आओ हम सच्चे मन के साथ निकट आएँ। (इब्रानियों 10:22)
इस खण्ड में हमें जो आज्ञा दी गई है वह है परमेश्वर के निकट आना। इब्रानियों की पुस्तक के लेखक का महान उद्देश्य यह है कि हम परमेश्वर के निकट आएँ, कि हमारी उसके साथ सहभागिता हो, कि हम एक ऐसे ख्रीष्टीय जीवन से सन्तुष्ट न हो जाएँ जो परमेश्वर से दूर है।
यह निकट आने की क्रिया कोई शारीरिक क्रिया नहीं है। यह आपकी उपलब्धियों द्वारा स्वर्ग जाने के लिए बाबेल की मीनार का निर्माण करना नहीं है। यह ऐसा कार्य नहीं है जिसमें कि किसी कलीसिया भवन में जाना आवश्यक हो। न ही यह सामने वेदी के पास चले जाने जैसा कोई कार्य है। यह तो हृदय की एक अदृश्य क्रिया है। आप इसे पूर्ण रीति से स्थिर खड़े होकर या अस्पताल की रोग शैय्या पर लेटे रहकर, या ट्रेन में काम पर जाते समय भी कर सकते हैं।
यह सुसमाचार का केन्द्र है — गतसमनी का बाग और शुभ शुक्रवार इसी के विषय में है — कि परमेश्वर ने हमें अपने निकट लाने के लिए अचम्भित करने वाले और बहुमूल्य कार्य किए हैं। उसने अपने पुत्र को दुख उठाने और मरने के लिये भेजा है, जिससे कि हम उसके द्वारा निकट आ सकें। उसने छुटकारे की महान योजना में जो कुछ भी किया है वह इसलिए है कि हम निकट आ सकें। और वह निकटता हमारे आनन्द और उसकी महिमा के लिए है।
उसे हमारी आवश्यकता नहीं है। यदि हम उससे दूर रहेंगे तो वह दरिद्र नहीं हो जाएगा। त्रिएकता की संगति में आनन्दित रहने के लिए उसे हमारी आवश्यकता नहीं है। परन्तु वह हमारे पापों के पश्चात् भी, अपने पुत्र के द्वारा हमें एक ऐसी वास्तविकता अर्थात् स्वयं तक बिना मूल्य के पहुँच प्रदान करके अपनी दया को प्रकट करता है जो हमारे प्राणों को पूर्ण रीति से और सदा के लिए सन्तुष्ट कर सकती है। “तेरी उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी है; तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है” (भजन 16:11)।
यह आपके लिए परमेश्वर की इच्छा है, जैसा कि आप इसे अभी पढ़ रहे हैं। इसी कारण ख्रीष्ट मरा: कि आप परमेश्वर के निकट आएँ।