मैं कब सन्तुष्ट होऊँगा?

July 4, 2025

 मैं कब सन्तुष्ट होऊँगा?

और मैंने तेरा नाम इनको बताया और बताता रहूँगा, कि जिस प्रेम से तू ने मुझ से प्रेम किया वह उनमें रहे, और मैं उनमें।” (यूहन्ना 17:26)

कल्पना करें कि आप सर्वदा के लिए अपार और बढ़ती हुई ऊर्जा और लालसा के साथ उस बात का आनन्द लेने में सक्षम हैं जो सर्वाधिक  आनन्ददायक है।

यह अभी हमारा अनुभव नहीं है। तीन बातें हैं जो इस संसार में हमारी पूर्ण सन्तुष्टि पाने में बाधा बनती हैं।

  1. इस संसार में किसी भी वस्तु का इतना व्यक्तिगत मूल्य नहीं है कि वह हमारे हृदयों की सबसे गहरी लालसाओं को पूरा कर सके।
  1. हमारे पास सर्वोत्तम धनसंग्रहों के सर्वाधिक मूल्य तक रसास्वादन करने का सामर्थ्य नहीं है।
  1. यहाँ की वस्तुओं में हमारा आनन्द समाप्त हो जाता है। कुछ भी सर्वदा तक नहीं बना रहता है।

परन्तु यदि यूहन्ना 17:26 में यीशु का लक्ष्य पूरा हो जाता है, तो यह सब कुछ परिवर्तित हो जाएगा। वह अपने पिता से हमारे विषय में प्रार्थना करता है, “और मैंने तेरा नाम इनको बताया और बताता रहूँगा, कि जिस प्रेम से तू ने मुझ से प्रेम किया वह उनमें रहे, और मैं उनमें।”  परमेश्वर अपने पुत्र से वैसा प्रेम नहीं करता है जैसा वह पापियों से करता है। वह पुत्र से प्रेम करता है क्योंकि पुत्र असीम रूप से प्रेम किये जाने के योग्य है। अर्थात्, वह पुत्र से प्रेम करता है क्योंकि पुत्र असीम रूप से मनोहर है। जिसका अर्थ है कि यह प्रेम पूर्ण रूप से आनन्ददायक है। यीशु प्रार्थना करता है कि हमारा पुत्र में वही आनन्द पाया जाए, जो पिता द्वारा पुत्र में आनन्द पाया जाता है।

यदि पुत्र में परमेश्वर का आनन्द हमारा आनन्द बन जाता है, तो यीशु जो हमारे आनन्द का पात्र होगा, उसका मूल्य हमारे लिए असीमित होगा। वह कभी भी उबाऊ या निराशाजनक या निष्फल आभास करने वाला नहीं होगा। परमेश्वर के पुत्र से बड़े धन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

परन्तु इसमें वह जोड़ दें जिसके लिए यीशु प्रार्थना करता है; अर्थात्, कि हमारी क्षमता — हमारी ऊर्जा, हमारी लालसा — इस समाप्त न होने वाले धन का रसास्वादन करने के लिए मानवीय निर्बलताओं के कारण सीमित नहीं होगी। हम सर्वसामर्थी पिता के ही आनन्द के साथ परमेश्वर के पुत्र का आनन्द उठाएँगे।

उसके पुत्र में परमेश्वर की प्रसन्नता हम में होगी और वह प्रसन्नता हमारी होगी। और इसका कभी अन्त नहीं होगा, क्योंकि न तो पिता और न ही पुत्र का कोई अन्त है। एक दूसरे के लिए उनका प्रेम ही उनके लिए हमारा प्रेम होगा, और इसलिए उनके लिए हमारा प्रेम कभी भी नहीं मरेगा।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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