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ख्रीष्ट के प्रेम का लक्ष्य

"हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ रहें, कि वे मेरी महिमा को देख सकें।" (यूहन्ना 17:24)

यीशु में विश्वासी परमेश्वर के लिए बहुमूल्य हैं (हम उसकी दुल्हन हैं!)। और वह हमसे इतना प्रेम करता है कि वह हमारी बहुमूल्यता को हमारा ईश्वर नहीं बनने देगा।

परमेश्वर वास्तव में हमें बहुमूल्य मानता है (वह हमें अपने परिवार में अपनाता है!), परन्तु वह ऐसा इस प्रकार से करता है जो उसकी  महानता का आनन्द लेने के लिए हमें अपने आप से बाहर निकाल लाता है।

अपने आप को जाँचें। यदि यीशु आपके साथ एक दिन बिताने के लिए आए, सोफे पर आपके साथ बैठे, और कहे, “मैं वास्तव में तुमसे प्रेम करता हूँ,” तो आप उसके साथ बिताए उस शेष दिन में किस बात पर ध्यान केन्द्रित करेंगे?  

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कई सारे गीत और उपदेश हमें सच्चा उत्तर नहीं देते हैं। वह हम पर यह प्रभाव छोड़ते हैं कि हमारे आनन्द की पराकाष्ठा प्रेम किए जाने की बार-बार होने वाली अनुभूति में होगी। “वह मुझसे प्रेम करता है!” “वह मुझसे प्रेम करता है!” निश्चित रूप से, यह वास्तव में आनन्द की बात है। परन्तु यह उसके प्रेम की सीमा नहीं। यह उसके प्रेम का केन्द्र नहीं है।

“मुझसे प्रेम किया गया है” इन शब्दों से हम क्या कहना चाह रहे होते हैं? हमारा क्या अर्थ है? यह “प्रेम किया जाना” क्या है?

क्या सबसे महान्, सबसे अधिक ख्रीष्ट को बढ़ाने वाला आनन्द इस बात में नहीं पाया जाएगा कि पूरा दिन यीशु को देखें और यह कहते रहें, “तुम अद्भुत हो।” “तुम अद्भुत हो!”

  • वह सबसे कठिन प्रश्न का उत्तर देता है, और उसकी बुद्धि अद्भुत है।
  • वह गन्दे, बहने वाले घाव को छूता है, और उसकी करुणा अद्भुत है।
  • वह चिकित्सा परीक्षक के कार्यालय में एक मृतक स्त्री को जिला देता है, और उसकी सामर्थ्य अद्भुत है।
  • वह दोपहर में होने वाली घटनाओं की भविष्यद्वाणी करता है, और उसका पूर्वज्ञान अद्भुत है।
  • वह भूकम्प के समय सोता है, और उसकी निडरता अद्भुत है।
  • वह कहता है, “इससे पहले कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ” (यूहन्ना 8:58), और उसके शब्द अद्भुत हैं।

हम पूरी दोपहर उसके साथ चलते हैं, और जो हम देख रहे हैं उससे पूर्ण रूप से चकित होते हैं।

क्या हमारे प्रति उसका प्रेम उसकी उत्सुकता नहीं है कि हमारे लिए वह सब कुछ करे जो उसे करना चाहिए (जिसमें हमारे लिए मरना भी सम्मिलित है) जिससे कि हम उस पर अचम्भा कर सकें, न कि उसके द्वारा नष्ट कर दिए जाएँ? छुटकारा, कोपसन्तुष्टि, क्षमा, धर्मीकरण, मेल-मिलाप — ये सब होना ही है। ये प्रेम के कार्य  हैं। ‌

परन्तु प्रेम का लक्ष्य  जो उन कार्यों  को प्रेममय बनाता है वह यह है कि हम उसके साथ रहें, और उसकी अत्यन्त अद्भुत महिमा को देखें, और विस्मय से भर जाएँ। उन क्षणों में हम अपने आप को भूल जाते हैं जब हम जो परमेश्वर अपने आप में हमारे लिए है उसको देखते हैं और उसका रसास्वादन करते हैं ।

इसलिए मैं पास्टरों और शिक्षकों से आग्रह करता हूँ: ख्रीष्ट के प्रेम के कार्यों  के माध्यम से लोगों को उसके प्रेम के लक्ष्य  की ओर ले जाइए। यदि छुटाकारा और कोपसन्तुष्टि और क्षमा और धर्मीकरण और मेल-मिलाप हमें स्वयं यीशु के आनन्द की ओर नहीं ले जा रहें हैं, तो वे प्रेम नहीं हैं।

इसी बात पर बने रहें। इसी के लिए यीशु ने यूहन्ना 17:24 में प्रार्थना की थी, “हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ रहें, कि वे मेरी महिमा को देख सकें।”

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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