परमेश्वर की जितनी भी प्रतिज्ञाएँ हैं यीशु में ‘हाँ’ ही ‘हाँ’ हैं। इसीलिए उसके द्वारा हमारी आमीन भी परमेश्वर की महिमा के लिए होती है। (2 कुरिन्थियों 1:20)
प्रार्थना प्रतिज्ञाओं के प्रति अर्थात् परमेश्वर के भविष्य-के-अनुग्रह के आश्वासनों के प्रति प्रत्युत्तर है।
प्रार्थना उस खाते से धन निकालने की नाई है जहाँ परमेश्वर ने भविष्य-के-अनुग्रह के सारे भण्डार रखे हैं।
प्रार्थना अन्धकार में आशा करना नहीं है कि सम्भवतः कहीं कोई भली मनसाओं वाला परमेश्वर हो सकता है। प्रार्थना परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा रखती है, और प्रत्येक दिन बैंक जाती है और उस दिन के लिए आवश्यक भविष्य-के-अनुग्रह को भण्डारों में से निकालती है।
इस महान पद के दो भागों के मध्य के सम्बन्ध को अनदेखा न करें। “इसीलिए” शब्द पर ध्यान दें: “परमेश्वर की जितनी भी प्रतिज्ञाएँ हैं यीशु में ‘हाँ’ ही ‘हाँ’ हैं। इसीलिए उसके द्वारा हमारी आमीन भी परमेश्वर की महिमा के लिए होती है।”
यह सुनिश्चित करने के लिए हम इसे देखते हैं, आइए इन दोनों भागों को पलट दें: जब हम प्रार्थना करते हैं, हम यीशु ख्रीष्ट के माध्यम से परमेश्वर को आमीन कहते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने ख्रीष्ट में अपनी सभी प्रतिज्ञाओं के लिए एक निर्णायक आमीन कहा है। प्रार्थना एक दृढ़ अनुनय है कि परमेश्वर — ख्रीष्ट के कारण — भविष्य-के-अनुग्रह की अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करे। प्रार्थना भविष्य-के-अनुग्रह पर हमारे विश्वास को इन सब की नींव, अर्थात् यीशु ख्रीष्ट के साथ जोड़ती है।
यह बात हमको अन्तिम बिन्दु की ओर ले जाती है: प्रार्थना की घड़ी में “आमीन” एक पूर्ण और बहुमूल्य शब्द है। इसका अर्थ मुख्यत: यह नहीं होता है कि, “हाँ, मैंने अब इस प्रार्थना को कह दिया है।” वरन् इसका अर्थ मुख्यत: यह है कि, “हाँ, परमेश्वर ने ये सभी प्रतिज्ञाएँ की हैं”।
आमीन का अर्थ है, “हाँ परमेश्वर, आप ऐसा कर सकते हैं”। इसका अर्थ है, “हाँ परमेश्वर, आप सामर्थी हैं। हाँ परमेश्वर, आप बुद्धिमान हैं। हाँ परमेश्वर, आप दयालु हैं। हाँ परमेश्वर, सभी भविष्य-का-अनुग्रह आपसे आता है और ख्रीष्ट में सुनिश्चित हो गया है।”
“आमीन” सहायता की प्रार्थना के बाद आशा और आश्वासित विश्वास का एक विस्मयादिबोधक बिन्दु है।