संकट के मध्य परमेश्वर पर आस लगाए रखिए।

हम सबके जीवन में विभिन्न प्रकार की कठिन परिस्थितियाँ आती हैं। एक ख्रीष्टीय व्यक्ति संकट, दुःख, पीड़ा, आँसू, तनाव से होकर जाता है। कभी-कभी उन भयंकर परिस्थितियों में होते हैं, जहाँ से बाहर आ पाना हमारे स्वयं के लिए असम्भव प्रतीत होता है। किन्तु हम चाहे जैसी भी घोर परिस्थिति में हों, चाहे हमारा सब कुछ हमसे छिन जाने वाला हो, चाहे हमारी मृत्यु ही क्यों न हो जाए, इन सबके मध्य हमें आवश्यकता है कि हम परमेश्वर की ओर दृष्टि करें। जब हम किसी भी संकट में से होकर जाते हैं तो हम स्वयं निम्नलिखित तीन बातों को स्मरण कराते हुए परमेश्वर पर आस लगा सकते हैं।

घोर संकट के समय में हम अपनी आशा परमेश्वर में रखते हैं, जो हमारी परिस्थिति को भली-भाँति जानता है।

स्मरण रखें कि परमेश्वर हमारी परिस्थिति को जानता है– प्राय: जब हमारे जीवन में कठिन परिस्थिति आती है तो हम दुःखी, निराश और व्याकुल हो जाते हैं। कई बार कुछ लोग ऐसे समय में यह कहने लगते हैं कि ‘ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है, या हम कभी-कभी यह सोचने लगते हैं कि हमारी स्थिति को कोई नहीं समझ सकता।

किन्तु ध्यान दें, जिसने हमें और आपको बनाया है, वह परमेश्वर हमको भली-भाँति जानता है। चाहे हम बीमारी की अवस्था में हों, चाहे हम अपने विरोधियों से घिरे हुए हों, चाहे हम सताव का सामना कर रहे हों, हमें स्मरण रखना है कि परमेश्वर सर्वज्ञानी है और वह हमारे हृदय, हमारे विचार, हमारे कार्य तथा हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है, उसे वह हमसे बेहतर जानता है।

जो परमेश्वर हमें अत्यन्त संकट की घड़ी में भी हमें नहीं छोड़ता, वह परमेश्वर सदाकाल तक हमारा साथ नहीं छोड़ेगा।

स्मरण रखें परमेश्वर सामर्थी है- संकट के समय हमें इस बात से निराश होने की आवश्यकता नहीं है कि हमारी कठिन परिस्थिति के ऊपर कोई नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में परमेश्वर की ओर निहारें। उसकी ओर दृष्टि करें और आप पाएँगे कि परमेश्वर हमारी परिस्थिति से बढ़कर है। हमें ध्यान रखना है कि परमेश्वर सामर्थी है, इसका अर्थ नहीं है कि वह हमें कठिन परिस्थितियों से पूर्णतया दूर रखेगा, परन्तु यह कि वह सामर्थी है इसलिए उन संकट की परिस्थितियों में भी हमें उस पर भरोसा रखने के लिए हमें सामर्थ्य प्रदान करेगा और हमें विश्वास में बनाये रखेगा।

दुखों के मध्य में भी हृदय में आनन्द, शान्ति, सुसमाचार में बने रहने की क्षमता परमेश्वर ही प्रदान करता है। वह संसार की समस्त शक्तियों, स्थितियों तथा लोगों पर प्रभुता करता है। परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य को इतिहास में प्रकट किया है, अभी वह अपनी सामर्थ्य द्वारा ही सब कुछ को सम्भाले हुए है। वह हमारा बल है, हमारी आस है जो संकट के समय हमारी ढाल है (भजन 59:9)। परमेश्वर जो चाहे वह सब कुछ कर सकता है। किन्तु यदि वह हमें कठिन परिस्थिति में से न निकाले, हमेें बिमारी में ही रहने दे, हमें दुख, पीड़ाओं, सतावों में से भी लेकर जाए, तब भी वह सामर्थी ही है। वह चाहे तो हम पल भर में छुड़ा सकता है और यदि वह न चाहे तो हम अपनी ताकत से कुछ नहीं कर सकते।

एकमात्र परमेश्वर हमारा शरणस्थान है जिसमें हम पूर्णता सुरक्षा पाते हैं और जीवित रहते हैं।

स्मरण रखें परमेश्वर हमारा शरणस्थान है– जब हम अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों में से होकर जाते हैं, तब कौन है जो वास्तव में हमें सुरक्षा, सच्ची सान्त्वना, आनन्द एवं शान्ति हमें दे सकता है! क्या हमारा धन, क्या हमारा पद, हमारा नाम, हमारी प्रतिष्ठा, हमारा परिवार, हमारे मित्र या हमारी नौकरी? ये सब हमारा शरणस्थान नहीं हैं! एकमात्र परमेश्वर ही हमारा शरणस्थान और बल है। वही संकट के समय हमारा तत्पर सहायक है (भजन 46:1; 59:16)।

जब आपके और हमारे जीवन में दुख आते हैं, तो हम उस दुख, सताव, समस्या से छुटकारा पाने के लिए किसकी शरण में जाते हैं? कौन है जिस पर हम भरोसा रखते हैं? कौन है जिस पर हम आस रखते हैं? परमेश्वर को छोड़ और कुछ भी नहीं है जिस पर हम अपने इस जीवन में और आने वाले जीवन के लिए निर्भर रहें। प्रत्येक सृजी हुई वस्तु एक दिन समाप्त हो जाएगी और हमारा उन वस्तुओं, व्यक्तियों पर भरोसा रखना हमें अन्तत: निराश ही करेगा।

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