यीशु का पुनरुत्थान क्यों आवश्यक था

ख्रीष्टीय विश्वास के जीवन में यीशु का पुनरुत्थान सबसे महत्वपूर्ण भाग है। प्रेरित पौलुस पुनरुत्थान के सन्दर्भ में लिखता है कि यीशु के पुनरुत्थान के बिना हमारा विश्वास व्यर्थ है (1 कुरिन्थियों 15:14)। इसलिए हमें पुनरुत्थान के महत्व को समझना आवश्यक है। क्यों इसके बिना हमारा विश्वास, हमारा प्रचार, हमारी गवाही और हमारी आशा व्यर्थ ठहरती है? इस लेख में हम इन बातों पर विचार करेंगे। 

यीशु का पुनरुत्थान उसके ईश्वरत्व का प्रमाण है 
इस पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के समय, यीशु ने परमेश्वर के पुत्र होने का दावा किया। यीशु की शिक्षाओं व उपदेश को सुनकर लोगों को आश्चर्य हुआ और वे कहने लगे कि उसका वचन अधिकारपूर्ण है (लूका 4:32)। मरकुस रचित सुसमाचार में हम पाते हैं कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है और वह अधिकार के साथ शिक्षा देता है, चंगाई करता है, शुद्ध करता है, और पापों को क्षमा करता है (मरकुस 1-2)। पवित्रशास्त्र में हम यह भी पाते हैं कि क्रूस पर यीशु को प्राण छोड़ते हुए देखकर वहां खड़े हुए सूबेदार ने कहा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था” (मरकुस 15:39)। 

हमारे उद्धार के निमित्त यीशु का पुनरुत्थान आवश्यक था और परमेश्वर की मनसा के अनुसार था। हमारे उद्धार के कार्य को पूर्ण करने के लिए न केवल यीशु का देहधारी होकर संसार में आना, पापरहित जीवन जीना और क्रूस पर हमारे लिए प्रतिस्थापनीय मृत्यु को सहना आवश्यक था पर उसका मृतकों में से जी उठना भी अनिवार्य था। यीशु ने हमारे उद्धार के कार्य को अधूरा नहीं रखा परन्तु पुनरुत्थान के द्वारा उसने उसे पूरा भी किया। बिना यीशु के पुनरुत्थान के हम आशा रहित हो जाते। रोमियो 5:10 में लिखा है “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” 

हमारे उद्धार के लिए यीशु का पुनरुत्थान किसी मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं हुआ पर यह परमेश्वर की योजना के अनुसार था। प्रेरित पतरस पिन्तेकुस के दिन लोगों के मध्य खड़ा हुआ और ऊंचे शब्द में प्रचार करते हुए कहने लगा कि यीशु का पकड़वाया जाना, उसकी मृत्यु और उसका पुनरुत्थान परमेश्वर की मनसा के अनुसार था क्योंकि यह असम्भव था कि वह मृत्यु के वश में रहता  (प्रेरितों के काम 2:23-24)।

हमारे उद्धार के कार्य को पूर्ण करने के लिए न केवल यीशु का देहधारी होकर संसार में आना, पापरहित जीवन जीना और क्रूस पर हमारे लिए प्रतिस्थापनीय मृत्यु को सहना आवश्यक था पर उसका मृतकों में से जी उठना भी अनिवार्य था।

यीशु का पुनरुत्थान पवित्रशास्त्र की भविष्यवाणियों को पूरा करता है 
यीशु का मृतकों में से जी उठना हमें आश्चर्यचकित नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह अचानक से नहीं हुआ, पर यह पुराने नियम में की गई भविष्यवाणियों के अनुसार था। 

पुराने नियम में यीशु के पुनरुत्थान से जुड़ी हुई भविष्यवाणियों को हम भजन संहिता 16:9-10, 22:26, यशायाह 25:8 और यशायाह 53:10 में देखते हैं। परमेश्वर ने अपने नबियों और भविष्यवक्ताओं के द्वारा मसीहा के जन्म, मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में बातों को पहले ही से प्रकट कर दिया था। 

पुराने नियम में यीशु के जीवन मृत्यु और विशेषकर पुनरुत्थान के बारे में पाई जाने वाली समस्त भविष्यवाणियों को यीशु मसीह स्वयं में पूर्ण करते हैं। यीशु ख्रीष्ट स्वयं अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में भविष्यवाणी करते हैं कि वह यरुशलेम में पकड़वाया जाएगा, मारा जाएगा और तीसरे दिन जी उठेगा (मरकुस 8:31, 9:31, 10:33-34)। 

इसलिए, यीशु का पुनरुत्थान पुराने नियम के भविष्यवाणियों  को पूरा करता है, परमेश्वर की योजना को पूरा करता है और हमारे विश्वास को भी दृढ़ करता है। हमारा विश्वास उन बातों के ऊपर नहीं है जो काल्पनिक हैं, जो अप्रत्याशित है या फिर अस्थिर है। हमारा विश्वास परमेश्वर के उन वचनों पर आधारित है जो स्थिर है, विश्वासयोग्य है और सत्य है।        

यीशु का पुनरुत्थान हमें जीवित आशा देता है 
यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा हमारे पास एक जीवित और धन्य आशा है। 1पतरस 1:3 के अनुसार यीशु ख्रीष्ट के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, परमेश्वर पिता ने अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिए नया जन्म दिया। यह आशा हमारे भौतिक/सांसारिक आशीषों की प्रतिज्ञा नहीं है या फिर अच्छे स्वास्थ्य और नौकरी की आशा नहीं है। यह उससे कहीं अधिक बड़ा और विशाल है। यह आशा हमें अनन्त जीवन की आशा देता है। इस आशा में हम आनन्दित होते हैं, क्योंकि अब हम निश्चिन्त हैं कि हमारे पापों की क्षमा हो गई है, हम परमेश्वर की सन्तान ठहराए जा चुके हैं, हमारे ऊपर अब दण्ड की आज्ञा नहीं है, हमारी मज़दूरी अब मृत्यु नहीं है। अब हम इस धन्य और जीवित आशा के साथ जीते हैं कि एक दिन हम भी जिलाए जाएंगे, जैसा कि ख्रीष्ट भी जिलाया गया है। जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही ख्रीष्ट में सब जिलाए जाएंगे (1 कुरिन्थियों 15:21)।  

क्योंकि यीशु ख्रीष्ट स्वयं यूहन्ना 11:25 में इस बात का दावा कर रहे हैं कि पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है, यदि मर भी जाए, फिर भी जीएगा। 

अतः जब हम यीशु के पुनरुत्थान के सत्य को और उसके महत्व को समझते हैं, तो हम अपने जीवन में परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता को और भी गम्भीरता से लें। रोमियो 6:4 के अनुसार – क्योंकि ख्रीष्ट मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें। 

साझा करें
मोनिष मित्रा
मोनिष मित्रा

परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और मार्ग सत्य जीवन के साथ सेवा करते हैं।

Articles: 30

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *