विवाह में प्रेम की एक पद्धति है जिसे परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है।
पति तथा पत्नी दोनों की भूमिकाएँ एक समान नहीं हैं। पति को ख्रीष्ट का, जो कि कलीसिया का सिर है, अनुकरण करना चाहिए। पत्नी को कलीसिया का, जैसे कि परमेश्वर ने उसे ख्रीष्ट के अधीन होने के लिए ठहराया है, अनुकरण करना चाहिए।
ऐसा करने के द्वारा, पतन के पापपूर्ण तथा हानिकारक प्रभाव पलटने लगते हैं। पतन ने पुरुषों में प्रेमपूर्ण मुखियापन को कुछ पुरुषों में उग्र प्रभुता और कुछ में आलसपूर्ण उदासीनता में विकृत कर दिया है। पतन ने स्त्री की बुद्धिमता, स्वेच्छिक अधीनता को कुछ स्त्रियों में छलपूर्ण चापलूसी, और निर्लज्ज विद्रोह में बदल डाला है।
जिस छुटकारे की अपेक्षा हम कर रहे थे, उसके अनुसार जब मसीहा, अन्ततः यीशु ख्रीष्ट में आया तो उसने सृष्टि के क्रम में प्रेमपूर्ण मुखियापन और स्वेच्छिक अधीनता को हटाया नहीं किन्तु उसे पुनःस्थापित किया। पत्नियो, परमेश्वर की इच्छानुसार हर्षपूर्ण कलीसिया हेतु बनाए गए आदर्श को ढालते हुए अपनी पतित अधीनता को छुड़ा लो! पतियो, अत्यधिक प्रेम करने वाले ख्रीष्ट के लिए परमेश्वर की इच्छानुसार ढालते हुए अपने पतित मुखियापन को छुड़ा लें!
इफिसियों 5:21-33 में मुझे ये दो बातें मिलती हैं: (1) विवाह में ख्रीष्टीय सुखवाद का प्रदर्शन और (2) इसके प्रभावों को दिशा लेनी चाहिए।
पत्नियो, अपने सम्बन्धों में परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अपने पति के “मुखिया” या अगुवे की उस भूमिका की पुष्टि तथा आदर करने के द्वारा अपने पति के आनन्द में आनन्दित हों। पतियो, अपनी पत्नी के आनन्द में आनन्दित होने की खोज करो अपने अगुवाई करने के उस उत्तरदायित्व को स्वीकार करने के द्वारा जैसे ख्रीष्ट ने कलीसिया की अगुवाई की और उसके लिए अपने प्राण दे दिए।
मैं अपने जीवन से परमेश्वर की भलाई की साक्षी देना चाहता हूँ। मैंने 1968 में ख्रीष्टीय सुखवाद को समझा जिस वर्ष मेरा विवाह हुआ था। उस समय से, नोएल और मैंने यीशु ख्रीष्ट के आज्ञापालन में जितना हम से हो सका हमने सबसे स्थायी आनन्द को पाने की खोज की है। यद्यपि ये सब सिद्धता के साथ नहीं हुआ, और कभी-कभी तो आधे-अधूरे मन से भी हुआ, किन्तु हमने एक दूसरे के आनन्द में अपने आनन्द को खोजा है।
और हम लगभग बीते 50 वर्षों के वैवाहिक जीवन की एक साथ साक्षी दे सकते हैं: उनके लिए जो विवाह करते हैं, यह हृदय की अभिलाषा की पूर्ति का एक मार्ग है। हमारे लिए, विवाह ख्रीष्टीय सुखवाद का एक परिवेश रहा है। जैसे-जैसे हम में से प्रत्येक एक-दूसरे के आनन्द में आनन्द मनाते हैं और परमेश्वर-स्थापित भूमिका को पूर्ण करते हैं, विवाह का रहस्य जो कि ख्रीष्ट तथा कलीसिया के सम्बन्ध का दृष्टान्त है, उसकी बड़ी महिमा तथा हमारे बड़े आनन्द हेतु प्रकट हो जाता है।