परमेश्वर की हमसे स्तुति की अभिलाषा और परमेश्वर में आनन्द की हमारी अभिलाषा, दोनों बातें एक ही हैं तथा एक ही समान अभिलाषा हैं। परमेश्वर की महिमान्वित होने की इच्छा और हमारी सन्तुष्टि की इच्छा, दोनों बातें इसी एक अनुभव में अपना गन्तव्य प्राप्त करती हैं: परमेश्वर में हमारा हर्ष, जो कि स्तुति के रूप में उमड़ता है।
परमेश्वर की दृष्टि में, उसकी स्तुति उसके लोगों के हृदयों में उसके उत्कृष्ट गुणों की मधुर गूँज है।
हमारे लिए, उसकी स्तुति सन्तुष्टि का वह शिखर है जो परमेश्वर के साथ सहभागिता करने के द्वारा उत्पन्न होती है।
इस शिक्षा का स्तब्ध करने वाला परिणाम यह है कि वह सर्वसामर्थी ऊर्जा जो परमेश्वर के हृदय को उसके स्वयं की महिमा की अभिलाषा के लिए प्रेरित करती है, परमेश्वर को उन लोगों के हृदयों को सन्तुष्ट करने के लिए भी प्रेरित करती है जो अपने आनन्द को उसमें खोजते हैं।
बाइबल का अच्छा समाचार यह है कि जो लोग परमेश्वर में आशा रखते हैं परमेश्वर उनको सन्तुष्टि प्रदान करने के लिए अनिच्छुक नहीं है। ठीक इसके विपरीत: जो बात हमें सबसे अधिक प्रसन्न कर सकती है उसी में परमेश्वर अपने सम्पूर्ण हृदय से और अपने सम्पूर्ण प्राण से आनन्दित होता है। ये शब्द कितने मनोहर हैं: “और मैं आनन्दपूर्वक… और अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से उनकी भलाई करूँगा” (यिर्मयाह 32:41)।
और अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से, परमेश्वर सनातन आनन्द की हमारी अभिलाषा के लिए हमारे साथ मिलकर कार्य करता है क्योंकि परमेश्वर में उस आनन्द की परिपूर्णता उसके स्वयं की महिमा के असीमित मूल्य में बड़ा सहयोग करती है।