क्रान्तिकारी प्रेम की कुँजी

April 21, 2025

क्रान्तिकारी प्रेम की कुँजी

“धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, तुम्हें यातना दें और झूठ बोल बोल कर तुम्हारे विरुद्ध सब प्रकार की बातें कहें: आनन्दित और मग्न हो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है। उन्होंने तो उन नबियों को भी जो तुमसे पहिले हुए इसी प्रकार सताया था” (मत्ती 5:11-12)।

मत्ती 5:44 से अपने शत्रुओं से प्रेम करो  पर प्रचार करते हुए मैंने कई प्रश्नों में एक प्रश्न यह पूछा कि आप उन लोगों से कैसे प्रेम करेंगे जो आपका अपहरण कर लें और बाद में आपका घात करें?

हम यह कैसे कर सकते हैं? इस प्रकार का प्रेम करने की सामर्थ्य कहाँ से आती है? आप यह सोचिए कि वास्तविक संसार में जब ऐसा होगा तो यह कितनी ही चौंकाने वाली बात होगी! क्या इस विचार के अतिरिक्त कुछ और है जो ख्रीष्ट के सत्य और सामर्थ्य और वास्तविकता को दिखा सकता है?

मेरा मानना है कि यीशु हमें इस क्रान्तिकारी, आत्मत्याग करने वाले प्रेम की कुँजी देता है जिसका इसी अध्याय में आगे चलकर मत्ती 5:44 में वर्णन पाया जाता है।

मत्ती 5:11-12 में, पुनः वह सताये जाने की बात करता है, ठीक वैसे ही जैसे उसने मत्ती 5:44 में कहा, “अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो सताते हैं उनके लिए प्रार्थना करो”। इन पदों में जो उल्लेखनीय बात है वह यह है कि यीशु कहता है कि तुम न केवल शत्रुओं के दुर्व्यवहार को सह सकते हो किन्तु उसमें आनन्द भी मना सकते हो। “धन्य हो तुम जब लोग तुम्हारे विषय में बुरी बुरी बातें कहें और सताएँ… आनन्दित और मगन हो।” 

ऐसी स्थिति में आनन्दित और मग्न होना अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना करने और उनके प्रति भलाई दिखाने से भी अधिक कठिन प्रतीत होता है। यदि मैं मानवीय दृष्टिकोण से इस असम्भव कार्य को कर पाता हूँ—अर्थात् सताव में आनन्दित हो पाता हूँ—तो अपने शत्रुओं से प्रेम कर पाना सम्भव है। यदि आनन्दित होने का यह आश्चर्यकर्म घोर अन्याय, पीड़ा और अभाव में उत्पन्न हो सकता है, तो सताने वालों के प्रति प्रेम का आश्चर्यकर्म भी हो सकता है। 

यीशु इन पदों में आनन्द की कुँजी को प्रदान करता है। वह कहता है, “आनन्दित और मग्न हो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है।” आनन्द की कुँजी यह है कि हम परमेश्वर द्वारा भविष्य-के-अनुग्रह पर विश्वास करें अर्थात् हम प्रत्येक उस बात में सन्तुष्ट हों जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने हमारे लिए की है। वह कहता है, “आनन्दित हो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है।” सताव में हमारा आनन्द यह है कि स्वर्ग का आनन्द हमारे इस भीषण समय में हमें सान्त्वना देता है और प्रेम करने के लिए हमें स्वतन्त्र करता है। इसलिए, इस आनन्द में उन शत्रुओं से प्रेम करने की सामर्थ्य है जो हमें सताते हैं। 

यदि यह सत्य है, तो प्रेम करने की आज्ञा अप्रत्यक्ष रीति से यह भी आज्ञा दे रही है कि हमें अपना मन स्वर्गीय वस्तुओं —जो कुछ भी परमेश्वर ने हमारे लिए प्रतिज्ञा की है— पर लगाना है, न कि पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाना है। 

अपने शत्रुओं से प्रेम करने की आज्ञा का अर्थ यह है कि हम परमेश्वर में और उसके महान प्रतिफल अर्थात् उसके भविष्य-के-अनुग्रह में अपनी आशा और अपने प्राण के लिए उत्तम सन्तुष्टि प्राप्त करें। क्रान्तिकारी प्रेम की कुँजी यह है कि हम भविष्य में होने वाले अनुग्रह पर भरोसा रखें। घनघोर पीड़ा के समय में हमें इस बात के लिए आश्वस्त होना चाहिए कि परमेश्वर का प्रेम “जीवन से भी उत्तम” है (भजन 63:3)। शत्रुओं से प्रेम करना स्वर्ग के प्रतिफल को अर्जित करना नहीं है। स्वर्ग के प्रतिफल को संजोना हमें हमारे शत्रुओं से प्रेम करने के लिए सशक्त करता है। 

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 407

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  1. क्रान्तिकारी प्रेम की कुँजी (Current)

    जॉन पाइपर | April 21, 2025
  2. मृत्यु का पूर्वाभ्यास (Rehearsal)

    जॉन पाइपर | December 31, 2025
  3. तैयार और सशक्त किए गए

    जॉन पाइपर | December 30, 2025
  4. एक भयानक गन्तव्य

    जॉन पाइपर | December 29, 2025
  5. महिमा ही लक्ष्य है

    जॉन पाइपर | December 28, 2025
  6. आपका लक्ष्य क्या है?

    जॉन पाइपर | December 27, 2025
  7. आपदा के विषय में कैसे विचार करें

    जॉन पाइपर | December 26, 2025
  8. क्रिसमस के तीन उपहार

    जॉन पाइपर | December 25, 2025
  9. क्रिसमस के दो उद्देश्य

    जॉन पाइपर | December 24, 2025
  10. परमेश्वर का अवर्णनीय उपहार

    जॉन पाइपर | December 23, 2025
  11. कि तुम विश्वास करो

    जॉन पाइपर | December 22, 2025