मेरी अत्यधिक इच्छा है कि परमेश्वर मेरे लिए भी वही कहे जो उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब के लिए कहा: “मैं तुम्हारा परमेश्वर कहलाने से नहीं लजाता हूँ।”
यह सुनने में थोड़ा दुस्साहसी तो अवश्य लगेगा परन्तु क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर मेरा परमेश्वर कहलाने में “गर्व” का अनुभव करता है? अच्छी बात यह है कि यह सम्भावना (इब्रानियों 11:16 में) कुछ कारणों से घिरी हुई है: एक इस कथन से पहले है और दूसरा इस कथन के बाद।
बाद वाले पर पहले ध्यान दें: “परमेश्वर उनका परमेश्वर कह लाने से नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिए एक नगर तैयार किया है।”
परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाने से क्यों नहीं लजाता है इसके लिए उसने जो पहला कारण दिया है वह यह है कि उसने उनके लिए कुछ किया है। उसने उनके लिए एक नगर — स्वर्गिक नगर बनाया है “जिसका रचने तथा बनाने वाला परमेश्वर है” (इब्रानियों 11:10)। अत:, पहला कारण कि वह उनका परमेश्वर कहलाने से क्यों नहीं लजाता है क्योंकि उसने उनके लिए कार्य किया है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने उसके लिए कार्य किया है।
अब, उस कारण पर ध्यान दीजिए जो उसने इस कथन से पहले दिया था। जो कि यह है: “पर वे एक उत्तम अर्थात् स्वर्गिक देश के अभिलाषी हैं। इसलिए परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाने से नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिए एक नगर तैयार किया है।”
“इसलिए” यह संकेत करता है कि अभी एक कारण दिया गया है कि परमेश्वर हमारा परमेश्वर कहलाने से क्यों नहीं लजाता है। वह कारण है उनकी अभिलाषा। वे एक उत्तम देश — अर्थात् ऐसे देश के अभिलाषी हैं जो इस पृथ्वी के देश से उत्तम है; अर्थात् स्वर्गिक देश जहाँ परमेश्वर है।
जब हम यह संसार हमें जो दे सकता है उन सबसे बढ़कर इस स्वर्गिक देश के — अर्थात् परमेश्वर के निवास स्थान के — अभिलाषी होते हैं, तो परमेश्वर हमारा परमेश्वर कहलाने से नहीं लजाता है। जब हम परमेश्वर द्वारा की गई सब प्रतिज्ञाओं को प्रमुख स्थान देते हैं तो वह हमारा परमेश्वर होने में गर्व करता है। यही शुभ सन्देश है।
अत: अपनी आँखे उस उत्तम देश की ओर, परमेश्वर के उस नगर की ओर लगाएँ जिसे उसने हमारे लिए बनाया है और सम्पूर्ण हृदय से उसके लिए अभिलाषा रखें। तब परमेश्वर आपका परमेश्वर कहलाने से नहीं लजाएगा।