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कलीसिया यीशु ख्रीष्ट की देह है।

बाइबल में कलीसिया को विभिन्न रूपक के द्वारा चित्रित किया गया है, उनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण रूपक यह है कि कलीसिया ख्रीष्ट की देह है। पौलुस अपनी पत्रियों में कलीसिया को ख्रीष्ट की देह के रूप में चित्रित करता है। जिस प्रकार से एक देह में विभिन्न अंग पाए जाते हैं, वे सारे अंग एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं, एक दूसरे के सहायक होते हैं, तथा सम्पूर्ण देह व अंग सिर के द्वारा नियंत्रित व संचालित होती है, उसी प्रकार से कलीसिया ख्रीष्ट की देह है अर्थात् सभी विश्वासी लोग ख्रीष्ट की देह के अंग हैं। जो देह के सिर अर्थात् ख्रीष्ट के द्वारा नियंत्रित व संचालित किए जाते हैं। 

देह (कलीसिया) के सब अंग (विश्वासी) यीशु ख्रीष्ट द्वारा ही देह में जोड़े जाते हैं: कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से ख्रीष्ट की देह का अंग नहीं बन सकता है। विश्वासी कलीसिया में केवल ख्रीष्ट के लहू के द्वारा ही परमेश्वर के तथा एक-दूसरे ख्रीष्टियों के निकट आते हैं” (इफिसियों 2:13)। देह के अंग वे सच्चे विश्वासी लोग हैं जिन्होंने यीशु ख्रीष्ट के जीवन, मृत्यु और पुनरूत्थान में विश्वास किया है और स्थानीय कलीसिया में बपतिस्में के द्वारा एवं प्रभु भोज में सम्मिलित होने एवं कलीसिया में संगति रखने के द्वारा विश्वासी जीवन की साक्षी देते हैं। कलीसिया ख्रीष्ट की देह है और ख्रीष्ट कलीसिया का सिर है (कुलुस्सियों 1:18; इफिसियों 1:21-23; 4:15)। 

यीशु ख्रीष्ट ही है जो प्रत्येक विश्वासी को अपनी दया में होकर कलीसिया में एक साथ जोड़े रखता है। जिस प्रकार बिना सिर के देह मृतक है, जब तक देह सिर से जुड़ी हुई है तब तक जीवित रह सकती है और पोषण को प्राप्त कर सकती है, उसी प्रकार से यदि देह रूपी कलीसिया सिर रूपी ख्रीष्ट से पृथक हो जाए तो वह मृतक सदृश होगी। इसलिए हम विश्वासियों को सिर से जुड़े रहने की आवश्यकता है। उसके दिशा निर्देशन की आवश्यकता है। इसलिए मेरे प्रियो, यीशु ख्रीष्ट जो देह का सिर है, जो सम्पूर्ण देह पोषण प्रदान करता है, जो जीवन प्रदान करता है, उससे जुड़े रहें और ख्रीष्ट को अर्थात् सुसमाचार को थामे रहें।

देह में सब अंग बहुत महत्वपूर्ण है; भले ही वे निर्बल दिखें, पर वे देह के लिए बहुत आवश्यक और उपयोगी हैं।

देह (कलीसिया) में प्रत्येक अंग (विश्वासी) का समान मूल्य और महत्व है: यदि कलीसिया ख्रीष्ट की देह है और विश्वासी उस देह के अंग हैं तो इसका अर्थ है कि कलीसिया में प्रत्येक विश्वासी महत्वपूर्ण है। उद्धार के मामले में सबका उद्धार यीशु के लहू के द्वारा हुआ है और सबका समान मूल्य है, क्योंकि “अब न कोई यहूदी है और न यूनानी, न दास है और न स्वतन्त्र, न पुरूष है और न स्त्री, क्योंकि तुम सब ख्रीष्ट यीशु में एक हैं”(गलातियों 3:29)। ख्रीष्ट की देह में सबका समान मूल्य तथा महत्व है। ख्रीष्ट की देह में रंग-भेद, जाति-भेद, भाषा के आधार पर, पृष्ठभूमि के आधार पर कोई भेद नहीं है। ख्रीष्ट यीशु में विश्वास करने के द्वारा उनका उद्धार हुआ है और सब विश्वासी ख्रीष्ट के देह का भाग बनते हैं। देह में सब अंग बहुत महत्वपूर्ण है। भले ही वे निर्बल दिखें, पर वे देह के लिए बहुत आवश्यक और उपयोगी हैं। इसलिए “आंख, हाथ से नहीं कह सकती कि मुझे तेरी आवश्यकता नहीं; न सिर, पांव से कि मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं” (1 कुरिन्थियों 12:22)।

