Profit Gain AI Profit Method AI Crypto Core Profit

सताव के मध्य में प्रार्थना की भूमिका।

यदि मैं आपसे पूछूँ कि “सताव के मध्य में प्रार्थना की क्या भूमिका है?” आपका क्या प्रतिउत्तर होगा? आप कह सकते हैं कि “जिससे कि प्रभु जी हमें छुड़ायें”। या “प्रार्थना में सामर्थ्य होती है, इसलिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए”। ध्यान दीजिए कि हमारे ऐसे उत्तरों में मुख्य नायक तथा केन्द्र “हम” हैं। परन्तु परमेश्वर का वचन क्या कहता है? सताव के विषय में प्रार्थना की भूमिका के विषय में दो बातें वचन से प्रस्तुत करना चाहूँगा –

हम नहीं, किंतु परमेश्वर सम्प्रभु है सताव के मध्य में प्रार्थना की मुख्य भूमिका यह है कि हम इस बात को समझते हैं कि प्रभु सब कुछ को नियन्त्रित कर रहे हैं। प्रेरितों 4 में, यदि हम ध्यान देंगे तो वहाँ एक रूचिकार घटना घटी है। पतरस तथा यूहन्ना को एक चंगाई तथा खरे प्रचार के कारण बन्दीगृह में डाल दिया जाता है। अगले दिन उन्हें मारा पीटा जाता है और कड़ाई से कहा जाता है कि “यीशु का नाम लेकर न तो कोई चर्चा करें और न ही कोई शिक्षा दें”। किन्तु उन्होंने साहस से उत्तर दिया कि  “हम तो मनुष्य की नहीं किंतु परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे”। और जब वे आकर कलीसिया में सम्पूर्ण विवरण देते हैं… तो कलीसिया प्रार्थना करती है… और 28 पद में उनकी प्रार्थना के शब्द चकित करने वाले हैं… “ कि वही करें जो कुछ तेरी सामर्थ्य और योजना में पहिले से निर्धारित किया गया था।”

ये लोग समझ गए कि जो सताव तथा कलेश उनके ऊपर आ रहा है वह परमेश्वर के नियन्त्रण से बाहर नहीं हो रहा है। परमेश्वर का वचन हमें इस बात के लिए उत्साहित कर रहा है कि सताव और क्लेश में फँस कर मत रह जाओ, किन्तु प्रभु के चरित्र को उसके गुणों को निहारो। वह नियन्त्रण कर रहा है और वह जानता है कि आपके साथ क्या हो रहा है। किन्तु यह समझना सदैव सरल नहीं होता है। इसलिए प्रार्थना की दूसरी भूमिका यह है कि दूसरी भूमिका यह कि सताव के मध्य हम परमेश्वर की योजना को समझने के लिए बुद्धि के लिए प्रार्थना करें।  

दुःख या सताव के उद्देश्य को समझते हैं-  यदि हम सत्यनिष्ठा से उत्तर देंगे तो हम पायेंगे कि हम दुःखों के मध्य में प्रायः लड़खड़ाए हैं। हमारे अन्दर इस बात का प्रलोभन होता है कि या तो हम पाप करें व हम समझौता कर लें। या कोई जुगाड़ लगा लेें जिससे कि हमारे जीवन का दुःख या सताव टल जाए। किन्तु याकूब हमें उत्तम सलाह देता है… यदि तुम में से किसी को बुद्धि की कमी हो, तो वह परमेश्वर से माँगे और उसे दी जाएगी…।(याकूब 1:1-5)।

याकूब विश्वासियों को आज्ञा दे रहा है कि वे दुःखों के उद्देश्यों को समझने के लिए परमेश्वर से बुद्धि के लिए प्रार्थना करें। परमेश्वर का वचन हमसे यह प्रश्न पूछ रहा है कि क्या मैं और आप बुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं… जब घर में कोई जन लम्बे समय से बीमार चल रहा है… जब विरोधी लोग सता रहे हैं। सम्भवतः, पास्टरों को धमकाया जा रहा है, जेल में डाला जा रहा है, विश्वासियों को संगति के लिए मिलने नहीं दिया जा रहा है।

भले ही शैतान कानों में फुसफुसाये…. किन्तु यीशु ख्रीष्ट के इन शब्दों को स्मरण रखिए जो उन्होंने अपने चेलों से अपने क्रूस पर चढ़ाये जाने से एक रात पहले कहे थे… “जागते और प्रार्थना करते रहो कि परीक्षा में न पड़ो। आत्मा तो तैयार है, परन्तु देह दुर्बल है” (मरकुस 14:38)। परमेश्वर का वचन कह रहा है कि परमेश्वर की सम्प्रभुता को समझने तथा दुःखों के उद्देश्य को समझने के लिए कठिनाईयों में भी प्रार्थना कीजिए।

साझा करें
विवेक जॉन
विवेक जॉन

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

Articles: 17

Special Offer!

ESV Concise Study Bible

Get the ESV Concise Study Bible for a contribution of only 500 rupees!

Get your Bible