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उसके घावों से तुम स्वस्थ हुए हो

उसके कोड़े खाने से हम चंगे हुए (यशायाह 53:5); उसके घावों से तुम स्वस्थ हुए हो (1 पतरस 2:24)।

कई बार हम बाइबल के बहुत से पदों व खण्डों को सन्दर्भ से बाहर निकाल कर उपयोग करते और समझते हैं। इसके परिणास्वरूप हम अपने जीवनों में असस्पष्ट, अनुचित लागूकरणों को लागू करते हैं। उन कई पदों में से 1 पतरस 2:24 है। किसी भी पद को समझने के लिए हमें उसे उसके सन्दर्भ (उसके ऊपर और नीचे के पदों में क्या बात हो रही है) में समझना चाहिए, क्योंकि सन्दर्भ हमें लेखक के उद्देश्य और अर्थ को स्पष्टता से बताता है। अधिकतर लोग इस पद को शारीरिक चंगाई से जोड़ने का प्रयास करते हैं और और उसके आत्मिक महत्व को अनदेखा कर देते हैं।  इसलिए,  इस लेख में हम 1 पतरस 2:24 को उसके सन्दर्भ में समझने का प्रयास करेंगे। 

ख्रीष्टीय लोग दुःख उठाने के लिए बुलाए गए हैं (18-21अ पद)

जब हम कुछ पद पीछे जाते हैं, तो हम यह पाते हैं कि 18-20 पद में पतरस सेवकों और स्वामियों के सम्बन्ध की बात कर रहा है। वह दासों से यह कह रहा है कि यदि वे उचित काम करके दुःख उठाते और धीरज धरते हैं, तो यह सुहावना है और यह परमेश्वर को भाता है। 21 पद का आरम्भ इस बात से होता है कि “तुम इसी अभिप्राय से बुलाए गए हो”– अर्थात् यह कि परमेश्वर के प्रति शुद्ध विवेक में दुःख उठाने, अन्याय को धीरज से सहने, और उचित कार्य करके सताए जाने के लिए बुलाए गए हो। 

यदि वे उचित काम करके दुख उठाते और धीरज धरते हैं, तो यह सुहावना है और यह परमेश्वर को भाता है।

प्रायः हम बुलाहट को केवल सुख और समृद्धि के दृष्टिकोण से ही देखते हैं, लेकिन यह खण्ड हमें सिखाता है कि ख्रीष्ट हमें दुःख उठाने के लिए भी बुलाता है। ध्यान दें कि यहाँ यह बात नहीं हो रही है कि हमारे जीवन में समस्याएँ नहीं आएँगी और  हर समय लोग हमारे भले कार्य के बदले हमें सराहेंगे और हमारी प्रशंसा करेंगे। परन्तु यहाँ पर पतरस यह लिख रहा है कि हमें परमेश्वर को स्मरण करके भले कार्यों को करते रहना है, भले ही हमें क्लेश और दुःख सहना पड़े। मत्ती 5:10; 2 तीमुथियुस 3:12; लूका 9:23-25; मत्ती 16:24; सभोपदेशक 8:14 आदि पद हमें दिखाते हैं कि धार्मिकता के जीवन में हमें क्लेश और दुःख उठाना होगा। इसका आधार ख्रीष्ट है जो स्वयं दुःख उठाने में हमारे लिए आदर्श है।

धार्मिकता के जीवन में हमें क्लेश और दुःख उठाना होगा। इसका आधार मसीह है जो स्वयं दुख उठाने में हमारे लिए आदर्श है।

ख्रीष्ट दुःख उठाने में हमारा आदर्श है (21ब-23 पद)

“क्योंकि ख्रीष्ट ने भी तुम्हारे लिए दुःख सहा और तुम्हारे लिए एक आदर्श रखा कि तुम भी उसके पद-चिन्हों पर चलो। उसने न कोई पाप किया और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली, उसने गाली सुनते हुए गाली नहीं दी, दुःख सहते हुए धमकियाँ नहीं दीं, पर अपने आप को उसके हाथ सौंप दिया जो धार्मिकता से न्याय करता है” (1 पतरस 2:21ब-23)। 

