विवाह का रहस्य
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

“अतः मनुष्य अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे।” यह रहस्य तो महान है पर मैं यह बात ख्रीष्ट और कलीसिया के सन्दर्भ में कह रहा हूँ। (इफिसियों 5:31-32)

यहाँ इफिसियों 5:31 में पौलुस उत्पत्ति 2:24 को उद्धरित कर रहा है, जिसे मूसा ने कहा था  — और इसके विषय में यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने मूसा के द्वारा यह कहा था (मत्ती 19:5) — “पुरुष अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के प्रति आसक्त होगा और वे दोनों एक तन होंगे।” पौलुस कहता है कि परमेश्वर का यह वचन, जो पतन से पहले बोला गया था, ख्रीष्ट और कलीसिया के विषय में है और इसीलिए इसमें एक महान् रहस्य है।

इसका यह अर्थ है कि जब परमेश्वर पुरुष और स्त्री की सृष्टि करने और विवाह के मिलन को स्थापित करने के कार्य में लगा, तो उसने पासे नहीं फेंके और न ही सिक्का उछाला कि उनके मध्य किस प्रकार का सम्बन्ध होना चाहिए। उसने उद्देश्यपूर्ण रीति से विवाह को अपने पुत्र और कलीसिया के सम्बन्ध के अनुरूप बनाया, जिसकी योजना उसने सनातन काल से बनाई थी।

इसलिए, विवाह एक रहस्य है — इसमें एक ऐसा अर्थ निहित और छिपा हुआ है जो उसके दिखने वाले बाहरी रूप से बहुत बड़ा है। परमेश्वर ने मनुष्य को नर और नारी करके सृजा और विवाह को स्थापित किया, जिससे कि ख्रीष्ट और कलीसिया के मध्य के अनन्त वाचाई सम्बन्ध को विवाह के मिलन में प्रकट किया जाए।

इस रहस्य से पौलुस यह अर्थ निकालता है कि विवाह में पति और पत्नी की भूमिकाएँ मनमाने ढंग से ठहराई नहीं गईं हैं, परन्तु वे ख्रीष्ट और उसकी कलीसिया की विशिष्ट भूमिकाओं पर आधारित हैं।

हम में से जो लोग विवाहित हैं, हमें बारम्बार विचार करने की आवश्यकता है कि यह कितना रहस्यमय और अद्भुत है कि परमेश्वर विवाह में हमें यह सौभाग्य देता है कि हम विस्मयकारी ईश्वरीय वास्तविकताओं को प्रकट कर सकें जो असीम रीति से हम से बड़ी और महान् हैं।

ख्रीष्ट और कलीसिया का यह रहस्य प्रेम की उस पद्धति का आधार है जिसे पौलुस विवाह के लिए वर्णित करता है। केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है कि पति और पत्नी को एक दूसरे के आनन्द में अपने आनन्द की खोज करनी चाहिए। वह सत्य है। परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। यह भी कहना महत्वपूर्ण है कि पतियों और पत्नियों को उद्देश्यपूर्ण रीति से उस सम्बन्ध का अनुकरण करना चाहिए जिसे परमेश्वर ने ख्रीष्ट और कलीसिया के मध्य चाहा है। अर्थात्, पति और पत्नी दोनों को ऐसे जीने का प्रयास करना चाहिए जो ख्रीष्ट और कलीसिया के लिए परमेश्वर की शुद्ध और भली योजना के अनुसार हो।

मैं आशा करता हूँ कि आप इसे गम्भीरता से लेंगे भले ही आप अविवाहित हों या विवाहित, वृद्ध अथवा युवा। वाचा को पूरी करने वाला ख्रीष्ट तथा उसकी वाचा को पूरी करने वाली कलीसिया का प्रकाशन इसी बात पर निर्भर है।

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