हम तुम्हारे लिए सदैव प्रार्थना करते हुए अपने प्रभु यीशु ख्रीष्ट के पिता परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, क्योंकि हमने ख्रीष्ट यीशु में तुम्हारे विश्वास और सब पवित्र लोगों के प्रति तुम्हारे प्रेम के विषय में सुना है। यह उस आशा के कारण है जो तुम्हारे लिए स्वर्ग में रखी हुई है। (कुलुस्सियों 1:3-5)
आज कलीसिया के साथ समस्या यह नहीं है कि ऐसे अत्यधिक लोग हैं जो पूरी भावनाओं से स्वर्ग से प्रेम करते हैं। समस्या यह नहीं है कि अंगीकार करने वाले ख्रीष्टीय संसार से पीछे हट रहे हैं, तथा अपना आधा दिन पवित्रशास्त्र को पढ़ने में व्यतीत कर रहे हैं तथा शेष आधे दिन संसार की आवश्यकताओं के प्रति उदासीन होकर परमेश्वर में अपने आनन्द के विषय में गीत गा रहे हैं। ऐसा तो नहीं हो रहा है! परमेश्वर के लोग परमेश्वर के प्रति इतने प्रेम से भरे नहीं हैं कि वे अपना आधा दिन उसके वचन में व्यतीत कर रहे हैं।
समस्या यह है कि अंगीकार करने वाले ख्रीष्टीय पवित्रशास्त्र पढ़ने में केवल दस मिनट व्यतीत करते हैं और फिर अपना आधा दिन धन कमाने में और शेष आधे दिन को उन वस्तुओं से प्रेम करने और सुधारने में व्यतीत करते हैं जिन पर वे अपना धन व्यय करते हैं।
यह स्वर्गीय-मन नहीं है जो इस संसार के खोए हुए तथा चोटिल लोगों के प्रति प्रेम में बाधा डालता है। यह तो सांसारिकता ही है जो प्रेम में बाधा डालती है, भले ही उसे सप्ताहान्त के धार्मिक दिनचर्या में छिपाया गया हो।
कहाँ है वह व्यक्ति, जिसका हृदय स्वर्ग की महिमा की प्रतिज्ञा के साथ प्रेम में इतना लवलीन है कि वह इस पृथ्वी पर निर्वासित एवं परदेशी होने का अनुभव करता है? कहाँ है वह व्यक्ति, जिसने आने वाले युग की सुन्दरता का स्वाद इस रीति से चखा है कि संसार के हीरे उसको किराना भण्डार के कंचों के जैसे प्रतीत होते हैं, और संसार का मनोरंजन उसे खोखला लगता है, और संसार के नैतिक आन्दोलन बहुत छोटे लगते हैं क्योंकि वे अनन्त काल को ध्यान में नहीं रखते हैं? कहाँ है वह व्यक्ति?
यह बात तो निश्चित है कि वह इन्टरनेट या खाने या सोने या पीने या भोज करने या मछली पकड़ने या नौकायन में यात्रा करने या घूमने के दासत्व में नहीं है। वह तो एक विदेशी भूमि में एक स्वतन्त्र व्यक्ति है। और यह उसका एक ही प्रश्न है: जब तक मैं इस पृथ्वी पर निर्वासित हूँ, तो मैं कैसे अनन्त काल के लिए परमेश्वर में अपने आनन्द को सर्वाधिक सीमा तक बढ़ा सकता हूँ? और उसका उत्तर सदैव एक ही होता है: प्रेम में किये गये परिश्रमों को करने के द्वारा। परमेश्वर में अपने आनन्द का विस्तार करने के द्वारा भले ही उसके लिए कोई भी मूल्य क्यों न चुकाना पड़े। और यदि किसी रीति से सम्भव हो तो मैं दूसरों को भी इसमें सम्मिलित करने का प्रयास करूँगा।
जिस हृदय का धन स्वर्ग में होता है, उसको केवल एक ही बात सन्तुष्ट करती है और वह है: स्वर्ग के लिए कार्यों को करना। और स्वर्ग में तो प्रेम बहुतायत से है!
यह स्वर्ग की डोरी नहीं हैं जो प्रेम के हाथों को बाँधती है और उन्हें अप्रभावी बनाती है। यह धन और विश्राम और सुख और प्रशंसा का प्रेम है — ये स्वार्थ की डोरियाँ हैं जो प्रेम के हाथों को बाँधती हैं। और ख्रीष्टीय आशा में ही इन डोरियों को तोड़ने की शक्ति पाई जाती है। “हमने ख्रीष्ट यीशु में तुम्हारे विश्वास और सब पवित्र लोगों के प्रति तुम्हारे प्रेम के विषय में सुना है। यह उस आशा के कारण है जो तुम्हारे लिए स्वर्ग में रखी हुई है” (कुलुस्सियों 1:4-5)।
मैं इसे फिर से अपने भीतर के सम्पूर्ण कायलता के साथ कहता हूँ: यह स्वर्गीय-मन नहीं है जो इस पृथ्वी पर प्रेम में बाधा डालता है। यह तो सांसारिक-मन है। और इसलिए प्रेम का महान झरना तो ख्रीष्टीय आशा का शक्तिशाली तथा स्वतन्त्र करने वाला भरोसा है।