ख्रीष्ट हमारे लिए आदर्श है, क्योंकि यीशु ने न तो कोई त्रुटिपूर्ण बात कही, न ही उसने कोई ऐसा कार्य किया जो क्रूस की मृत्यु के योग्य था। उसने केवल भला ही किया, उसके कार्य और उसकी बातें केवल धार्मिकता की थीं; फिर भी उसने दुःख, क्लेश और क्रूस की मृत्यु सही। यीशु के सम्पूर्ण जीवन ने पवित्रता की माँगो को पूरा किया। यीशु का इन सब बातों को सहना उसकी निर्बलता को नहीं दर्शाता है, क्योंकि वह  स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर और इस संसार  का रचने वाला है; वह स्वर्गदूतों की बारह सेनाओं को बुलाकर सब कुछ नाश कर सकता था (मत्ती 26:53)। 

यशायाह 53:7 में लिखा है, “वह सताया गया और उसे दुःख दिया गया फिर भी उसने अपना मुँह नहीं खोला।” यदि यीशु हमारे लिए आदर्श है, तो हमें अपने जीवनों में विभिन्न प्रकार के दुःख, क्लेश, और समस्याओं से चौंकना नहीं चाहिए। भलाई के बदले जब हमें बुराई मिले और क्लेश उठाना पड़े तो हमारा प्रतिउत्तर कुड़कुड़ाना, गुस्सा, बदला, हठ करना नहीं होना चाहिए पर हमें यीशु की ओर देखना चाहिए जो हमारा आदर्श है। पतरस केवल हमें यह नहीं बता रहा है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए परन्तु वह हमें यह भी बता रहा है कि हमें क्या करना चाहिए। जैसे ख्रीष्ट ने अपने आपको परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया जो धार्मिकता से न्याय करता है वैसे ही हमें भी करना चाहिए। दुःख सहना ख्रीष्टीय जीवन के अनुग्रह का एक निश्चित भाग है। फिलिप्पियों 1:29 “क्योंकि ख्रीष्ट के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि तुम उस पर केवल विश्वास ही न करो वरन् उसके लिए कष्ट भी सहो।”

यीशु ने हमारे पापों के लिए दुःख सहा (24 पद)

“उसने स्वयं अपनी ही देह में क्रूस पर हमारे पापों को उठा लिया, जिस से हम पाप के लिए मरें और धार्मिकता के लिए जीवन व्यतीत करें, क्योंकि उसके घावों से तुम स्वस्थ हुए हो” (1 पतरस 2:24)। 

यीशु ने अपनी देह में हमारे लिए एक दर्दनाक और श्रापित मृत्यु को सहा। वह गलती से या अचानक से क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया, परन्तु हमारे उद्धार के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा करते हुए हमारे लिए मरा।

यीशु ने अपनी देह में हमारे लिए एक दर्दनाक और श्रापित मृत्यु को सहा। वह गलती से या अचानक से क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया, परन्तु हमारे उद्धार के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा करते हुए हमारे लिए मरा। ख्रीष्ट के घावों के द्वारा हमारे घाव स्वस्थ हुए हैं। उसने हमारे बदले अपनी देह में दुःख उठाया। यीशु के द्वारा हमारे बदले पापों को अपनी देह पर लेना या उठाना – दण्डात्मक प्रतिस्थापनीय प्रायश्चित (Penal Substitutionary Atonement) कहलाता है। परमेश्वर के क्रोध को शान्त करने के लिए और अपने आप को धर्मी ठहराने के लिए हम असहाय थे; जो हम अपने लिए नहीं कर सकते थे उसको यीशु ने हमारे बदले में कर दिया। 

