते हैं वह ख्रीष्ट-विरोधी हैं। इसका तात्पर्य यह है कि यीशु ने हमारे लिए और हमारे स्थान में अपने शरीर/देह में दुःख उठाया और शारीरिक पीड़ा को सहा। उसकी शारीरिक पीड़ा और कष्ट वास्तविक थे। पतरस भी कहता है कि यीशु ने स्वयं अपनी ही देह में क्रूस पर हमारे पापों को उठा लिया (1 पतरस 2:24)।
यीशु ने पवित्रशास्त्र को पूरा करने हेतु इसे कहा – क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले यीशु ने पित्त मिला हुआ दाखरस पीने के लिए दिया था परन्तु अब उसने सिरका लिया। यह करने के द्वारा यीशु ने भजन 69:21 में उसके विषय में लिखी गई भविष्यवाणी को पूरा किया। यह दर्शाता है कि यीशु का नियन्त्रण उस परिस्थिति पर था। उसका क्रूस पर होना कोई दुर्घटना नहीं थी और न ही यीशु अपनी इच्छा के विपरीत वहाँ पर चढ़ा दिया गया। क्रूस पर पीड़ा की अवस्था में भी वह अपने हर निर्णय और शब्दों के द्वारा उन सब भविष्यवाणियों को पूरा कर रहा था जो उसके विषय में लिखे गए थे।
अतः यीशु की यह वाणी उसके मनुष्यत्व की सच्चाई को हमारे सामने प्रकट करती है। क्योंकि उसकी शारीरिक पीड़ा वास्तविकता थी हम इस आश्वासन को भी पाते हैं कि उसके लहू के बहाए जाने के द्वारा हमारा वास्तविक छुटकारा हुआ है। जब वह प्यास होकर सिरके को ले लिया तो उसने भविष्यवाणी को भी पूरा किया और क्रूस पर उद्धार के कार्य को पूरा किया।