हमारी दो सर्वाधिक अधारभूत आवश्यकताएँ

April 1, 2025

हमारी दो सर्वाधिक अधारभूत आवश्यकताएँ

थिस्सलुनीकियों की कलीसिया को, जो हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु ख्रीष्ट में है। (2 थिस्सलुनीकियों 1:1)

एक कलीसिया के रूप में हम पिता “में” और प्रभु “में” पाए जाते हैं। इसका अर्थ क्या है? 

“पिता” शब्द में प्राथमिक रीति से निम्नलिखित बातें अन्तर्निहित हैं: देख-भाल और लालन-पालन और सुरक्षा और प्रावधान और अनुशासन। तो, पिता “में” पाए जाने का मुख्य रीति से अर्थ है कि स्वर्गीय पिता के रूप में परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा के भीतर पाया जाना। 

एक जो अन्य उपाधि है वह है प्रभु: हम प्रभु यीशु ख्रीष्ट “में” पाए जाते हैं। “प्रभु” शब्द में प्राथमिक रीति से अन्तर्निहित है अधिकार और अगुवाई और स्वामित्व। तो मुख्य रीति से प्रभु “में” पाए जाने का अर्थ है: यीशु हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रभु की देख-रेख में, उसके अधिकार के अधीन और उसके धन के रूप में पाया जाना।  

तो पौलुस थिस्सलुनीकियों की कलीसिया का अभिवादन इस रीति से करता है कि वह उनको यह स्मरण दिलाए कि वे एक परिवार  हैं (एक पिता के देख-भाल के अन्तर्गत) तथा वे दास  भी हैं (एक प्रभु की अधीनता में)। पिता तथा प्रभु के रूप में परमेश्वर के ये दो विवरण, और इसी रीति से परिवार और दासों के रूप में कलीसिया का विवरण, हमारी दो सर्वाधिक अधारभूत आवश्यकताओं के समतुल्य है।  

हममें से प्रत्येक को एक ओर तो बचाए जाने की तथा सहायता की, वरन् दूसरी ओर, उद्देश्य और अर्थ की आवश्यकता है। 

  1. हमें एक स्वर्गीय पिता की आवश्यकता है जो हम पर तरस खाए और हमें हमारे पाप और दुर्गति से छुड़ाए। हमें मार्ग के प्रत्येक पग पर उसकी सहायता की आवश्यकता है, क्योंकि हम इतने निर्बल और असुरक्षित हैं।  
  2. हमें एक स्वर्गीय प्रभु  की भी आवश्यकता है जो हमारे जीवन में अगुवाई करे और बताए कि बुद्धिमता क्या है और हमें एक महान और अर्थपूर्ण आदेश दे जिसका पालन किया जा सके, और वह हमारे जीवन का उद्देश्य हो और जिस रीति से परमेश्वर ने हमें बनाया है उसके लिए हम कुछ उपयोग में आ सकें।  

हम चाहते हैं कि एक करुणाशील पिता हमारा रक्षक हो, और हम चाहते हैं कि एक सर्वशक्तिशाली प्रभु हमारा पक्षसमर्थक हो और हमारा सेनापति हो और हमारे एक महान उद्देश्य के लिए हमारा अगुवा हो। तो इसलिए, जब पौलुस पद 1 में कहता है कि, तुम “परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु ख्रीष्ट में” कलीसिया हो,” तो हम लोग एक जन से तो विश्राम और सहायता प्राप्त कर सकते हैं —परमेश्वर से जो हमारा पिता है। और दूसरे जन से साहस और अर्थ को प्राप्त कर सकते हैं — यीशु से जो हमारा प्रभु है!

साझा करें
जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

Articles: 407

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  1. हमारी दो सर्वाधिक अधारभूत आवश्यकताएँ (Current)

    जॉन पाइपर | April 1, 2025
  2. मृत्यु का पूर्वाभ्यास (Rehearsal)

    जॉन पाइपर | December 31, 2025
  3. तैयार और सशक्त किए गए

    जॉन पाइपर | December 30, 2025
  4. एक भयानक गन्तव्य

    जॉन पाइपर | December 29, 2025
  5. महिमा ही लक्ष्य है

    जॉन पाइपर | December 28, 2025
  6. आपका लक्ष्य क्या है?

    जॉन पाइपर | December 27, 2025
  7. आपदा के विषय में कैसे विचार करें

    जॉन पाइपर | December 26, 2025
  8. क्रिसमस के तीन उपहार

    जॉन पाइपर | December 25, 2025
  9. क्रिसमस के दो उद्देश्य

    जॉन पाइपर | December 24, 2025
  10. परमेश्वर का अवर्णनीय उपहार

    जॉन पाइपर | December 23, 2025
  11. कि तुम विश्वास करो

    जॉन पाइपर | December 22, 2025