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परमेश्वर नम्र करने के द्वारा चंगा करता है

“मैंने उसकी चाल को देखा है, परन्तु मैं उसे चँगा करूँगा, उसकी अगुवाई करूँगा। और उसको तथा उसके लिए शोक करनेवालों को शान्ति दूँगा और उनके हाेंठों से स्तुति उत्पन्न करूँगा।” यहोवा ने कहा है, “जो दूर है उसे शान्ति मिले और जो निकट है उसे भी शान्ति मिले, और मैं उसको चँगा करूँगा।” (यशायाह 57:18–19)

मनुष्य की घोर ढिठाई तथा विद्रोह के रोग के पश्चात् भी परमेश्वर चंगा करेगा। वह कैसे चंगा करेगा? यशायाह 57:15 कहता है कि परमेश्वर दीन तथा नम्र व्यक्ति के साथ रहता है। तौभी यशायाह 57:17 के लोग नम्र नहीं हैं। वे निर्लज्जता के साथ अपने घमण्ड में बने हुए हैं। तो, चंगाई का अर्थ क्या होगा?

इसका केवल एक अर्थ हो सकता है। परमेश्वर उन्हें नम्र करने के द्वारा चंगा करेगा। वह रोगी के घमण्ड  को दीन करके उसे चंगा करेगा। यदि केवल पिसे तथा नम्र व्यक्ति ही परमेश्वर की संगति का आनन्द ले सकते हैं (यशायाह 57:17), और यदि इस्राएल का रोग घमण्ड तथा ढिठाईपूर्ण विद्रोह है (यशायाह 57:17), और यदि परमेश्वर उन्हें चंगा करने की प्रतिज्ञा करता है (यशायाह 57:18), तो उसकी चंगाई का अर्थ होगा कि वह उन्हें नम्र करेगा और उसके उपचार का अर्थ होगा कि वह उनकी आत्मा को दीन करेगा।

क्या यह यशायाह के नबूवत करने का ढंग नहीं है जिसे यिर्मयाह ने नई वाचा और नये हृदय का वरदान (उपहार) कहा था? उसने कहा, “देखो, ऐसे दिन आनेवाले हैं,” यहोवा की यह वाणी है,  “जब मैं इस्राएल के घराने और यहूदा के घराने से एक नई वाचा बाँधूँगा . . . मैं अपनी व्यवस्था उनके मनों में डालूँगा और उसे उनके हृदयों पर लिखूँगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूँगा तथा वे मेरी प्रजा ठहरेंगे” (यिर्मयाह 31:31, 33)।

यशायाह तथा यिर्मयाह दोनों एक ऐसे समय को देख रहे हैं जब रोगी, अनाज्ञाकारी, कठोर-हृदय वाले लोग अलौकिक रीति से परिवर्तित हो जाएँगे। यशायाह चंगाई के विषय में बात करता है। यिर्मयाह हृदय पर व्यवस्था लिखने के विषय में बात करता है। और यहेजकेल इस रीति से कहता है: “और फिर मैं तुम्हें एक नया हृदय दूँगा और तुम्हारे भीतर एक नई आत्मा उत्पन्न करूँगा और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम्हें माँस का हृदय दूँगा” (यहेजकेल 36:26)। 

इसलिए यशायाह 57:18 में चंगाई का अर्थ एक बड़ा हृदय प्रत्यारोपण है — जिसमें पुराना कठोर, घमण्डी, और पत्थर का ढीठ हृदय निकाल दिया जाता है, और एक नया कोमल, मृदु हृदय लगा दिया जाता है, जो पाप की स्मृति या बचे हुए पाप के द्वारा सरलता से नम्र तथा दीन किया जाता है। 

यही वह हृदय है जिसमें ऊँचे पर विराजने वाला जिसका नाम पवित्र है, सर्वदा के लिए निवास करेगा।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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