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हम परमेश्वर के लिए सृजे गए थे

“यहोवा तो अपने महान् नाम के कारण अपनी प्रजा को नहीं त्यागेगा क्योंकि उसे यह भला लगा कि वह तुम्हें अपनी निज प्रजा बनाए।” (1 शमूएल12:22)

परमेश्वर का नाम प्रायः उसकी प्रतिष्ठा, उसकी प्रसिद्धि, उसकी ख्याति की ओर इंगित करता है। इसी प्रकार से हम “नाम” शब्द का उपयोग करते हैं जब हम कहते हैं कि कोई अपने लिए नाम कमा रहा है।  या कभी कभी हम कहते हैं, यह “नाम” तो एक मार्का है। मार्का से हमारा तात्पर्य बड़ी प्रसिद्धि से हैं। मेरा मानना है कि यही अर्थ 1 शमूएल 12:22 में शमूएल का भी था जब वह कहता है कि परमेश्वर ने तुम्हें “अपनी निज” प्रजा बनाया है और यह कि वह तो “अपने महान् नाम के कारण” अपनी प्रजा को नहीं त्यागेगा। 

स्वयं के नाम के लिए परमेश्वर की धुन के विषय में इस प्रकार का विचार बहुत से अन्य खण्डों में पाया जाता है। 

उदाहरण के लिए, यिर्मायाह 13:11 में परमेश्वर इस्राएल को अंगोछा, या कटिबन्ध के रूप में दर्शाता है जिनको परमेश्वर ने अपनी महिमा को प्रदर्शित करने के लिए चुना था, यहाँ तक कि उस समय भी, जब इस्राएल इस कार्य के अयोग्य था। “क्योंकि जिस प्रकार अंगोछा मनुष्य की कमर से चिपका रहता है उसी प्रकार मैंने भी इस्राएल के समस्त घराने और यहूदा के समस्त घराने को लपेट लिया था कि वे मेरे लिए एक ऐसी प्रजा बनें जो मेरे नाम के लिए, मेरी प्रशंसा के लिए और मेरी महिमा के लिए हों: परन्तु उन्होंने मेरी नहीं सुनी,” ऐसा क्यों हुआ कि इस्राएल चुना गया और परमेश्वर का वस्त्र (अंगोछा) बना? जिससे कि वे एक “नाम, एक प्रशंसा, और एक महिमा” हों। 

इस सन्दर्भ में “प्रशंसा” और “महिमा” शब्द बताते हैं कि “नाम” का अर्थ है “प्रतिष्ठा” या “प्रसिद्धि” या “ख्याति”। परमेश्वर ने इस्राएल को इसलिए चुना कि वह उसके नाम के लिए ख्याति बनाए। परमेश्वर यशायाह 43:21 में कहता है “जिस प्रजा को मैंने अपने लिए बनाया है, वह मेरा गुणानुवाद करेगी।” 

और जब नए नियम में कलीसिया ने स्वयं को नए इस्राएल के रूप में देखा, तो पतरस हमारे लिए परमेश्वर के उद्देश्य को इस प्रकार से वर्णन करता है कि: “तुम एक चुना हुआ वंश हो… जिस से तुम उसके महान् गुणों को प्रकट करो जिसने तुम्हें अन्धकार से अद्भुत ज्योति में बुलाया है” (1 पतरस 2:9)।

दूसरे शब्दों में, इस्राएल और कलीसिया परमेश्वर के द्वारा इसलिए चुने गए जिससे कि वे संसार में परमेश्वर के लिए एक नाम अर्जित करें। इसलिए हम सबसे पहले एवं प्राथमिक रीति से यह प्रार्थना करते हैं, “तेरा नाम पवित्र माना जाए” (मत्ती 6:9)। इसलिए हम प्रार्थना करते हैं कि “अपने नाम के निमित्त धार्मिकता के मार्ग में मेरी अगुवाई कर” (भजन 23:3 पढ़िए)।

जब हम परमेश्वर केन्द्रित-लोग होने की बात करते हैं, तो इस बात को स्मरण रखिए कि हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हम परमेश्वर की परमेश्वर-केन्द्रियता में जुड़ रहे हैं। और क्रूस की इस ओर, हम कह सकते हैं कि इसका अर्थ है ख्रीष्ट-पर-निर्भर, ख्रीष्ट-में-उल्लसित लोग होना। “बच्चों, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि तुम्हारे पाप उसके नाम के कारण क्षमा हुए हैं” (1 यूहन्ना 2:12)। “वचन या कार्य से जो कुछ करो, सब प्रभु यीशु के नाम से करो और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो” (कुलुस्सियों 3:17)।

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जॉन पाइपर
जॉन पाइपर

जॉन पाइपर (@जॉन पाइपर) desiringGod.org के संस्थापक और शिक्षक हैं और बेथलेहम कॉलेज और सेमिनरी के चाँसलर हैं। 33 वर्षों तक, उन्होंने बेथलहम बैपटिस्ट चर्च, मिनियापोलिस, मिनेसोटा में एक पास्टर के रूप में सेवा की। वह 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, जिसमें डिज़ायरिंग गॉड: मेडिटेशन ऑफ ए क्रिश्चियन हेडोनिस्ट और हाल ही में प्रोविडेन्स सम्मिलित हैं।

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