दुःख उठाने का धर्मविद्यालय
जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन

संस्थापक और शिक्षक, desiringGod.org

“मेरा अनुग्रह तेरे लिए पर्याप्त है, क्योंकि मेरा सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होता है।” (2 कुरिन्थियों 12:9)

ख्रीष्टियों के सामने आने वाले सभी दुःखों के पीछे परमेश्वर का यह विश्वव्यापी उद्देश्य है कि: वे परमेश्वर में अधिक सन्तुष्टि पाएँ एवं स्वयं तथा संसार पर कम निर्भरता रखें। मैंने कभी भी किसी को यह कहते हुए नहीं सुना है कि, “मेरे जीवन की वास्तविक गहन शिक्षाएँ शान्ति और सुख के समय में आयी हैं।”

किन्तु मैंने दृढ़ सन्तों को यह कहते हुए सुना है कि, “परमेश्वर के प्रेम की गहराइयों को समझने और उसके साथ गहराई से बढ़ने में मेरी जो भी महत्वपूर्ण उन्नति हुई है, वह दुःख के माध्यम से आई है।”

वह बहुमूल्य मोती तो ख्रीष्ट की महिमा है।

इसलिए पौलुस इस बात पर बल देता है कि हमारे दुःखों में यीशु ख्रीष्ट के सर्व-पर्याप्त अनुग्रह की बड़ाई होती है। यदि हम अपनी विपत्ति में उस पर भरोसा रखते हैं, और वह हमारे “आशा में आनन्दित” होने को बनाए रखता है, तो फिर उसे अनुग्रह और सामर्थ्य के सर्व-सन्तुष्टिदायक परमेश्वर के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जो कि वह है भी।

“जब हमारे प्राण हताश हो जाएँ,” और यदि तब भी हम उसमें स्थिर रहते हैं, तब हम दिखाते हैं कि जो कुछ भी हमने खोया है उस सब से अधिक वह चाहने योग्य है।

ख्रीष्ट ने दुःख सहनेवाले प्रेरित से कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिए पर्याप्त है, क्योंकि मेरा सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होता है।” पौलुस ने इसका प्रतिउत्तर दिया: “अतः मैं सहर्ष अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा। जिससे कि ख्रीष्ट का सामर्थ्य मुझमें निवास करे। इस कारण मैं ख्रीष्ट के लिए निर्बलताओं, अपमानों, दुःखों, सतावों और कठिनाइयों में प्रसन्न हूँ। क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ तभी सामर्थी होता हूँ” (2 कुरिन्थियों 12:9-10)।

इसलिए स्पष्ट रूप से दुःख परमेश्वर द्वारा ख्रीष्टियों को न केवल स्वयं से दूर करने और अनुग्रह की ओर बढ़ाने के लिए है, वरन् उस अनुग्रह को उजागर करने और उसे प्रकाशित करने के लिए भी बनाया गया है। विश्वास ठीक यही करता है: यह ख्रीष्ट के भविष्य-के-अनुग्रह की बड़ाई करता है।

परमेश्वर में जीवन की गूढ़ बातें दुःख में सीखी जाती हैं और बढ़ाई जाती हैं।

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