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अपनी चिन्ता के समाधान हेतु बाइबल पढ़ना सीखें

चिन्ता के विषय में शिक्षा देते हुए मैंने मत्ती 6:24-34 पर आधारित तीन अध्ययन को तैयार किया है। मेरा उद्देश्य यह समझना था कि यीशु चिन्ता पर विजय पाने में कैसे हमारी सहायता करता है, और साथ ही छह बातों को सीखना कि हम स्वयं के लिए बाइबल कैसे पढ़ें। इस छोटी श्रृंखला के द्वारा मैं कार्यपद्धति, ईश्वरविज्ञान और लागूकरण के विषय में विचार करूँगा। बाइबल पढ़ने के लिए मैंने इन छह बातों पर प्रकाश डाला है।

1. बाइबल तर्क करती है।

बाइबल जो शिक्षा देती है उसके लिए कारणों या तर्क को प्रदान करती है। जब मैं 22 वर्ष का था तो यह मेरे जीवन में महान परिवर्तन का समय था, जब मुझे यह ज्ञात हुआ कि बाइबल मोतियों को जोड़कर रखने वाला एक धागा नहीं है, परन्तु यह जुड़े हुए विचारों की एक कड़ी है। यह इस पर एक बड़ा प्रभाव डालता है कि हम इसको कैसे पढ़ते हैं।

2.  बाइबल के विचार की इकाई (या खण्ड) का एक मुख्य बिन्दु है।

बाइबल में प्रत्येक विचार की इकाई (या खण्ड) का एक मुख्य बिन्दु है। तो इसका अर्थ यह है कि जो कुछ भी उस इकाई में है वह उस मुख्य बिन्दु का समर्थन करता है। यह बाइबल के विषय में सत्य है और इस लेख के विषय में भी सत्य है। जो कुछ भी आप पढ़ते हैं उसमें मुख्य बिन्दु को ढूंढे।  

3.  वास्तव में किसी खण्ड को समझने के लिए हमें यह अवश्य पता करना चाहिए कि सभी तर्क कैसे मुख्य बिन्दु का समर्थन करते हैं।

किसी खण्ड या स्थल को समझने का अर्थ यह ज्ञात करना है कि कैसे सभी तर्क मुख्य बिन्दु का समर्थन करते हैं। किसी भी खण्ड के मुख्य बिन्दु को पहचानने तथा मुख्य बिन्दु हेतु लेखक के विभिन्न तर्क को ज्ञात करने के बाद, हमें इनके मध्य सम्बन्धों को समझने के लिए कठिन परिश्रम करना है। कैसे प्रत्येक सहायक बिन्दु मुख्य बिन्दु को प्रमाणित करता है?

4.  यीशु समझता है कि सत्य हमारी भावनाओं को प्रभावित करता है।

यीशु समझता है कि सत्य  — कारण, तर्क और तथ्य — भावनाओं को प्रभावित करता या दबाव डालता है। चिन्ता एक भावना है। यह एक निर्णय नहीं है। हम निर्णय नहीं लेते कि हम चिन्तित होंगे। यह हमारे साथ घटित होता है। मत्ती 6 में यीशु सत्य, तथ्यों, प्रतिज्ञाओं और कारणों के साथ चिन्ता पर आक्रमण करता है।

“यीशु सत्य, तथ्यों, प्रतिज्ञाओं और कारणों के साथ चिन्ता पर आक्रमण करता है।”

इसलिए वह अवश्य विश्वास करता होगा कि हमारे प्राणों के लिए दिए गए उसके वचन का भावनात्मक, यहां तक कि शारीरिक, प्रभाव भी होगा। बाइबल में भावनाओं के सम्बन्ध में दर्जनों आज्ञाएं हैं, और जो आज्ञाएं दी गई हैं उसमें सत्य निहित हैं जिन्हें उजागर करना है। 

5. सत्य हमारी भावनाओं को प्रभावित करता है जब इस पर विश्वास किया जाता है।

कुछ लोग कहेंगे, “वैसे, मेरे साथ ऐसा नहीं होता है। जब मैं सत्य को सुनता हूँ, तो मुझ पर इसका कोई भावनात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। यह मेरी चिन्ता का समाधान नहीं करता है”। यह वहां कार्यान्वित होता है जहां सभी सत्य पर विश्वास और भरोसा किया जाता है — जहां कहीं विश्वास पाया जाता है।

यदि बाइबल के विभिन्न तर्क का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है, तो ऐसा इस कारण से है क्योंकि जो वह कहती है उस पर आपका विश्वास बहुत कम है। यहां पर विश्वास अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हमें अवश्य भरोसा करना चाहिए। यीशु जो कहता है उस पर हमें अवश्य विश्वास करना चाहिए। 

6.  विश्वास के लिए प्रार्थना करें और उसके सत्य पर मनन करें।

इसलिए, सत्य पर विश्वास के लिए प्रार्थना करें — खण्ड में मुख्य बिन्दु के साथ सभी सहायक बिन्दु  — और उस सत्य पर मनन करें, क्योंकि विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन के द्वारा होता है (रोमियों 10:17)।

पिता, कार्य विधि के विषय में हमें बुद्धि दें। हम आपके वचन का सटीक रीति से  उपयोग करें, इसके बारे में विचार करें कि इसे सटीक रीति से कैसे पढ़ें, और हम चिन्ता से मुक्त होना चाहते हैं ताकि हम अपने स्वर्गीय पिता का सम्मान कर सकें, जो हमें और हमारी सभी आवश्यकताओं को जानता है और जो अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उनको पूरी करेगा। मैं यीशु  के नाम में इसे माँगता हूँ, आमीन। 

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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