देह (कलीसिया) में प्रत्येक अंग (विश्वासी) की विभिन्न भूमिका व उत्तरदायित्व है: यद्यपि कलीसिया में सब विश्वासी समान हैं, परन्तु ख्रीष्ट की देह अर्थात कलीसिया में सभी विश्वासियों के पास विभिन्न भूमिका और उत्तरदायित्व है जिसका उद्देश्य कलीसिया अर्थात् देह की उन्नति है।  जिस प्रकार शरीर में अनेक अंग एक दूसरे से जुड़े हैं, पर उनके कार्य भिन्न हैं और वे भिन्न निश्चित स्थान में है उसी प्रकार कलीसिया में विश्वासियों के भिन्न कार्य हैं। “क्योंकि जैसे हमारे शरीर में अनेक अंग हैं और सभी अंगों का एक ही कार्य नहीं है, वैसे ही हम भी जो अनेक हैं, मसीह में एक देह हैं, और एक दूसरे के अंग हैं” (रोमियों 12:4-5)। 

पौलुस 1 कुरिन्थियों 12 में आत्मिक वरदानों की बात करते हुए ख्रीष्टियों को स्मरण दिलाता है कि सब प्रकार के वरदान एक ही आत्मा द्वारा सबकी भलाई के लिए दिया गया है। उसके बाद 12-16 पद में वह कलीसिया को ख्रीष्ट की देह के रूप में चित्रित करता है। इस देह में ख्रीष्ट कलीसिया का सिर है और सब विश्वासी इस देह के अंग हैं। कलीसिया अर्थात् देह में सब विश्वासी ख्रीष्ट से अर्थात् सिर से तथा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। विश्वासी इस देह के भिन्न-भिन्न अंग हैं। परमेश्वर की दृष्टि में कोई भी ख्रीष्ट की देह का सदस्य अन्य सदस्य से “बहुत अच्छा” या “बेकार” नहीं है। किन्तु प्रत्येक विश्वासी कलीसिया में भिन्न स्थान पर, भिन्न कार्य के लिए नियुक्त किए गए हैं, “परमेश्वर ने सब अंगो को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक करके देह में रखा है” (1 कुरिन्थियों 12:18)।

देह (कलीसिया) के प्रत्येक अंग (विश्वासी) को देह की उन्नति में लगे रहना है: हम सब जो परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा ख्रीष्ट यीशु में उसकी देह रूपी कलीसिया के अंग हैं, कलीसिया की एकता को बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहें और अपने समय, धन और भावनाओं द्वारा एक-दूसरे के जीवन में निवेश करें। जिससे देह की उन्नति द्वारा परमेश्वर की महिमा हो। हमें कलीसिया के विभिन्न प्रकार के लोगों पास्टर, सेमिनरी छात्र, युवा, वृद्ध, बच्चों, अविवाहित भाई और बहन तथा विवाहित जोड़ों, कलीसिया में कार्य करने वाले तथा बाहर भिन्न स्थानों पर कार्य करने वाले भाई एवं बहनों के साथ समय निकालने की आवश्यकता है। हमें एक-दूसरे से प्रेम, एक दूसरे का अतिथि-सत्कार, एक-दूसरे को उत्साहित करने, एक दूसरे को स्वागत करने, एक दूसरे के प्रति दयालु होने, एक-दूसरे का आदर करने, एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करने, एक दूसरे का भार उठाने, एक-दूसरे से प्रति न कुड़कुड़ाने, एक दूसरे की सेवा करने और एक दूसरे की सह लेने में बढ़ते जाने की आश्यकता है। (यूहन्ना 13:34-35, 1 पतरस 4:9, 1 थिस्स 5:11, रोमियों 15:7, रोमियों 12:10, याकूब 5:16, गलातियों 6:2, याकूब 5:9, गलातियों 5:13, कुलु 3:13)। 

अत: हमें जब परमेश्वर ने अपने अनुग्रह द्वारा अपने पुत्र के लहू द्वारा अपने परिवार में सम्मिलित किया है जिसका प्रधान यीशु है। तो आइये हम उसके प्रति कृतज्ञ हों, उसका धन्यवाद करें और कलीसिया के सब विश्वासियों को ख्रीष्ट में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। कलीसिया की उन्नति में लगे रहें।

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
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