यीशु ने अपने पिता की आज्ञा को पूरा करते हुए धार्मिकता और व्यवस्था को सम्पूर्ण रूप से पूरा किया और सभी बातों को सहा जिससे कि वह हमारे लिए एक सिद्ध बलिदान बन सके। अपनी परमेश्वरीय सामर्थ्य का उपयोग करके यीशु ने दुःखों और क्लेशों से बचने की योजना नहीं बनाई, परन्तु उसने हमारे लिए दुःख उठाकर हमारे घावों को स्वस्थ किया है। 

परमेश्वर के क्रोध को शान्त करने के लिए और अपने आप को धर्मी ठहराने के लिए हम असहाय थे; जो हम अपने लिए नहीं कर सकते थे उसको यीशु ने हमारे बदले में कर दिया।

 यीशु के दुख उठाने का परिणाम (25 पद)

अब हमें यह समझना है कि यह चंगाई जो हमने प्राप्त किया है, इसे हम किस प्रकार से अनुभव करते हैं या इसे कैसे समझा जा सकता है। प्रायः लोग केवल 24 पद के आधार पर इसे शारीरिक चंगाई के साथ जोड़ते हैं। परन्तु यदि हम इसे सन्दर्भ में समझेंगे, तो यह पाएँगे कि यह पिछले पदों के साथ-साथ 25 पद से भी जुड़ा हुआ है –  “तुम तो भेड़ों की भांति भटक रहे थे, परन्तु अब अपनी आत्मा के चरवाहे और अध्यक्ष के पास लौट आए हो” (2:25)। यह दिखाता है कि 24 पद में किस प्रकार की बीमारी से स्वस्थ्य होने की बात हो रही थी। यहाँ शारीरिक बीमारी से छुटकारे की नहीं, परन्तु आत्मिक रीति से भटके हुए लोगों का ख्रीष्ट के साथ मेल होने की बात हो रही है। सृष्टिकर्ता परमेश्वर से हमारा सम्बन्ध पाप के कारण टूट गया था और हम पाप के दासत्व में अपने जीवन को जी रहे थे और उससे दूर हो गए थे। हम अपने आप में असमर्थ और अयोग्य थे कि हम वापस इस सम्बन्ध में जुड़ें। परन्तु यीशु के दुख उठाने का परिणाम हमारे लिए यह हुआ कि अब हमारा मेल-मिलाप हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर से पुनः हो पाया। यीशु की मृत्यु के द्वारा प्राप्त इस आत्मिक चंगाई से अब पापी लोगों का सम्बन्ध सृष्टिकर्ता परमेश्वर के साथ जुड़ गया है जैसा कि हम 2 कुरिन्थियों 5:18 और रोमियों 5:10-11 में पाते हैं। क्या यह एक चंगाई नहीं है? क्या यह स्वस्थ होना नहीं है? जो चंगाई और अरोग्यता हमेंं कोई नहीं दे सकता था वह हमने यीशु के दुख उठाने के परिणामस्वरूप पाया है। 

यीशु की मृत्यु के द्वारा प्राप्त इस आत्मिक चंगाई से अब पापी लोगों का सम्बन्ध सृष्टिकर्ता परमेश्वर के साथ जुड़ गया है।

अतः हम परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं और हम आनन्द से भरकर यीशु को धन्यवाद दे सकते हैं, क्योंकि यदि वह क्रूस पर नहीं मरता, तो हमारे पाप क्षमा नहीं हो सकते थे। हम परमेश्वर के समीप नहीं लाए जाते। हम धन्यवाद दे सकते हैं कि यीशु के द्वारा एक दिन हम परमेश्वर की नई सृष्टि में रहेंगे जहां “न कोई मृत्यु रहेगी न कोई शोक, न विलाप और न पीड़ा रहेगी” (प्रकाशितवाक्य 21:4)। और धन्यवाद देने के साथ उस दिन की प्रतीक्षा कर सकते हैं, जब हम हर एक मायने में कहने पाएँगे कि …उसके घावों से हम स्वस्थ हुए हैं।

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मोनीष मित्रा
मोनीष मित्रा

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

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