यीशु को किसने मारा?

June 13, 2025

यीशु को किसने मारा?

“वह जिसने अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा परन्तु उसे हम सब के लिए दे दिया, तो वह उसके साथ हमें सब कुछ उदारता से क्यों न देगा?” (रोमियों 8:32)

मेरा एक मित्र जो इल्लिनोई में पास्टर हुआ करता था, कई वर्ष पहले यीशु के दुःखभोग वाले सप्ताह के समय में राज्य बन्दीगृह में बन्दियों के एक झुण्ड को प्रचार कर रहा था। अपने सन्देश के समय, उसने रुककर वहाँ के पुरुषों से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि यीशु को किसने मारा।

कुछ ने कहा सैनिकों ने उसे मारा। कुछ ने कहा कि यहूदियों ने उसे मारा। कुछ ने पिलातुस का नाम लिया। कुछ समय के बाद सब चुप हो गए तो मेरे मित्र ने केवल इतना कहा, “उसके पिता ने उसे मारा।”

रोमियों 8:32 का पहला भाग यही कहता है: परमेश्वर ने अपने पुत्र को नहीं छोड़ा परन्तु उसे दे दिया — मृत्यु के लिए। “इस यीशु को, जो परमेश्वर की पूर्व-निश्चित योजना और पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया था” (प्रेरितों के काम 2:23)। यशायाह 53 इसी बात को और अधिक स्पष्टता से समझाता है “हमने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा . . .  यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले। उसी ने (अर्थात् उसके पिता ने) उसको पीड़ित किया” (यशायाह 53:4,10)।

या फिर जैसा कि रोमियों 3:25 कहता है, “परमेश्वर ने [उसको] उसके लहू में विश्वास के द्वारा प्रायश्चित्त ठहराया।” जिस प्रकार अब्राहम ने अपने पुत्र इसहाक की सीने के ऊपर छुरी उठा ली, परन्तु फिर उसने अपने पुत्र को छोड़ दिया क्योंकि झाड़ी में एक मेढ़ा फँसा हुआ था, उसी रीति से परमेश्वर पिता ने अपने पुत्र यीशु के सीने के ऊपर छुरी उठा ली — परन्तु उसने उसे नहीं छोड़ा, क्योंकि वही  तो वह मेढ़ा था, वही  तो प्रतिस्थापन्न था।

परमेश्वर ने अपने पुत्र को इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि यही वह एकमात्र उपाय था जिसके द्वारा वह हमें छोड़ सकता था और फिर भी धर्मी और पवित्र परमेश्वर बना रह सकता था। हमारे अपराध का दोष, हमारे अधर्म का दण्ड, हमारे पाप का श्राप निश्चित रूप से हमें नरक के विनाश तक लेकर जाता। परन्तु परमेश्वर ने अपने पुत्र को नहीं छोड़ा; उसने उसको दे दिया कि वह हमारे अपराधों के लिए बेधा जाए, हमारे अधर्मों के लिए कुचला जाए, और हमारे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ाया जाए।

यह पद — रोमियों 8:32 — मेरे लिए बाइबल का सबसे बहमूल्य पद है क्योंकि भविष्य-के-अनुग्रह के लिए परमेश्वर की व्यापक प्रतिज्ञा की नींव यह है कि परमेश्वर के पुत्र ने अपनी देह में मेरे सारे दण्ड और मेरे सारे दोष और मेरी सारी दण्डाज्ञा और मेरी सारी निन्दा और मेरी सारी भ्रष्टता और मेरे सारे अपराध को ले लिया, जिससे कि मैं एक महान् और पवित्र परमेश्वर के सामने क्षमा-प्राप्त, मेल-मिलाप हुए, धर्मीकृत, स्वीकृत, और उसके दाहिने हाथ पर हर्ष की अवर्णनीय प्रतिज्ञाओं के प्राप्तकर्ता के रूप में खड़ा हो सकता हूँ।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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