इस पद के सन्दर्भ में, पौलुस चिन्तित है कि लोग अपने विषय में “जितना समझना चाहिए उस से बढ़कर” समझ रहे थे। इस घमण्ड के लिए उसका अन्तिम उपचार इस बात को कहना है कि न केवल आत्मिक वरदान हमारे जीवन में परमेश्वर का सेंतमेंत अनुग्रह है परन्तु वह विश्वास भी परमेश्वर का सेंतमेंत अनुग्रह है जिसमें होकर हम उन वरदानों को उपयोग करते हैं। “ . . . विश्वास के परिमाण के अनुसार।”
इसका अर्थ है कि घमण्ड करने का प्रत्येक सम्भव आधार हमसे ले लिया गया है। तो भला हम कैसे घमण्ड कर सकते हैं यदि वरदानों को प्राप्त करने की योग्यता भी स्वयं एक वरदान है?
इस सत्य का इस बात पर गहरा प्रभाव पड़ता है कि हम प्रार्थना कैसे करते हैं। लूका 22:31-32 में यीशु इसका उदाहरण देता है। पतरस द्वारा यीशु को तीन बार नकारने से पहले यीशु उससे कहता है, “शमौन, हे शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ के समान फटकने के लिए आज्ञा माँग ली है, परन्तु मैंने तेरे लिए प्रार्थना की है कि तेरा विश्वास चला न जाए। अतः जब तू फिरे तो अपने भाइयों को स्थिर करना।”
यीशु प्रार्थना करता है कि पतरस का विश्वास यीशु को नकारने के पाप के पश्चात भी बना रहे, क्योंकि वह जानता है कि परमेश्वर ही है जो विश्वास प्रदान करता है। इसलिए हमें भी यीशु के समान ही प्रार्थना करनी चाहिए — स्वयं के लिए और दूसरों के लिए कि परमेश्वर हमारे विश्वास को बनाए रखे।
मिरगी से ग्रस्त बालक के पिता ने इस प्रकार दुहाई दी, “मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अविश्वास का उपचार कर!” (मरकुस 9:24)। यह एक अच्छी प्रार्थना है। यह इस बात को स्वीकार करती है कि परमेश्वर के बिना हम उस रीति से नहीं विश्वास कर सकते हैं जैसे हमें विश्वास करना चाहिए।
आइए हम प्रतिदिन प्रार्थना करें, “हे प्रभु, मेरे विश्वास के लिए धन्यवाद। इसे बनाए रखिए। इसे सुदृढ़ कीजिए। इसे गहरा कीजिए। इसे विफल न होने दीजिए। इस रीति से इसे मेरे जीवन की सामर्थ्य बनाएँ, जिससे कि मैं जो कुछ भी करता हूँ, उस सब में महान् दाता के रूप में आपको महिमा मिले। आमीन।”