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हम अपने स्थानीय कलीसिया में कैसे योगदान दे सकते हैं?

परमेश्वर ने अपने प्रेम में होकर, अपने अनुग्रह द्वारा हमारा उद्धार किया है। उसने हमें व्यक्तिगत रूप से बचाया है और हमारा उद्धार करके बचाए हुए लोगों (विश्वासियों की मण्डली) में सम्मिलित किया है। यह सब केवल ख्रीष्ट के लहू के द्वारा हुआ है। उसके लहू के कारण हमारा परमेश्वर के साथ तथा दूसरे विश्वासियों से मेल-मिलाप हुआ है। अब हम कलीसिया के रूप में एक परिवार के सदस्य हैं। इस कारण जब हम कलीसिया में हैं तो हमारे पास बहुत उत्तरदायित्व हैं जिनको हमें करना है।

      आइये हम कुछ बिन्दुओं के द्वारा उस बात पर ध्यान दें जिनको करने के द्वारा हम कलीसिया में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।-

1.  प्रार्थना करने के द्वारा- एक विश्वासी कलीसिया का अंग है और परमेश्वर के कुटुम्ब का है। एक झुण्ड में होने के कारण हमारा उत्तरदायित्व है कि हम अपने ख्रीष्टीय परिवार (कलीसिया) के लोगों के लिए प्रार्थना करें। हम दूसरे विश्वासियों के जीवन के लिए परमेश्वर की बढ़ाई करें, प्रशंसा करें और धन्यवाद दें। हमें साथ ही साथ उन लोगों के लिए भी प्रार्थना करना चाहिए जो पाप से संघर्ष कर रहे हैं, भिन्न-भिन्न परीक्षाओं का सामना कर रहे हैं तथा पारिवारिक जीवन एवं व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष कर रहे हैं। 

कलीसिया का सदस्य होने के नाते हमारा उत्तरदायित्व है कि हम दूसरे विश्वासियों के आत्मिक जीवन का ध्यान रखें।

2. एक-दूसरे के साथ बाइबल पढ़ने के द्वारा- कलीसिया का सदस्य होने के नाते हमारा उत्तरदायित्व है कि हम दूसरे विश्वासियों के आत्मिक जीवन का ध्यान रखें। हम विश्वासियों के साथ नियमित रीति से बाइबल पढ़ने के द्वारा उन्हें आत्मिक जीवन में बढ़ने में सहायता कर सकते हैं। भाई- भाईयों के साथ, बहनें- बहनों के साथ व्यक्तिगत रूप से वचन का अध्ययन करें, मनन करें, तथा सीखी गई बातों की चर्चा करते हुए अपने जीवनों में लागू करें। इस प्रकार हम अन्य कलीसिया के भाई-बहनों को ख्रीष्ट के स्वभाव में बढ़ने के लिए सहायता कर सकते हैं।

3. विश्वासियों को उत्साहित करने के द्वारा- कलीसिया में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग होते हैं। सबकी भिन्न-भिन्न भूमिकाएँ हैं। परन्तु हम सब एक-दूसरे को वचन द्वारा ख्रीष्ट में स्थिर बने रहने के लिए उत्साहित करते हैं। इसके साथ ही जब कलीसिया में नये लोग आते हैं तो हम उन सब लोगों को वचन पढ़ने, नियमित आने, संगति रखने के लिए उत्साहित कर सकते हैं। हम उन्हें कलीसियाई आराधना में आने के लिए व्हाट्सअप सन्देश तथा फोन करने के द्वारा उत्साहित कर सकते हैं।

4. पहुँनाई करने के द्वारा- कलीसिया में सप्ताह में एक बार आराधना के लिए तथा अन्य साप्ताहिक कार्यक्रम में मिलते हैं। इसके साथ ही हम कलीसिया के विश्वासियों को अपने घरों में आमन्त्रित कर सकते हैं। आरम्भिक कलीसिया में विश्वासियों के मध्य संगति करने का एक माध्यम पहुँनाई करना था। इसलिए पतरस विश्वासियों को उत्साहित करता है कि वे ख्रीष्ट के प्रेम में एक दूसरे की पहुँनाई करें (1 पतरस 4:9)। इस प्रकार दूसरों को अपने घर में आमन्त्रित करके हम उनके साथ भोजन करने, ख्रीष्टीय जीवन में वर्तमान स्थिति, संघर्ष तथा अन्य व्यवहारिक बातों व कार्यों द्वारा एक-दूसरे को प्रभु में बढ़ने एवं ख्रीष्ट में बने रहने में सहायता करते हैं।   

हमारा समय, हमारा धन, हमारी योग्यता तथा सब कुछ जो हमारे पास है वह प्रभु के द्वारा हमें दिया गया है। इसलिए हमें इन सबका उपयोग कलीसिया की उन्नति के लिए करना चाहिए।

5. नियमित रीति से सुसमाचार कार्य हेतु धन देने के द्वारा- हम अपने हृदय, शब्दों एवं कार्यों द्वारा परमेश्वर की महिमा करते हैं। हमारा सम्पूर्ण जीवन ही परमेश्वर का ऋणी है। सब कुछ जो हमारे पास है वह उसका है। इसलिए हम अपने धन के द्वारा उसको महिमा देते हैं। कलीसिया की बढ़ोत्तरी, सुसमाचार के प्रचार के लिए हम अपना धन देने के द्वारा कलीसिया में योगदान देते हैं ताकि वचन का कार्य बढ़े।

6. व्यवहारिक कार्यों में स्वयं को उपलब्ध कराने के द्वारा- कलीसिया आत्मिक परिवार है। इसमें हम स्वयं को कलीसिया के कार्य हेतु उपलब्ध कराते हैं। हमें कलीसिया के विश्वासियों की आवश्यकताओं में साथ देना है। केवल शब्दों में ही नहीं वरन् व्यवहारिक कार्यों में उनके साथ खड़े होना है। आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अस्पताल पहुँचाने, परिवार में संघर्ष के मध्य उनको सही परामर्श देने, कलीसिया की गतिविधियों, सुसमाचार प्रचार के कार्यों में सहयोग देने के द्वारा हम कलीसिया के लिए सहायता कर सकते हैं। हम कलीसिया में प्रभु-भोज की तैयारी में सहयोग कर सकते हैं। पार्किंग में, सण्डे स्कूल में, खाद्य सामग्री बंटवाने, कुर्सियाँ लगवाने तथा अन्य व्यवाहारिक कार्यो में सहायता करने के लिए आप स्वेच्छा से व्यवाहिक कार्यों के लिए उत्तरदायी डीकन से बात कर सकते हैं!

      अन्त में, आइये हम इस बात को स्मरण रखें कि हमारा समय, हमारा धन, हमारी योग्यता तथा सब कुछ जो हमारे पास है वह प्रभु के द्वारा हमें दिया गया है। इसलिए हमें इन सबका उपयोग कलीसिया की उन्नति के लिए करना चाहिए। जब सुसमाचार प्रचार होगा, लोग उद्धार पाएँगे, लोग ख्रीष्ट के स्वभाव में बढ़ेंगे तो परमेश्वर को महिमा मिलेगी। हमें ध्यान रखना है कि हम सब कुछ उसकी महिमा के लिए करते हैं, “क्योंकि उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है। उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।” (रोमियों 11:36)।

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नीरज मैथ्यू
नीरज मैथ्यू
Articles: 58

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