हम सब ऐसे लोगों को जानते हैं जिनके साथ यह हुआ है। उनमें कोई तात्कालिकता नहीं है। कोई सतर्कता नहीं है। वे यीशु को न ध्यान से सुनते हैं न उस पर विचार करते हैं न अपनी आँखें उस पर लगाते हैं। और इसका परिणाम एक ही स्थान पर खड़े रहना नहीं, वरन् भटक जाना होता है।
और यहाँ पर यही मुख्य बात है: हम कभी भी एक ही स्थान पर नहीं खड़े रह सकते हैं। इस संसार का यह जीवन एक झील के समान नहीं है। परन्तु यह एक नदी के समान है। और यह विनाश की ओर नीचे बहती चली जा रही है। यदि आप यीशु को गम्भीरतापूर्वक नहीं सुनते हैं और प्रतिदिन उस पर विचार नहीं करते हैं और प्रत्येक क्षण अपनी आँखें उस पर नहीं लगाते हैं, तब तो आप एक ही स्थान पर नहीं रहेंगे; आप पीछे की ओर जाएँगे। आप ख्रीष्ट से दूर भटक जाएँगे।
ख्रीष्टीय जीवन में भटकना एक प्राणघातक बात है। और इब्रानियों 2:1 के अनुसार इसका समाधान यह है: जो कुछ हमने सुना है, उस पर और अधिक गहराई से ध्यान दें। अर्थात् इस बात पर ध्यान दें कि परमेश्वर अपने पुत्र यीशु के द्वारा क्या कह रहा है। अपनी आँखें उस बात पर लगाएँ जिसे परमेश्वर अपने पुत्र यीशु ख्रीष्ट के द्वारा कह रहा है और कर रहा है।
यह सीखने के लिए कोई कठिन कार्य नहीं है। वह एकमात्र बात जो हमें संसार की पापी संस्कृति के विपरीत जाने से रोकती है, वह हमारे सामने आने वाला कोई कठिन कार्य नहीं है, किन्तु संसार के प्रवाह के साथ बहने की हमारी पापपूर्ण इच्छा है।
आइए हम इस बात के लिए कुड़कुड़ाना बन्द करें कि परमेश्वर ने हमें कठिन कार्य दिया है। सुनें, विचार करें, अपनी आँखें लगाएँ — इसको आप एक कठिन कार्य विवरण नहीं कह सकते हैं। वास्तव में, यह तो कार्य विवरण है ही नहीं। वरन् यह तो यीशु में सन्तुष्ट होने के लिए एक गम्भीर निमन्त्रण है जिससे कि हम भ्रमित करने वाली इच्छाओं के द्वारा बहाव में न चले जाएँ।
यदि आप आज भटक रहे हैं, तो आशा का एक संकेत कि आपका वास्तव में नया जन्म हुआ है, यह है कि आप इसके लिए चुभन का अनुभव करते हैं, और आप आने वाले दिनों और महीनों और वर्षों में यीशु की ओर अपनी आँखें फेरने और उस पर विचार करने और उसे सुनने की बढ़ती इच्छा का अनुभव करते हैं।