मैं यीशु की इस बात से अधिक प्रेरणादायक मिशनरी (सुसमाचार प्रचार-प्रसार) प्रतिज्ञा को नहीं जानता हूँ।
यह नहीं कि: यह सुसमाचार प्रचार किया जाना चाहिए।
यह नहीं कि: सम्भवतः यह सुसमाचार प्रचार किया जा सकता है।
परन्तु यह कि: यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा।
यह एक महान आदेश नहीं है, न ही यह एक महान आज्ञा है। यह एक महान निश्चितता है, एक महान भरोसा है।
इस रीति से बात करने का साहस कौन कर सकता है? वह कैसे जानता है कि यह होगा? यह कैसे सुनिश्चित हो सकता है कि कलीसिया अपने मिशनरी कार्य में असफल नहीं होगी?
उत्तर: मिशनरी सेवा का अनुग्रह उतना ही अप्रतिरोध्य है जितना कि पुनरुज्जीवन (regeneration) का अनुग्रह। ख्रीष्ट वैश्विक उद्घोषणा की प्रतिज्ञा कर सकता है क्योंकि वह सम्प्रभु है। वह मिशन की भविष्य की सफलता को जानता है क्योंकि वह भविष्य बनाता है। सभी जातियाँ सुनेंगी !
एक “जाति” वर्तमान काल का कोई “देश” नहीं है। जब पुराने नियम ने जातियों की बात की गई थी, तो उसने यबूसियों और परिज्जियों और हिव्वियों और एमोरियों और मोआबियों और कनानियों और पलिश्तियों जैसे समूहों को उल्लेखित किया। “जातियाँ” अपनी स्वयं की विशिष्ट भाषा और संस्कृति रखने वाले जातीय समूह होती हैं। भजन 117:1: “हे जाति जाति के सब लोगों, यहोवा कि स्तुति करो! हे राज्य राज्य के सब लोगों, उसका जयजयकार करो!” जातियाँ लोग हैं —हम जिन्हें लोगों का समूह (people groups) कहते हैं।
यीशु जो कि परमेश्वर का सम्प्रभु पुत्र और कलीसिया का प्रभु है, उसने सहजता से इस ईश्वरीय उद्देश्य को लिया और एक सम्पूर्ण निश्चितता के साथ व्यक्त किया, “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा कि सब जातियों पर साक्षी हो, और तब अन्त आ जाएगा” (मत्ती 24:14)।
विश्व मिशनों (सुसमाचार प्रचार-प्रसार का कार्य) के अभियान की सफलता पूर्ण रूप से निश्चित है। यह असफल नहीं हो सकता। तो फिर क्या यह उचित नहीं है, कि हम महान विश्वास के साथ प्रार्थना करें, महान भरोसे के साथ निवेश करें, और निश्चित विजय के भाव के साथ जाएँ?