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हर्ष के साथ स्तुति करना

हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरी स्तुति करें, देश देश के सब लोग तेरी स्तुति करें! (भजन 67:3,5)

परमेश्वर क्यों माँग करता है कि हम अवश्य ही परमेश्वर की स्तुति करें?

सी.एस. लुईस के शब्दों में:

जिस रीति से मनुष्य अनायास ही उन वस्तुओं की स्तुति करते हैं जिनको वे महत्व देते हैं, तो वैसे ही वे स्वतः स्फूर्ति से उनकी स्तुति में सम्मिलित होने के लिए हमसे अनुरोध करते हैं: “क्या वह प्यारी नहीं है? क्या वह प्रतापमय नहीं था? क्या वह आपको भव्य नहीं प्रतीत होता है?”

भजनकार सब से परमेश्वर की स्तुति करने के लिए कहने के द्वारा वह कर रहा है जो कि सब मनुष्य करते हैं जब वे उन बातों के विषय में बात करते हैं जिनकी वे चिन्ता करते हैं। परमेश्वर की स्तुति के विषय में मेरी सम्पूर्ण और सामान्य कठिनाई इस ऊटपटांग विचार पर निर्भर करती थी कि हम सर्वोच्च मूल्यवान जन के लिए वह अस्वीकार करें, जिसे हम शेष सभी मूल्यवान समझी जाने वाली वस्तुओं के लिए स्वीकार करने में आनन्द लेते हैं और जिसे करे बिना हम रह भी नहीं सकते हैं।

मुझे लगता है कि हम जिसका आनन्द लेते हैं उसकी स्तुति करने में हमें सुख प्राप्त होता है क्योंकि स्तुति न केवल आनन्द को व्यक्त करती है किन्तु उसकी पूर्ति करती है; यही इसकी नियुक्त सम्पूर्णता है। यह केवल प्रशंसा करने के कारण नहीं है कि प्रेमी एक-दूसरे को बताते रहते हैं कि वे कितने सुन्दर हैं; उनका सुख तब तक अधूरा है जब तक उसे व्यक्त न किया जाए।

यह है इसका उत्तर है — अर्थात् हमसे उसकी स्तुति करने की माँग करने में परमेश्वर के स्पष्ट अहंकार का समाधान! यह हमारे सबसे महान् आनन्द की माँग के लिए है। हम उसी की प्रशंसा करते हैं जिसमें हम आनन्द पाते हैं क्योंकि जब तक इसको प्रशंसा में व्यक्त नहीं किया जाएगा तब तक यह आनन्द अधूरा है। यदि हमें अनुमति नहीं दी जाती कि हम उन बातों के विषय में बात करें जिन्हें हम मूल्यवान समझते हैं और उन बातों का आनन्द उठाएँ जिनसे हम प्रेम करते हैं और उन बातों की प्रशंसा करें जिन्हें हम सराहते हैं, तो हमारा आनन्द पूर्ण नहीं होगा।

इसलिए, यदि परमेश्वर हमसे इतना प्रेम करता है कि हमारे आनन्द को पूर्ण कर दे, तो उसे न केवल स्वयं को हमें दे देना होगा; किन्तु उसे हमारे हृदयों की प्रशंसा को भी जीतना होगा — इसलिए नहीं कि उसे अपने आप में कुछ दुर्बलता को दूर करने या किसी कमी की भरपाई करने की आवश्यकता है, परन्तु इसलिए कि वह हमसे प्रेम करता है और हमारे आनन्द की पूर्णता चाहता है जो केवल उसको (जो कि सभी अस्तित्व रखने वालो में सबसे अद्भुत है) जानने और उसकी प्रशंसा करने में पाया जा सकता है।

यदि वह वास्तव में हमारे पक्ष में है, तो उसे स्वयं के पक्ष में भी होना होगा! परमेश्वर ही संसार में एकमात्र ऐसा जन है जिसके लिए स्वयं की प्रशंसा चाहना अन्ततः प्रेमपूर्ण कार्य है। उसके लिए स्वयं को ऊँचा उठाना सबसे सर्वोच्च गुण है। जब वह सब कुछ “अपनी महिमा की स्तुति” के लिए करता है (इफिसियों 1:12,14), तो वह पूरे संसार की एक मात्र वस्तु को, जो हमारी लालसाओं को सन्तुष्ट कर सकती है, हमारे लिए सुरक्षित रखता है और हमें प्रदान करता है।

परमेश्वर हमारे पक्ष में है! और इस प्रेम का आधार यह है कि परमेश्वर स्वयं के पक्ष में रहा है, अभी है और सर्वदा रहेगा।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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