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एक-दूसरे से प्रसन्नतापूर्वक प्रेम करो

हे मनुष्य, उसने तुझे बता दिया है कि अच्छा क्या है। यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है कि तू न्याय से कार्य करे, कृपा से प्रेम रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले? (मीका 6:8)

कभी भी किसी को ऐसा नहीं लगा है कि उससे प्रेम नहीं किया गया है क्योंकि उसे यह बताया गया था कि उसके आनन्द की प्राप्ति दूसरे व्यक्ति को प्रसन्नता प्रदान करेगी। जब मैं दयालुता को इस अधार पर उचित ठहराता हूँ कि वह मुझे मग्न करती है तो मुझ पर कभी भी स्वार्थी होने का आरोप नहीं लगाया गया है। इसके विपरीत, प्रेमपूर्ण कार्य उस सीमा तक वास्तविक होते हैं कि उन्हें कुड़कुड़ाते हुए नहीं किया जाता है।

और अनिच्छा का उत्तम विकल्प तटस्थता से या कर्तव्यनिष्ठा से नहीं, वरन् हर्ष से किया जाता है। प्रेम का सच्चा हृदय दयालुता से प्रेम करता है (मीका 6:8); वह केवल दया ही नहीं करता है। ख्रीष्टीय सुखवाद इस सत्य पर विचार करने के लिए बाध्य करता है।

जब हम परमेश्वर से प्रेम करते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं तो इसी से हम जानते हैं कि हम परमेश्वर की सन्तानों से प्रेम करते हैं। क्योंकि परमेश्वर का प्रेम यह है कि हम उसकी आज्ञाओं का पालन करें;और उसकी आज्ञाएँ बोझिल नहीं हैं। क्योंकि जो कुछ परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्त करता है; और वह विजय जिसने संसार पर जय प्राप्त की यह है – हमारा विश्वास है। (1 यूहन्ना 5:2-4)  

इन वाक्यों को उल्टे क्रम में पढ़िए और इसके तर्क पर ध्यान दीजिए। पहला, परमेश्वर से उत्पन्न होना संसार को जीतने की सामर्थ्य देता है । यह इस कथन के लिए आधार या मूल के रूप में दिया गया है (“क्योंकि” शब्द पर ध्यान दीजिए) कि परमेश्वर की आज्ञाएँ बोझिल नहीं हैं।

इसलिए, परमेश्वर से उत्पन्न होना हमें ऐसी सामर्थ्य प्रदान करता है जो परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध हमारे सांसारिक द्वेष पर विजय प्राप्त करता है। अब उसकी आज्ञाएँ “बोझिल” नहीं, परन्तु हमारे हृदय की इच्छा और प्रसन्नता हैं। यह परमेश्वर का प्रेम है: न केवल हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, परन्तु यह भी कि वे हमारे लिए बोझिल नहीं हैं।

फिर 2 पद में परमेश्वर की सन्तान के प्रति हमारे प्रेम की सच्चाई के प्रमाण को परमेश्वर का प्रेम कहा गया है। यह हमें परमेश्वर की सन्तानों के प्रति हमारे प्रेम के विषय में क्या शिक्षा देता है?

क्योंकि परमेश्वर से प्रेम करने का अर्थ है कि उसकी इच्छा को आनन्द के साथ करना न कि बोझ की भावना से, और क्योंकि परमेश्वर के लिए प्रेम परमेश्वर की सन्तानों के लिए हमारे प्रेम की वास्तविकता का माप है, इसलिए परमेश्वर की सन्तानों के लिए हमारा प्रेम भी आनन्द से किया जाना चाहिए न कि अनिच्छा से।

ख्रीष्टीय सुखवाद पूर्ण रीति से प्रेम के पक्ष में है, क्योंकि यह हमें आनन्दपूर्वक आज्ञाकारिता के लिए प्रोत्साहित करता है, न कि केवल अनैच्छिक आज्ञाकारिता के लिए।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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