“वे उस तारे को देखकर अति आनन्दित हुए। उन्हने घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और भूमि पर गिर कर उसको दण्डवत किया और अपना अपना संदूक खोल कर उसे सोना, लोबान और गन्धरस की भेंट चढ़ाई।” (मत्ती 2:10–11)
और न ही मनुष्यों के हाथों से परमेश्वर की सेवा-टहल होती है, मानो कि उसे किसी बात की आवश्यकता हो (प्रेरितों के काम 17:25)। मजूसियों द्वारा दिए गए उपहार सहायता या आवश्यकता-पूर्ति के लिए नहीं दिए गए थे। यदि विदेशी आगंतुक साधारण उपहार के साथ आते तो यह बात सम्राट को अपमानित करती।
इन उपहारों का उद्देश्य घूस के रूप में दिया जाना भी नहीं है। व्यवस्थाविवरण 10:17 कहता है कि परमेश्वर घूस नहीं लेता है। तो फिर, इन उपहारों का क्या अर्थ है? ये उपहार आराधना को कैसे प्रदर्शित करते हैं?
धनी तथा आत्मनिर्भर लोगों को दिए गए उपहार, देने वाले व्यक्ति की इस इच्छा की प्रतिध्वनि तथा तीव्रता को प्रकट करते हैं, कि उपहार पाने वाला व्यक्ति कितना अद्भुत है। एक अर्थ में, ख्रीष्ट को उपहार देना उपवास के समान है—किसी वस्तु को यह दर्शाने के लिए त्यागना कि ख्रीष्ट उस वस्तु से जिसको आप त्याग रहे हैं कहीं अधिक मूल्यवान है ।
जब आप इस रीति के उपहार ख्रीष्ट को देते हैं, तो यह इस बात को कहने का एक ढंग है कि “जिस आनन्द का मैं खोजी हूँ [मत्ती 2:10 पर ध्यान दें! “जब उन्होंने उस तारे को देखा, तो वे बडे़ आनन्द से अति आनन्दित हुए।”] वह आप के साथ किसी वस्तु का आदान-प्रदान करके या धन का मोल-तोल करके धनी होने की आशा नहीं है। मैं आप के पास आपकी वस्तुओं के लिए नहीं आया हूँ, किन्तु स्वयं आपके लिए आया हूँ। और वस्तुओं को छोड़ने के द्वारा मैं अब इस इच्छा को उस आशा में और तीव्र करता हूँ एवं दर्शाता हूँ, कि मैं वस्तुुओं का नहीं किन्तु आपका और अधिक आनन्द उठा सकूँ। आपको वे वस्तुएँ देने के द्वारा वास्तव में जिसकी आपको आवश्यकता नहीं है और जिनका मैंं आनन्द उठा सकता हूँ, मैं इस बात को अधिक सत्यनिष्ठा तथा अधिक सच्चाई से कह रहा हूँ, कि ‘ये वस्तुएँ नहीं किन्तु आप मेरा धन हैं।’’’
मेरे विचार से सोना, लोबान और गन्धरस के उपहार के साथ परमेश्वर की आराधना करने का यही अर्थ है। या वह सब कुछ जो हम परमेश्वर को देने के विषय में विचार कर सकते हैं।
परमेश्वर हमारे भीतर स्वयं ख्रीष्ट के लिए इच्छा जागृत करे। जिससे कि हम अपने हृदय से कह सकें, “प्रभु यीशु, आप मसीहा हैं, इस्राएल के राजा। सभी राष्ट्र आपके सामने आकर दण्डवत करेंगे। परमेश्वर इस बात को सुनिश्चित करने के लिए इस संसार का संचालन करता है कि आप की आराधना हो। इस कारण, मुझे जिस भी विरोध का सामना करना पड़े, मैं हर्ष से आप के अधिकार और गरिमा का वर्णन करता हूँ, और अपने उपहारों को यह कहने के लिए लाता हूँ कि मात्र आप ही मेरे हृदय को सन्तुष्ट कर सकते हैं।”