प्रार्थना पापियों के लिए है।
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

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संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

“प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखा” (लूका 11:1)

परमेश्वर पापियों की प्रार्थनाओं का उत्तर देता है न कि सिद्ध लोगों की प्रार्थनाओं का। और आप अपनी प्रार्थना में पूर्णतः शक्तिहीन हो जाएँगे यदि आप इस बात का आभास नहीं करते हैं और क्रूस पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं। 

मैं आपको पुराने नियम से अनेक स्थलों को दिखा सकता हूँ जहाँ परमेश्वर ने अपने पापी लोगों की पुकार सुनी है, जिनके उन्हीं पापों ने जिससे छुटकारे के लिए वे पुकार रहे हैं उन्हें संकट में डाल दिया था (उदाहरण के लिए, भजन 38:4, 15; 40:12-13; 107:11-13)। परन्तु अभी मैं इसे लूका 11 के दो स्थलों से दिखाना चाहता हूँ : 

प्रभु की प्रार्थना के इस संस्करण में (लूका 11:2-4), यीशु कहता है “जब तुम प्रार्थना करो तो कहो…” और फिर पद 4 में वह इस याचना को सम्मिलित करता है “हमारे पापों को क्षमा कर।” इसलिए, यदि आप प्रार्थना के आरम्भ को इसके बीच वाले भाग से जोड़ें, तो जिस बात को वह कहता है वह यह है “जब तुम प्रार्थना करो तो कहो… हमारे पापों को क्षमा कर।” 

इससे मैं यह समझता हूँ कि हमारी प्रार्थनाओं में इसका उतना ही महत्व होना चाहिए जितना कि “तेरा नाम पवित्र माना जाए” का है। इसका अर्थ है कि यीशु यह मानकर चलता है कि हम जितनी बार प्रार्थना करते हैं वास्तव में हमें उतनी बार क्षमा माँगना चाहिए।

दूसरे शब्दों में, हम सदैव पाप करते रहते हैं। हम कोई भी सिद्ध कार्य नहीं करते हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर ने अपनी मृत्युशैय्या पर कहा “हम भिखारी हैं। यह सत्य है।” यहाँ तक कि यदि हम प्रार्थना करने से पहले कुछ स्तर तक आज्ञाकारी रहे हों, फिर भी हम प्रभु के सामने सदैव एक पापी के रूप में आते हैं — हम सब के सब। और जब पापी इस प्रकार से प्रार्थना करते हैं तो परमेश्वर उनकी प्रार्थनाओं से मुँह नहीं मोड़ता है। 

दूसरा स्थल जहाँ पर हम इसको देखते हैं वह है लूका 11:13 “अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको जो उस से माँगते हैं पवित्र आत्मा क्यों न देगा?”

यीशु अपने चेलों को “बुरा” कहते हैं। ये बड़ी ही कठोर भाषा है। और उसके कहने का अर्थ यह नहीं था कि वे उसकी संगति से बाहर थे। उसके कहने का अर्थ यह नहीं था कि उनकी प्रार्थनाएँ सुनी नहीं जाएँगी। 

उसके कहने का अर्थ यह था कि जब तक इस पतित युग का अन्त नहीं होगा तब तक उसके अपने शिष्यों तक में भी बुराई की ओर झुकाव होगा, जो वह सब कुछ को प्रदूषित कर देती है जो वे करते हैं। परन्तु यह बुराई की ओर झुकाव उन्हें कुछ अच्छा करने से नहीं रोकता क्योंकि वे यीशु  के अनुग्रह और सामर्थ्य पर भरोसा करते हैं। 

हम एक ही समय में पापी और छुड़ाए हुए दोनों हैं। हम पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से धीरे-धीरे बुराई पर जय पाते जाते हैं। परन्तु हमारी मूल भ्रष्टता हमारे हृदय-परिवर्तन के साथ ही विलुप्त नहीं हो जाती है।

हम पापी हैं और हम भिखारी हैं। और यदि हम इस पाप को पहचान लेते हैं, उसको छो़ड़ देते हैं, उससे युद्ध करते हैं और अपनी आशा के रूप में ख्रीष्ट के क्रूस से चिपके रहते हैं, तो परमेश्वर हमारी सुनेगा और हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देगा। 

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