पाँच रीतियों से क्लेश हमारी सहायता करता है

यह पद हमें बताता है कि परमेश्वर हमें अपना वचन सीखने में सहायता करने हेतु क्लेश को भेजता है। यह कैसे कार्य करता है? क्लेश हमें परमेश्वर के वचन को सीखने और उसका पालन करने में कैसे सहायता करता है?

जिस प्रकार इस महान दया के असंख्य अनुभव हैं, उसी प्रकार इसके असंख्य उत्तर भी हैं। परन्तु यहाँ पर पाँच उत्तर दिये गए हैं:

  1. क्लेश जीवन के उथलेपन को दूर करता है और हमें और अधिक गम्भीर बना देता है, जिससे कि हमारी मानसिकता परमेश्वर के वचन की गम्भीरता के साथ और अधिक मेल खाए। और इस बात पर ध्यान दीजिए: परमेश्वर की पुस्तक में एक भी पृष्ठ उथला नहीं है।  
  1. क्लेश हमारे जीवन से सांसारिक सहारों को हटा देता है और हमें परमेश्वर पर और अधिक भरोसा रखने के लिए विवश करता है, जो हमें वचन के उद्देश्य के साथ और मेल कराता है। क्योंकि वचन का उद्देश्य यह है कि हम परमेश्वर पर आशा रखें और उस पर भरोसा रखें। “पूर्व-काल में जो कुछ लिखा गया था वह हमारी ही शिक्षा के लिए लिखा गया था जिस से धैर्य एवं पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन द्वारा हम आशा रखें।” (रोमियों 15:4)। “ये [बातें] जो लिखी गयी हैं इसीलिए लिखी गयी हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र ख्रीष्ट है” (यूहन्ना 20:31)
  1. क्लेश हमें प्रेरित करता है कि हम सहायता प्राप्त करने हेतु बड़ी लालसा के साथ पवित्रशास्त्र को खोजें इसके विपरीत कि हम वचन को केवल जीवन के लिए अनावश्यक समझें। “तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे क्योंकि तुम सम्पूर्ण हृदय से मुझे ढूंढ़ोगे” (यिर्मयाह 29:13)।
  1. क्लेश हमें मसीह के कष्टों में सहभागी बनाता है जिससे कि हम उसके साथ अधिक निकटता से संगति कर सकें और उसकी आँखों के द्वारा संसार को अधिक स्पष्टता से देखें। पौलुस के हृदय की बड़ी लालसा थी “जिससे कि मैं उसको और उसके जी उठने की सामर्थ्य को तथा उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, कि उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूँ” (फिलिप्पियों 3:10)। 
  1. क्लेश कपटपूर्ण एवं ध्यान भटकाने वाली शारीरिक इच्छाओं को मार देता है, और इस रीति से हमें एक आत्मिक संरचना में लाता है और हमें परमेश्वर के आत्मिक वचन के प्रति ग्रहणशील बनाता है। “इसलिए, जबकि ख्रीष्ट ने शरीर में दुख उठाया तो तुम भी इसी अभिप्राय से हथियार धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दुख उठाया है, वह पाप से छूट गया है” (1 पतरस 4:1)। दुख का प्रभाव बड़ा ही पाप-नाशक होता है। जितना अधिक हमारा मन शुद्ध होता है, उतना ही स्पष्ट रूप से हम परमेश्वर को देखते हैं (मत्ती 5:8)।

पवित्र आत्मा हमें यह अनुग्रह प्रदान करे कि हम पीड़ा के द्वारा परमेश्वर की दी गई शिक्षाओं को  तुच्छ न जानें।  

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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